आज मेरी हार
तिमिर में तिरती हुई
आशा अकेली
मैं नहीं विश्वास ,
ठगनी , ठग के बोली
मैं निराशा सी,
रुधिर की धार
मौन वीणा के बजे स्वर आज सारे
शलभ से लगते
गगन के पुष्प तारे
हर्ष अब बनता
हृदय का भार
निशा नीरव निबिड़ हाहाकार करती
शांत सबकुछ , किन्तु
शान्ति , अशान्ति रहती
दिवस खो जाता –
मधुर सुधि में किसी के
रात दिन मेरी दशा यों ही बदलती
क्यों मुझे अभिशाप सा यह प्यार
आज मेरी हार