जहाँ – जहाँ कुछ करे के पहल होई
उहें – उहें केहू के लहल होई

जहाँ से उजाड़ल गइल ह आजु फूस
उहें खड़ा काल्हु कवनो ‘महल’ होई

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नीचे जे झाँकेला ऊपर से लोग
कुछ गाँव गंगा के बाढ़ में दहल होई

आजु जवन गइल ह टूट फेरू लोगे
ऊ जरूर आपन सपना रहल होई

मुकेश पाण्डेय

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