ब्राह्मणो के बारे में – हिंदी में
ब्राह्मण जाति को हिन्दू धर्म में शीर्ष पर रखा गया है। लेकिन ब्राह्मणो के बारे में आज भी बहुत ही कम लोग जानते है, कि ब्राह्मण कितने प्रकार के होते है। और उनके गोत्र कौन-कौन से होते है। आज के दौर में 90% ब्राह्मण भी ब्राह्मणो की वंशावली को नहीं जानते। आओ आज ब्राह्मणो की फुल वंशावली के बारे में हिंदी में जानते है।
सरयूपारीण ब्राह्मणों का इतिहास
सरयूपारीण ब्राह्मण जिनको सरवरिया ब्राह्मण भी कहा जाता है। सरयूपारीण ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणो को कहा जाता है। सरयूपारीण ब्राह्मण कन्याकुब्ज ब्राह्मणो की ही एक शाखा है। भगवान् श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्रामणो से यज्ञ करवाकर उन्हें सरयू के पार ठहरने का स्थान दिया था। इसी वजह से ये ब्राह्मण सरयूपारीण ब्राह्मण कहलाये सरयूपारीण ब्राह्मण, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश बिहार छत्तीसगढ़ में भी रहते है। सरयु नदी को सरवार भी कहा जाता था।
उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक सरवार क्षेत्र फैला हुआ है। प्रयाग, काशी, बस्ती, गोरखपुर, रीवा, छपरा ,अयोध्या, इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में आते हैं।
एक अन्य मत के अनुसार भगवान् श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था, बल्कि जब भगवान् श्री राम ने रावण का वध किया था। तब भगवान् श्री राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। उस ब्रह्म हत्या से उद्धार होने के लिए भगवान् श्रीराम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था। तब कुछ ब्राह्मण स्नान करने के बहाने से सरयू नदी को पार करके उस पार चले गए थे, और भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं की थी, इसलिए उनको सरयूपारीण ब्राह्मण कहा गया।
सरयूपारीण ब्राह्मणों के मुख्य गाँव
शुक्ल वंश में गर्ग ऋषि हुए थे। जिनके तरह लड़के थे। उनको तेरहों को गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है। गर्ग ऋषि के तरह लड़के अलग अलग तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे। उन तेरह गांव के नाम कुछ इस प्रकार हैं –
- 1. बुद्धहट
- 2. महुलियार
- 3. महसों
- 4. मल्हीयन
- 5. मोढीफेकरा
- 6. कनइल
- 7. भरवलियाँ
- 8. अकोलियाँ
- 9. बकरूआं
- 10. भेंडी
- 11. खखाइज खोर
- 12. मामखोर
- 13. लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव – इन चारों गांव को एक ही माना गया है। क्युकी ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं।
ब्राह्मणो के प्रकार
ब्राह्मण मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते है। जिन्हे उत्तर पंच गौड़ भी कहा जाता है।
- 1. सारस्वत
- 2. कान्यकुब्ज
- 3. गौड़
- 4. मैथिल
- 5. उत्कलये
इन्ही को उत्तर के पंच गौड़ कहा जाता है। वैसे ब्राह्मण अनेक हैं, जिनका वर्णन आगे लिखा है।
इसी प्रकार पूरे भारतवर्ष में मुख्य ब्राह्मणों की संख्या 115 की है। शाखा भेद अनेक है। इनके आलावा भी ब्राह्मणों की अनेकों संकर जातियां भी है। यहां पर आपको मै उत्तर व् दक्षिण भारत के 115 ब्राह्मणो की नामावली दे रहा हूँ। इन्ही 115 ब्राह्मणो की शाखाओं में से 1 से 2 , 2 से 5 ,5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए है। शाखा भेद के आधार पर उत्तर व् दक्षिण के ब्राह्मणों की संख्या 230 के लगभग है। इनमे से कुछ मुख्य ब्राह्मण इस प्रकार है।
- 1. गौड़ ब्राह्मण,
- 2. गुजरगौड़ ब्राह्मण
- 3. श्रीगौड़ ब्राह्मण
- 4. गंगापुत्र गौडत्र ब्राह्मण
- 5. हरियाणा गौड़ ब्राह्मण
- 6. वशिष्ठ गौड़ ब्राह्मण
- 7. शोरथ गौड़ ब्राह्मण
- 8. दालभ्य गौड़ ब्राह्मण
- 9. सुखसेन गौड़ ब्राम्हण
- 10. भटनागर गौड़ ब्राम्हण
- 11. सूरजध्वज गौड ब्राम्हण
- 12. मथुरा के चौबे ब्राम्हण
- 13. वाल्मीकि ब्राम्हण
- 14. रायकवाल ब्राम्हण
- 15. गोमित्र ब्राम्हण
- 16. दायमा ब्राम्हण
- 17. सारस्वत ब्राम्हण
- 18. मैथल ब्राम्हण
- 19. कान्यकुब्ज ब्राम्हण
- 20. उत्कल ब्राम्हण
- 21. सरवरिया ब्राम्हण
- 22. पराशर ब्राम्हण
- 23. सनोडिया या सनाड्य
- 24. मित्र गौड़ ब्राम्हण
- 25. कपिल ब्राम्हण
- 26. तलाजिये ब्राम्हण
- 27. खेटुवे ब्राम्हण
- 28. नारदी ब्राम्हण
- 29. चन्द्रसर ब्राम्हण
- 30. वलादरे ब्राम्हण
- 31. गयावाल ब्राम्हण
- 32. ओडये ब्राम्हण
- 33. आभीर ब्राम्हण
- 34. पल्लीवास ब्राम्हण
- 35. लेटवास ब्राम्हण
- 36. सोमपुरा ब्राम्हण
- 37. काबोद सिद्धि ब्राम्हण
- 38. नदोर्या ब्राम्हण
- 39. भारती ब्राम्हण
- 40. पुश्करर्णी ब्राम्हण
- 41. गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
- 42. भार्गव ब्राम्हण
- 43. नार्मदीय ब्राम्हण
- 44. नन्दवाण ब्राम्हण
- 45. मैत्रयणी ब्राम्हण
- 46. अभिल्ल ब्राम्हण
- 47. मध्यान्दिनीय ब्राम्हण
- 48. टोलक ब्राम्हण
- 49. श्रीमाली ब्राम्हण
- 50. पोरवाल बनिये ब्राम्हण
- 51. श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण
- 52. तांगड़ ब्राम्हण,
- 53. सिंध ब्राम्हण
- 54. त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण
- 55. इग्यर्शण ब्राम्हण
- 56. धनोजा म्होड ब्राम्हण
- 57. गौभुज ब्राम्हण
- 58. अट्टालजर ब्राम्हण
- 59. मधुकर ब्राम्हण
- 60. मंडलपुरवासी ब्राम्हण
- 61. खड़ायते ब्राम्हण
- 62. बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण
- 63. भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
- 64. लाढवनिये ब्राम्हण
- 65. झारोला ब्राम्हण
- 66. अंतरदेवी ब्राम्हण
- 67. गालव ब्राम्हण
- 68. गिरनारे ब्राम्हण
- 69. ऋषिश्वर ब्राह्मण
गोत्र किसे कहते हैं?
व्यक्ति के वंश की परंपरा जहां से आरम्भ होती है। उस वंश का गोत्र भी वहीँ से प्रचलित होता गया है। ब्राह्मण गोत्रों के मूल ऋषि :- विस्वामित्र, जमदग्नि, भरद्वाज, अत्रि, गौतम, वशिष्ठ, कश्यप और अगत्स्य। इन्ही आठ ऋषियों की संतानें गोत्र कहलाती है। अगर किसी का गोत्र भारद्वाज है तो उसके पूर्वज ऋषि भरद्वाज थे। और वह व्यक्ति इस गोत्र का वंशज होता है।
प्रवर किसे कहते है?
अपनी कुल परम्परा के पूर्वजों एवं महान ऋषियों को प्रवर कहा जाता है। अपने कर्मो द्वारा ऋषिकुल में प्राप्त की गई श्रेष्ठता के अनुसार उन गोत्र प्रवर्तक मूल ऋषि के बाद होने वाले व्यक्ति, जो महान हो गए, वे उस गोत्र के प्रवर कहलाते हें। इसका अर्थ है कि कुल परम्परा में गोत्रप्रवर्त्तक मूल ऋषि के आलावा भी अन्य ऋषि भी विशेष महान हुए थे।
ब्राह्मणो को पूजनीय क्यों माना गया है?
शास्त्रों में ब्राह्मणो का स्थान सर्वप्रथम बतलाया गया है। ब्राह्मण की बताई हुई विधियों से ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों की सिद्धी मानी गयी है | ब्राह्मण का महत्व बताते हुए शास्त्रों ने कहा है :-
ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य: क्रतः |
ऊरु तदस्य यद्वैश्य पदाभ्यां शूद्रो अजायत || (यजुर्वेद ३१ | ११)
अर्थात ब्राह्मण की उत्पत्ति भगवान् के श्री मुख से हुयी है। साथ ही बाहू से क्षत्रिय की, उरु से वैश्य की और चरणों से शुद्र की उत्पति हुई है | उत्तम अंग यानी भगवान् के श्रीमुख से उत्पन्न होने तथा सर्वप्रथम उत्पन्न होने के कारण और वेद को धारण करने के कारण ही ब्राह्मण को पूजनीय माना गया है।
ब्राह्मण को देखकर श्रद्धापूर्वक प्रणाम करना चाहिए। उनके आशीर्वाद मात्र से मनुष्य की उम्र के साथ साथ उसकी यश कीर्ति भी बढती है, वह चिरंजीवी होता है। ब्राह्मणों को देखकर भी प्रणाम न करने से, तथा ब्राह्मणों से द्वेष रखने से तथा ब्राह्मणो के प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है, धन ऐश्वर्य का भी नाश होता है, तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है। इसलिए बाबा तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में कहा है, कि –
पूजिय विप्र सकल गुनहीना।
कवच अभेद्य विप्र गुरु पूजा।
एहिसम विजयउपाय न दूजा।।
ब्राह्मण को देवता क्यों कहा गया ?
दैवाधीनं जगत्सर्वं, मंत्राधीनं देवता।
ते मंत्रा विप्रं जानंति, तस्मात् ब्राह्मणदेवताः।।
यह सारा संसार विविध देवों के अधीन है। देवता मंत्रों के अधीन हैं। उन मंत्रों के प्रयोग-उच्चारण व रहस्य को विप्र भली-भांति जानते हैं इसलिये ब्राह्मण स्वयं देवता तुल्य होते हैं। यही कारण है कि ब्राह्मण को देवता कहा गया है।
ऊँ नमो ब्रह्मण्यदेवाय,
गोब्राह्मणहिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय,
गोविन्दाय नमोनमः।।
गौ सेवक, जगत के पालन हार ब्राह्मणो के रक्षक भगवान् श्रीकृष्ण जी के चरणों में हम वंदन करते है। जिनके चरणारविन्दों को भगवान् अपने वक्षस्थल पर धारण करते है, उन ब्राह्मणों के पावन चरणों में हमारा कोटि कोटि प्रणाम है।