हाथरस घटना में दंगे की “वेबसाइट” पकड़ में आने से यह चौंका देने वाला जहरीला सत्य अब पूरी तरह उजागर होने की तरफ बढ़ रहा है कि : हाथरस कांड एक दुखद संयोग पर किया गया जहरीला प्रयोग है ठीक सीएए, एनआरसी के बहाने उत्तर प्रदेश में व्यापक अराजकता फैलाने के प्रयास और अंजाम दिए गए दिल्ली दंगों की तर्ज़ पर।

शुरुआत में जरा हाथरस कांड के दुखद संयोग का सत्य जान लें उसके बाद इसके खरनाक और जहरीले प्रयोग के खुलासे पर आएंगे जिसे मज़हबी, शहरी नक्सलियों, गिरोही मीडिया और कांग्रेस की अगुआई में राजनीतिक दलों ने अंजाम देने का असफल प्रयास किया।

हाथरस के बुलगढ़ी गांव में हुई लड़की की दुखद मौत में जो पूरी तरह एक ऑनर किलिंग जैसी घटना होने के संकेत दे रही है अब खुद एक जहरीली प्रयोगशाला बन के रह गयी है।

ऑनर किलिंग जैसी घटना इसलिए क्योंकि आरोपित और मृतका के बीच के प्रेम सम्बन्ध का दोनो परिवारों द्वारा विरोध किया जा रहा था लेकिन फिर भी घटना वाले दिन लड़का-लड़की आपस में बात करते पकड़े गए। इसके बाद लड़की के भाई ने आवेश में मृतका की पिटाई की जिसमें मां भी शामिल रही। पिटाई के दौरान गले में गंभीर चोटें आ जाने की वजह से मृतका को अस्पताल ले जाने की स्थिति हो गयी। यहां यह भी सत्य है कि भाई और मां द्वारा लड़की की पिटाई जान लेने के लिए नहीं की गई लेकिन चोटें गंभीर लग गईं। ऐसे मामलों में अस्पताल पहुंचते ही यह मेडिको-लीगल केस होता और पुलिस तक मामला जाता ही। इसलिए लड़की का भाई खुद थाने गया और एक पिटाई के दुखद संयोग को उसने रंजिश निकालने का अवसर चुनते हुए मारपीट और दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। इधर लड़की की हालत गर्दन की चोट की वजह से गंभीर होती गयी और वह दिल्ली हॉस्पिटल तक पहुंची।

इसी बीच स्थानीय स्तर पर राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते परिवार को रंजिश निकालने के साथ ही मुआवजे के खेल में फंसाया गया और 15 सितंबर की एफआईआर में 29 सितंबर को बलात्कार.. सामूहिक बलात्कार की शिकायत जुड़वाई गयी। जबकि पहली मेडिकल रिपोर्ट से लेकर अंतिम पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोरेंसिक रिपोर्ट हाथरस की उस अभागी बच्ची के साथ किसी बलात्कार की कोई बात नहीं कहती।

फिर कहानी गैंगरेप और उसके दौरान क्रूर हत्या तक कैसे पहुंची?

यहीं शुरू हुआ खतरनाक प्रयोग : बिल्कुल सीएए, एनआरसी और शाहीनबाग की तर्ज़ पर। इस बार मजहब नहीं बल्कि जातीय मिट्टी पर यह रचना हुई।

हाथरस मामले में मारपीट से हुई एक मौत की घटना को सामूहिक बलात्कार और क्रूर हत्या बना कर दलित-सवर्ण के जातीय बारूद से उत्तर प्रदेश और देश में अस्थिरता के साथ जातीय दंगे कराने के प्रयोग की साजिश आनन-फानन में तैयार की गई। बड़े फंड की व्यवस्था हुई और राजनीतिक मोर्चे पर कांग्रेस ने खुद को प्रस्तुत किया तो नागरिकता बिल पर देश भर में आग लगाने और दिल्ली दंगों के जिम्मेदार संगठनों ने पर्दे के पीछे भूमिका संभाली।यूपी में जातीय दंगे करा कर दुनिया भर में मोदी और योगी को बदनाम करने के लिये रातों रात बनाई गई ‘दंगे की वेबसाइट’।
(दंगे की इस वेबसाइट का लिंक नीचे देखा जा सकता है जिसे अब बन्द कर दिया है साजिशकर्ताओं ने)

दंगे की इस वेबसाइट के तार बदनाम और केंद्र सरकार की कड़ाई के बाद भारत से अपना कामकाज समेंटने वाले संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल से जुड़ रहे हैं। इस्लामिक देशों से भी हुई जमकर फंडिंग। जाँच एजेंसियों के हाथ लगातार अहम और चौंकाने वाले सुराग लग रहे हैं।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जातीय दंगों की साजिश करा दुनिया में भारत को बदनाम करने के लिए “जस्टिस फार हाथरस” नाम से रातों रात वेबसाइट तैयार की गई। वेबसाइट में फ़र्ज़ी आईडी से हजारो लोग जोड़े गए।

सीएए उपद्रव के दौरान हिंसा में शामिल रहे पीएफआई और एसडीपीआई जैसे संगठनों ने बेवसाइट तैयार कराने में निभाई अहम भूमिका सामने आ रही है।

मदद के बहाने दंगों के लिए की जा रही इस साजिश और इसकी फ़ंडिंग की बदौलत अफ़वाहें फैलाने के लिए मीडिया (टीवी चैनलों, प्रिंट, न्यूज वेबसाइटों और सोशल मीडिया के दुरूपयोग के भी लगातार सुराग मिल रहे हैं जांच कर रही एजेंसियों को। वेबसाइट की डिटेल्स और पुख्ता जानकारी अब एजेंसियों के पास है।

अमेरिका में हुए दंगों की तर्ज पर ही थी यूपी की घटना को लेकर देश भर में जातीय दंगे कराने की तैयारी। बहुसंख्यक समाज में फूट डालने के लिए मुस्लिम देशों और इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों से आया पैसा यह भी जांच में सामने आ रहा है।

बहुसंख्यकों में फूट डालने और प्रदेश में नफरत का बीज बोने के लिए बताई गई तरह तरह की तरकीबें, वेबसाइट पर मिले बेहद आपत्तिजनक कंटेंट। वेबसाइट में चेहरे पर मास्क लगाकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को विरोध प्रदर्शन की आड़ में निशाना बनाने की रणनीति बताई गई।

दंगे की इस बेवसाइट ने वालंटियरों की मदद से तैयार की हेट स्पीच और भड़काऊ सियासत की भी स्क्रिप्ट। मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए फेक न्यूज, फोटो शाप्ड तस्वीरों, अफवाहों, एडिटेड विजुल्स का किया गया दंगे भड़काने के लिए इस्तेमाल। हाथरस घटना को लेकर वेबसाइट पर दी गई भ्रामक, भड़काऊ और तमाम आपत्तिजनक जानकारियां।नफरत फैलाने के लिए दंगों के मास्टर माइंड ने किया कुछ मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया के महत्वपूर्ण एकाउंटों का इस्तेमाल, इसके लिए खर्च की गई मोटी रकम।जांच एजेंसियों ने कल रात कई जगह छापेमारी की है जिसके बाद ये जानकारी हासिल हुई है।

इस वेबसाइट को बनाने वाले के एमनेस्टी इंटरनेशनल संगठन से जुड़े होने का शक जांच एजेंसी को है।

और इस तरह हाथरस के गांव बुलगढ़ी में मारपीट से हुई एक दुखद संयोग भरी मौत को देश और उत्तरप्रदेश को जातीय दंगों में झोंकने की साजिश का केस स्टडी बना दिया और उस पर खतरनाक प्रयोग की पूरी सुनियोजित तैयारी भी।

इधर उत्तर प्रदेश सरकार ने कथित आरोपितों को जेल भेजने और इसी के साथ सभी पक्षों के नार्को, पॉलिग्राफिक टेस्ट के आदेश दिए। फिर एसआईटी, उच्चाधिकारियों की मौके पर जाकर जुटाई जानकारियों और खुफिया इनपुट्स के आधार पर घटना की सीबीआई जांच कराने के आदेश दे दिए। जिसके बाद नार्को के विरोध से लेकर सीबीआई तक के विरोध की बातें करता हुआ कथित मीडिया और सभी साजिशकर्ता बैकफुट पर आ गए।

उत्तर प्रदेश सरकार के त्वरित और कड़े फैसलों के साथ जांच एजेंसियों की फुर्ती अब उत्तर प्रदेश और देश के खिलाफ रची गयी एक और जहरीली और खतरनाक साजिश का खुलासा करने की ओर अग्रसर है।

आशा की जानी चाहिए कि हाथरस के इस दुखद संयोग को जहरीला प्रयोग बनाने के एक एक सत्य का खुलासा होगा और देश में आग लगाने वाले एक बार फिर देश के सामने न सिर्फ नंगे होंगे बल्कि अपने किये अपराधों की सजा पाएंगे।

दंगे की वेबसाइट : https://justiceforhathrasvictim.carrd.co/
(जांच की भनक के बाद वेबसाइट बन्द है लेकिन तस्वीरों में साइट के कंटेंट के प्रिंटआउट देखे जा सकते हैं)

अवनीश पी. एन. शर्मा

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