“चीन की वर्तमान स्थिति: ड्रैगन जितना भी फड़फड़ा रहा है, अपने ही जाल में स्वयं ही जकड़ता ही जा रहा है।”

दो दिन पहले उसने ताइवान के ऊपर से अपने 38 फाइटर जेट उड़ाये। कुछ महीने पहले उसने 19 उड़ाये थे। और उसके कुछ महीने पहले कुल चार या पाँच जेट उड़ाये थे तो ताइवान वालों ने एक को तो अपने छोटे से विमान से दौड़ा कर मार गिराया था।

दरअसल चीन अपने यहाँ हजारों वर्ष पूर्व लिखी ‘आर्ट ऑफ वार’ नामक पुस्तक के अनुसार कार्य करता है। जिसमें केवल यही लिखा है कि बिना युद्ध किये कैसे युद्ध को जीत लिया जाए। इसमें लिखा है कि कैसे दूर-दूर से उकसाते-भड़काते फिर शांति करते-करते सामने वाले को परेशान कर डालो। यदि शत्रु शक्तिप्रदर्शन से डर जाता है तो जीत तो हो ही गई, अन्यथा यदि सामने वाला भी युद्ध के लिए उत्सुकता दिखाए तो खुद ही वापस हो लो।

चीन ने आजतक कोई युद्ध नहीं जीता है। चीन और पाकिस्तान की सेना एकदम एक जैसी ही है। डरे सहमे कायर सैनिक तथा उनके अधिकारी, जो केवल संख्या बल को ही शौर्य मानते हैं।

चीन, भारत के साथ भी यही किया तथा करता रह रहा है। जब भारतीय सैनिकों ने पटक-पटक कर मारा तो वे वापस हो लिए डर के मारे, बाद में फिर चढ़ आए। चीन बस यही कर रहा है। चीन, ताइवान के साथ भी यही कर रहा है। वह देखना चाहता है कि विश्व समुदाय कैसी प्रतिक्रिया देता है।

विश्वशक्तियों के लिए ताइवान की स्थिति भारत जैसी नहीं है। इसीलिए वे भारत को अकेला चीन के सामने छोड़ देती हैं परन्तु ताइवान के लिए सभी मिलकर आक्रमण करेंगे। उन्हें करना ही होगा।

आइए समझते हैं कि क्यों?

दरअसल, ताइवान सम्पूर्ण विश्व में ‘इलेक्ट्रॉनिक चिप’ बनाने में अग्रणी है। इसको यूँ समझिए कि ताइवान तथा दक्षिण कोरिया मिलकर सम्पूर्ण विश्व के 80 प्रतिशत चिप का निर्माण करते हैं, उसमें भी ताइवान का प्रतिशत कहीं बहुत अधिक है। सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि ताइवान अपने चिप का 95 प्रतिशत से भी अधिक भाग दूसरे देशों यथा अमेरिका, चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया, भारत आदि को बेच देता है जबकि कोरिया अधिकतर चिप का प्रयोग स्वयं करता है।

और चिप इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? क्योंकि आज के युग में चाहे वो मोबाईल फोन बनाना हो या सेटेलाइट, खिलौना गाड़ी बनानी हो या कोई सचमुच की मर्सिडीज या फिर अंतरिक्ष मे जाने वाले रॉकेट, सबमें चिप लगी होती हैं। दरअसल यही चिप आज के युग में मशीनों के दिमाग के अलग-अलग भाग हैं। इनके बिना आज मोबाईल, कंप्यूटर आदि की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

यही कारण है कि चीन इस ताइवान पर अपना अधिकार करके सम्पूर्ण विश्व का नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहता है, और यही वो कारण हैं कि संसार की महाशक्तियाँ ऐसा होने नहीं देंगी। अमेरिका तो ताइवान के साथ लिखित में वचनबद्ध है ही, जापान के इस वर्ष के अपने ‘राष्ट्रीय घोषणापत्र’ मे खुलेआम कह ही दिया है कि ‘कोई यदि ताइवान पर आक्रमण करता है तो जापान इस आक्रमण को अपने ऊपर समझेगा।”

अमेरिका जापान के साथ भी लिखित में वचनबद्ध है सुरक्षा देने के लिए। नाटो देश तो वही करेंगे जो अमेरिका कहेगा, अतः सम्पूर्ण नाटो देशों की सेनाएं सम्मिलित ही समझी जाती हैं।

ऑस्ट्रेलिया से चीन ने इसी वर्ष पंगा ले ही लिया है जब अपने हर वर्ष के चीन जाते कोयले की बहुत भारी मात्रा को चीन के ही बंदरगाह पर रोक लिया कि अब चीन को कोयला नहीं देगा। भारत के व्यापारियों ने मौके पर चौका मारते हुए ड्रैगन की गोद मे रखे कोयले को पच्चीस प्रतिशत के भारी डिस्काउंट के साथ खरीद लिया। चीन में बिजली की त्राहि-त्राहि मचने का कारण यह कोयला भी है।

चीन में हालात इस तरह खराब हैं कि चीन अपने ठंडे प्रदेशों मे भी लोगों को पानी गरम करने के लिए बिजली के इस्तेमाल को मना कर दिया है। उसके बावजूद चीन में बिजली के चलते ‘एप्पल’ जैसी दिग्गज कंपनियों को भी अपने भारी-भरकम कारखाने बंद करने पड़ रहे हैं। चीन डेढ़-दो गुने पर भी कोयला खरीदना चाहता है, पर इस समय उसको इतनी भारी मात्रा में कोयला मिल नहीं पा रहा है कि अपने बिजली संयत्र सुचारु रूप से चला सके। दो महीने पहले आई बाढ़ की तबाही ने उसके जलसंयत्रों की वैसे ही बुरी हालत कर रखी है।

ऊपर से चीन की सबसे बड़ी कंपनी एवरग्रांड दिवालिया घोषित हो चुकी है। वो इतने फ्लैट बना रही थी जितने मे जर्मनी और फ्रांस जैसे G20 के पाँच देश पूरे के पूरे उन फ्लैटों मे समा जाएं। इतनी बड़ी कंपनी दिवालिया हो जाए तो सोचिए कि क्या हो सकता है! ऐसी कंपनियाँ अपने पैसे से फ्लैट नहीं बनाती हैं बल्कि सैकड़ों बैंकों से लोन लेकर बनाती हैं। अतः अब वे बैंक भी डूबेंगे, उनसे जुड़े करोड़ों लोग डूबेंगे। तथा जितने लोग उन फ्लैट में अपने जीवन का सभी धन लगाकर एक अदद आशियाने की प्रतीक्षा कर रहे थे, उनके दहाड़ें मारकर रोते वीडियो अब चीन की लाख सेंसरशिप के बावजूद दुनिया भर के समाचारों में चलने लगे हैं। उनको यदि कोई देख ले तो दिल बैठ जाता है।

एवरग्रांड के दिवालिया होने का असर बहुत व्यापक है लेकिन चीन अभी भी खबरों को दबाए बैठा है। विशेषज्ञ कयास लगा रहे हैं कि यह 2008 के अमेरिका के ‘लेहमेन ब्रदर्स’ के दिवालिया हो जाने से भी बड़ा असर हो सकता है क्योंकि अमेरिका ने बेल आउट पैकेज देकर समस्या को किसी तरह संभाल लिया था, लेकिन चीन बार-बार पैकेज देकर भी उबर नहीं पा रहा है।

यह आर्थिक बम भी विश्व में कोरोना जैसा ही ‘आर्थिक महामारी’ ला सकता है, परन्तु अब विश्व सतर्क है। मोदी जैसे सशक्त नेतृत्व की वजह से भारत जैसे बढ़ते आर्थिक प्रगति वाले देश तो थोड़ा झटका खाकर संभल जाएंगे, पर छोटे देश जैसे पाकिस्तान, श्रीलंका आदि जोकि पूर्ण रूप से चीन के कर्ज के जाल मे फँसे हैं, चीनी ड्रैगन इनको पूरा चूस सकता है।

भारत ने, ताइवान के साथ सीधे 50,000 करोड़ की चिप बनाने की फैक्ट्रियों की डील पिछले हफ्ते ही कर चुका है। वे कंपनियाँ भी भारत में आने की तैयारी कर रही हैं। उधर भारत ने श्रीलंका में बन रहे चीनी बंदरगाह के निकट ही दूसरा बंदरगाह खरीद लिया है। चीन तिलमिला उठा है, इसीलिए बॉर्डर पर आकर धमकी देने की बचकानी हरकतें कर रहा है।

भारत, चीन को हर दिशा में मुँहतोड़ उत्तर दे रहा है।

अमेरिका से शीत युद्ध के चलते रूस अभी चीन को पीछे से सहारा दे रहा है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होता है कि ड्रैगन अभी भी सुधरता है या फिर टुकड़े-टुकड़े होकर ही अक्ल आएगी उसको!

प्रदीप शुक्ला

विकाश पाण्डेय

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