याद कुछ इस तरह जगाती है
टुकड़ों टुकड़ों में नींद आती है

मौत की दुश्मनी है पल भर की
जिंदगी उम्र भर सताती है

आग कैसी भी हो कहीं भी हो
हो अँधेरा तो जगमगाती है

सोच कर देखिये कि हर भटकन
एक नया रास्ता दिखती है

जिस खिड़की से चांदनी आई
उस ही खिड़की से धूप आती है

सच बता तूने आज क्या देखा
आँख तू अश्क़ क्यूँ बहाती है

ऐ ‘मुकेश’ मेरी जिंदगी मुझको
क्यूँ बार – बार यूँ रुलाती है

मुकेश पाण्डेय

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