पालतू बनने के डर से

जब कुछ आदमी

औरतों की जाँघों से निकल गए

वे कवि बन गए

पर वे कवि

जिनकी कविताओं के पाँव

मासिक धर्म

और गर्भपात जैसे शब्दों ने भारी किए

वे जो मानने लगे कि

औरत के चंगुल से निकलकर

बुद्ध बना जाता है

पर जिनके रूपकों में

औरत की देह हावी रही

वे जो

वेश्याओं से

हमदर्दी रखने के खेल के बाद

औरत के सिर्फ़ गर्म ख़याल

अपने रूपकों में लाए

और फिर नायक बनकर

जाँघों से बाहर निकल आए

इतना कुछ कह गए

वे औरतों के बारे में

फिर भी कैसे कहूँ मैं ये

कि ये उनके विचारों का शीघ्रपतन था?

मुकेश पाण्डेय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here