भाग एक से आगे..
भारत-पाकिस्तान सामरिक समझौतों के बाद सबसे पहले पाकिस्तान के प्रशासन से प्रतिक्रिया 17 मार्च को आयी जब भारत को इमरान खान ने सफेद झंडा दिखाया और वैश्विक जगत को संदेश भेजा कि सम्बंध सामान्य करने के लिए पाकिस्तान तत्पर है और अब भारत को पहल करनी है। इसके बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने दो दिवसीय ‘इस्लामाबाद सुरक्षा वार्ता’ समारोह के अवसर पर अपने उदघाटन भाषण में कहा कि उनकी सरकार ने 2018 में सत्ता में आने के बाद से ही भारत के साथ बेहतर संबंधों के लिए हर प्रयास किये है और अब भारत को इसके प्रति गंभीर होने के संकेत देने के लिए पहला कदम उठाना होगा।
इसी समारोह के अंतिम सत्र में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बाद उनके सेनाध्यक्ष जनरल कमर बाजवा ने वहां भागियों को संबोधित करते हुए कहा कि पूर्व और पश्चिम एशिया के बीच कनेक्टिविटी सुनिश्चित करके दक्षिण और मध्य एशिया की क्षमता को खोलने के लिए भारत और पाकिस्तान के संबंधों का स्थिर होना बहुत आवश्यक है। साथ मे यह भी कहा कि हमें लगता है कि अब अतीत को दफनाने और आगे बढ़ने का समय है। हमारे पड़ोसी को विशेष रूप से कश्मीर में एक अनुकूल वातावरण बनाना होगा।
प्रधानमंत्री इमरान खान और सेनाध्यक्ष बाजवा ने बात भले एक ही कि थी लेकिन इसमे सबसे महत्वपूर्ण जरनल बाजवा का यह कथन था कि पूर्व की घटनाओं को भुला कर, आगे बढ़ना है। पाकिस्तान के राजनीतिज्ञ वर्ग से हट कर, वहां के इस्टेबलिशमेंट द्वारा, अतीत को भुला कर नई पहल करने की बात, नई थी और इसने पाकिस्तान में एक बहस को जन्म दे दिया था। वहां पहली बार, मीडिया व बौद्धिक जगत में यह प्रश्न पूछना शुरू कर दिया कि क्या पाकिस्तान के कर्णधारों ने, पाकिस्तान की जनता से कश्मीर के मुद्दे को भूल दिए जाने के संकेत दिए है? क्या पाकिस्तान के वर्तमान शासक अपनी जनता को, कश्मीर भुला कर, भारत से सामान्य सम्बंध बनाये जाने के लिए तैयार कर रहे है? भारत मे लोगो के लिए पाकिस्तान मे उठे इस प्रश्न कोई महत्व नही हो लेकिन पाकिस्तान की जो जनता, पाकिस्तान की इस्टेबलिशमेंट द्वारा ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ के द्वारा दिये गए नारे में, पिछले 7 दशकों से अपने अस्तित्व को सहेजती रही हो, उसके लिए, निश्चित रूप से, ‘अतीत को भुला’ आगे बढ़ने की सलाह, किसी दुःस्वप्न से कम नही है।
यहां यह समझना आवश्यक है कि इस वक्त जब पाकिस्तान से यह वक्तव्य आरहे है तब पाकिस्तान में राजनैतिक अस्थिरता का वातावरण है। वहां के प्रमुख विपक्ष दल, ‘पीडीएम’ के बैनर के नीचे संयुक्त रूप से इमरान खान की सरकार का विरोध कर रहे है। वे, इमरान खान को चुनाव जीता हुआ प्रधानमंत्री न मान कर, इस्टेबलिशमेंट द्वारा चुना गया यानी ‘सिलेक्टेड’ प्रधानमंत्री मानते है। विपक्ष में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तो इमरान खान से ज्यादा वहां के इस्टेबलिशमेंट के शीर्ष पर बैठे जरनल बाजवा के विरुद्ध आक्रमक है। यह पाकिस्तान में पिछले 4 दशकों में पहली बार हो रहा है कि किसी भी राजनैतिक दल का नेतृत्व , पाकिस्तान की सेना व उसके सेनाध्यक्ष के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से बोल रहा है। मैं समझता हूँ कि पाकिस्तान में सेना के विरुद्ध उठ रही आवाजों के पीछे, इमरान खान सरकार का प्रशासनिक स्तर पर बुरी तरह असफल हो जाना भी कारण है। इमरान खान की सरकार एक तरफ, बड़े बड़े घोटालों के बीच महंगाई को रोकने में असमर्थ रही है, जिससे वहां की जनता की कमर टूट गई है और दूसरी तरफ, अपने पारंपरिक मित्र देश सऊदी अरब व यूएई का समर्थन खोने, अमेरिका की नई बिडेन प्रशासन द्वारा उपेक्षित किये जाने के साथ, ‘अफगान शांति वार्ता’ में पाकिस्तान की भूमिका को नगण्य किये जाने व सिपेक(चीन पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर) पर प्रगति रुक जाने से चीन की खिन्नता ने, उसे अंतराष्ट्रीय परिदृश्य में विलग कर दिया है। यहां यह कहा जासकता है कि पाकिस्तान से जब भारत के साथ सामान्य सम्बन्ध किये जाने पर विचार किये जाने के संकेत दिए जारहे है, उस वक्त पाकिस्तान विकल्पहीन हो, अदृढ़ता कि ओर बढ़ रहा है।
इमरान खान और जरनल बाजवा के वक्तव्य के बाद, भारत से पहली प्रतिक्रिया तब सामने आई जब, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक ट्वीट के माध्यम से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, जो पूर्व में पिछले 2 वर्षों से मोदी जी पर अमर्यादित व कूटनैतिक परिधि से बाहर निकल आलोचना करते नही थकते थे, के कारोना से संक्रमित होने पर, उनके जल्दी स्वस्थ होने की मंगल कामना की थी। भारत के प्रधानमंत्री द्वारा वर्षों बाद, इस तरह का कोई संदेश पाकिस्तान को भेजा था। उसके तुरंत ही बाद, 23 मार्च को ‘पाकिस्तान दिवस’ के अवसर पर मोदी जी ने पाकिस्तान की जनता को संबोधित करते हुए इमरान खान को पत्र भेजा जिसमे कहा कि पड़ोसी देशों में भरोसे का रिश्ता होना चाहिए और पाकिस्तान से भारत दोस्ताना संबंध चाहता है। पत्र में यह भी उल्लेखित किया कि दोस्ती के लिए आतंक मुक्त वातावरण होना आवश्यक है क्योंकि आतंकवाद की कोई जगह नहीं है।
मोदी जी के इस पत्र को लेकर जहां पाकिस्तान के एक वर्ग में प्रसन्नता व्याप्त हुई वही पर एक बड़ा वर्ग, जिसमे मीडिया शामिल है इसमे आतंकवाद को एक शर्त के रूप में उल्लेखित किये जाने व पाकिस्तान के मुख्य प्रयोजन कश्मीर मुद्दे पर अनुच्चरित रहने पर, आलोचना की और भारत व मोदी जी का विरोध किया गया। इस पत्र के आने से, पाकिस्तान की इमरान खान की सरकार फिर निशाने पर आगयी और यह पूछा जाने लगा कि क्या पाकिस्तान और भारत, पर्दे के पीछे कोई बातचीत चल रही है? क्या यह गोपनीय वार्ता अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन के प्रशासन के दबाव में हो रही है, जिसमे पाकिस्तान को भविष्य के लिए जम्मू कश्मीर को भूल, उस पर भारत की संप्रभुता स्वीकार किये जाने का दबाव है? यह अटकलें चल ही रही थी कि एक समाचार आया कि यूएई के एक राजकुमार ने बताया कि यूएई, भारत और पाकिस्तान के बीच सामान्य सम्बंध बनवाने की दिशा में सेतु का काम कर रहा है और साथ मे यह भी संकेत दिया कि शीघ्र ही इन दोनों देशों के बीच व्यापार प्रारम्भ हो जाएगा।
मोदी जी के शुभकामना संदेश के उत्तर में 29 मार्च को इमरान खान ने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद दिया और कहा कि स्थिरता के लिए जम्मू कश्मीर समेत सभी मुद्दों का हल जरूरी है। दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता, भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू कश्मीर समेत सभी मुद्दों के हल होने पर निर्भर करता है। उन्होंने आगे लिखा है कि पाकिस्तान के लोग भारत समेत सभी पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण रिश्ता चाहते हैं और इस पर बल दिया कि रचनात्मक संवाद के लिए सकारात्मक वातावरण का निर्माण करना जरूरी है।
भारत व पाकिस्तान के बीच जमी बर्फ को पिघलाने व इमरान खान सरकार द्वारा लगभग पिछले 2 वर्षों से, जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के निर्णय की वापसी के बिना भारत से किसी भी तरह के संवाद से इंकार किये जाने वाली चरम नीति में नरमी लाने के लिए, कश्मीर का उल्लेख करते हुए ‘रचनात्मक संवाद के लिए सकारात्मक वातावरण के निर्माण’ पर बल देने को कूटनैतिक जगत में सकारात्मकता से लिया गया है। लेकिन भारत द्वारा जम्मू कश्मीर में 5 अगस्त 2019 से पूर्व की स्थिति लाने से पहले, भारत से किसी भी तरह की वार्ता न किये जाने के पक्षधरों को इस पत्र में खोट दिखाई दिया है। इमरान खान की सरकार ने भारत से वार्ता किये जाने की आवश्यकता को अपनी जनता के बीच स्वीकार्य कराने के लिए उन्हें यह बताया है कि पाकिस्तान, कश्मीर के मुद्दे से पीछे नही हटा है और भारतीय प्रधानमंत्री को भेजे गये पत्र में कश्मीर का उल्लेख किया गया है। लेकिन पाकिस्तान की आशंकित जनता के लिए इस पत्र ने एक बार फिर से एक नई बहस को जन्म दे दिया है। पाकिस्तान के विदेशी मामलों को देखने वाले पत्रकार व पाक भारत सम्बन्धो के विशेषज्ञ, इस पत्र में जम्मू कश्मीर को लेकर प्रयोग की गई भाषा मे, पाकिस्तान द्वारा जम्मू कश्मीर को लेकर अपनी पुरानी स्थिति व नीति से हटता हुआ देख रहे है। मुझे उनकी आशंका सही प्रतीत होती है क्योंकि इस बार पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे का, संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा 1948 में पारित रेसोलुशन के आधार पर हल किये जाने का उल्लेख नही किया है। पाकिस्तान की अभी तक कश्मीर पर यही नीति रही है कि इसका हल संयुक्त राष्ट्रसंघ में पारित रेसोलुशन के अंतर्गत हो और उसकी विदेश नीति भी इसी पर आधारित है।
ऐसे में, इमरान खान के पत्र में कश्मीर के उल्लेख को, पाकिस्तानी जनता के बीच, भारत से सम्बंध सामान्य किये जाने के प्रयासों को स्वीकार्य बनाने के लिए किया गया प्रयास समझा जारहा है।
पाकिस्तान में लोग अभी इस पत्र का विच्छेदन व उसमे निहित अर्थों को समझने व समझाने का प्रयास कर ही रहे थे कि 31 मार्च 2021 को पाकिस्तान के नए बने वित्तमंत्री हम्मद अज़हर ने अपनी पहली प्रेसवार्ता में यह घोषणा कर के धमाका कर दिया कि पाकिस्तान में कपास की फसल में हुई कमी व उससे बुरी तरह प्रभावित वहां की टेक्सटाइल उद्योग को बचाने व पाकिस्तान में बेतहाशा बढ़ी चीनी की कीमत को कम करने के लिए, भारत से व्यापार पर प्रतिबंध हटाते हुए पाकिस्तान, भारत से कपास, धागा व चीनी आयात करेगा। वित्तमंत्री की इस घोषणा को देखा जाय तो यह निर्णय सिर्फ सदभावना के आधार पर नही लिया गया था बल्कि यह जमीनी स्तर के कठोर सत्य का संज्ञान लेते हुए, एक व्यवहारिक वित्तीय निर्णय था। अभी तक पाकिस्तान अपनी कपास की पूर्ति ब्राज़ील व अमेरिका से करता रहा है, जो न सिर्फ लाने में महंगी है बल्कि उसके आने में 3 से 4 महीने लगते है, वही पर भारत की कपास कम ढुलाई व 5 से 6 दिनों में वहां पहुंच जाएगी। यही चीनी के साथ है, चीनी जल्दी से पाकिस्तान के बाजार में उपलब्ध होने से वहां चीनी को लेकर हो रही जमाखोरी खत्म होती और तेज़ी से चीनी के दाम सामान्य हों जाते।
पाकिस्तान में जैसे ही इस निर्णय का पता चला तो चारो तरफ इसको लेकर चर्चाएं और आलोचना होने लगी। पाकिस्तान की मीडिया में ज्यादातर विरोध के स्वर थे और ऐसा समझा जारहा है कि उन्हें पाकिस्तान की चीनी मिलों की लॉबी का भी समर्थन प्राप्त था। पाकिस्तान में पिछले 2 महीने में भारत को लेकर, इतनी तेजी से घटनाएं हुई कि लोगो को अपनी इस आशंका को बल मिल गया की आर्थिक रूप से चरमराया पाकिस्तान, किसी बाह्य शक्ति के प्रभाव में सारगर्भित बने रहने के लिए, भारत के सामने समर्पण कर रहा है और उसने मूलभूत रूप से कश्मीर पर भारत की संप्रभुता को स्वीकार कर लिया है। इस सबसे आक्रोशित पाकिस्तान की जनता में उपजी निराशा व कुंठा इसलिये भी है क्योंकि उन्हें आभास हो रहा है कि इस तरह के निर्णय, जब तक उसके पीछे इस्टेबलिशमेंट के शीर्ष नेतृत्व का हाथ न हो, सिर्फ पाकिस्तान में बैठी किसी राजनैतिक दल की सरकार व प्रधानमंत्री नही ले सकता है। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान में किसी भी राजनैतिक दल की सरकार हो लेकिन रक्षा के साथ विदेश व वित्त मंत्रालय की कमान इस्टेबलिशमेंट के हाथों होती है। वही से इनकी नीतियां निर्धारित होती है।
भारत से व्यापार शुरू करने की पाकिस्तानी घोषणा का पाकिस्तान में बड़ी तीव्र प्रक्रिया हुई है। इसकी तीव्रता इससे भी समझी जासकती है कि जिन पत्रकारों या मीडिया प्रबन्धको को इस्टेबलिशमेंट का चेहरा व इमरान खान का समर्थक जाना जाता था, वे भी इस निर्णय के या तो विरुद्ध खड़े हो गए या फिर दोष इमरान खान पर डालने लगे। एक बहुत बड़े संतुलन बनाये रखने वाले वर्ग ने भी इमरान खान की आलोचना यह कहते हुए की, यदि भविष्य में हम को हर तरह की लचक दिखानी थी तो पिछले दो वर्षों से पाकिस्तान की जनता की भावनाओ को भारत और मोदी के विरुद्ध क्यों भड़काया गया? उन्हें क्यों कश्मीर के नाम पर अतिरेकता तक विषाक्त किया गया? हमे क्यों ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ और तुर्की के टीवी ड्रामा ‘अर्तुरुल गाजी ‘ के पीछे लगा कर, मुस्लिमो के हत्यारे, फासिस्ट और हिटलर कहे जाने वाले मोदी से दोस्ती स्वीकार किये जाने के लिए कहा जारहा है?
एक तरफ पाकिस्तान में इमरान खान और इस्टेबलिशमेंट अपने समर्थकों के निशाने पर आए, वही पर भारत मे पाकिस्तान द्वारा भारत से पुनः व्यापार किये जाने को लेकर की गई घोषणा ने, मोदी जी भी अपने समर्थकों के आलोचना के शिकार हो गए। जहां पाकिस्तान में उठा आक्रोश और आलोचना तार्किक है वही पर भारत मे यह आलोचना व आक्रोश न सिर्फ अतार्किक है बल्कि हास्यपद भी है। पाकिस्तान में तो लोगो के पास एक स्थापित कथानक था लेकिन भारत मे आलोचना के पीछे सिर्फ भावना के अलावा कुछ भी नही था।
भारत मे मोदी आलोचकों को झटका तब लगा जब 1 अप्रैल 2021 को पाकिस्तान की कैबिनेट ने, भारत से आयात करने के निर्णय को अस्वीकार कर दिया। असल मे मोदी आलोचकों ने 31 मार्च को हुई घोषणा को ब्रेकिंग न्यूज़ की हैडलाइन समझ कर भारत पाकिस्तान व्यापार पर अपनी मीमांसा कर दी जबकि तथ्यों की तरफ ध्यान ही नही दिया। सत्य यह था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी पाकिस्तान की ‘ईसीसी’ (‘इकोनॉमिक्स कॉर्डिनेशन कौंसिल’) ने भारत से कपास, धागा व चीनी लेने का प्रस्ताव पास किया था, जिसकी स्वीकृति पाकिस्तान के कैबिनेट से होनी थी। यह ध्यान रखने योग्य है की पाकिस्तान के वित्तमंत्री हम्मद अज़हर द्वारा की गई घोषणा के बाद, भारत ने न ही पाकिस्तान की इस घोषणा का स्वागत किया गया था और न ही किसी भी स्तर पर कोई भी प्रतिक्रिया ही दी गयी थी। उधर पाकिस्तान में इस निर्णय की न सिर्फ आलोचना हुई बल्कि इमरान खान के साथ सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा भी लोगो के निशाने पर आगये। एक तरफ भारत की ओर से उदासीनता व दूसरी तरफ घर मे हो रही आलोचना ने पाकिस्तान को इतना विवश कर दिया की प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में ‘ईसीसी’ में भारत से आयात करने के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में उनकी ही कैबिनेट ने, उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर, भारत से आयात न करने का निर्णय लेना पड़ा। इस कैबिनेट में इस प्रस्ताव को अस्वीकार किये जाने पर भी नाटक किया गया। इस्टेबलिशमेंट ने अपने को ‘ईसीसी’ में लिए गए निर्णय के दूर करने के लिए, कैबिनेट में इस प्रस्ताव का विरोध शेख राशिद, शाह महमूद कुरैशी, असद उमर और शिरीन मज़ारी ऐसे मंत्रियों द्वारा करवाया गया जो कि इस्टेबलिशमेंट के न सिर्फ करीब माने जाते है बल्कि वे इस्टेबलिशमेंट का कैबिनेट में प्रतिनिधित्व करते है।
मैं समझता हूँ कि पाकिस्तान द्वारा भारत से आयात करने के निर्णय से जो पाकिस्तान के साथ भारत मे झंझावात आया है, उसको सही परिपेक्ष में देखने व समझने के लिए अभी भी बहुत कुछ अनकहा और अनबुझा है लेकिन वह सब भविष्य के लिए, क्योंकि कहानी अभी भी बाकी है।
पुष्कर अवस्थी
संपादक विचार
राष्ट्र इंडिया