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दोपहर 12.35 पर हिमाचल से एक मित्र का फोन आता है कि दिल्ली में मौजूद एक साझा (कामन) मित्र के भाई उम्र 57 साल.. संभावित कोरोना पॉजीटिव हैं, ऑक्सीजन लेवल 35 के आसपास पहुंच चुका है। बेहद गंभीर स्थिति में गोरखपुर मेडिकल कालेज इमरजेंसी के बाहर पहुँचने वाले हैं.. उन्हें फौरन ऑक्सीजन और बेड चाहिए। कुछ करिये…

मैंने मित्र को कहा मरीज के साथ जो भी हों उन्हें हमारा नंबर दें। उसके बाद हमनें जिला कोविड नोडल अधिकारी को फोन किया, फोन उठने पर उन्हें मरीज के अर्धचेतना में होने के साथ ऑक्सीजन स्तर की जानकारी दी। जबाब मिला फौरन इमरजेंसी पहुंचें।

फोन काट कर वेटिंग में आ रहे मरीज के साथ उनके भाई का फोन उठाया।

भाई साहब.. इमरजेंसी के बाहर आ गए हैं। बाहर खड़ी एम्ब्युलेंस से मरीज को ऑक्सीजन स्पोर्ट मिल गया है.. अब क्या करें?

मैनें कहा- आप फौरन भीतर जाइये और बताइये की टेस्ट नहीं हुआ है लेकिन पेशेंट कोविड के संभावित लक्षण वाला है। ऑक्सीजन की स्थिति तेज आवाज में बताइये।

12 बज कर 44 मिनट पर यानी बीआरडी मेडिकल कालेज पहुंचने के 10 मिनट के भीतर मरीज भर्ती हो चुके थे और उन्हें बेड, ऑक्सीजन सपोर्ट मिल चुका। अब पहले उनका इलाज शुरू है। टेस्ट इत्यादि साथ में होते रहने वाले हैं।

यहां इस केस में उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री द्वारा एक छोटे दिखने वाले निर्णय और फील्ड में उसके क्रियान्वयन ने एक जीवन बचाने का काम किया : कल देर रात आदेश हुआ कि ऐसे रोगी जिनकी प्रयोगशाला जांच नहीं होती अथवा होने के उपरांत भी रोगी में कोविड रोग की पुष्टि नहीं होती है परंतु लक्षणों के आधार पर अथवा एक्स-रे/सीटी स्कैन/रक्त जांच इत्यादि अन्य जांचों के आधार पर वे कोविड रोग से प्रभावित प्रतीत होते हैं वह ‘प्रिजम्प्टिव कोविड-19 रोगी’ की श्रेणी में आते हैं।

बस इसी निर्णय के अनुपालन ने एक व्यक्ति की न सिर्फ जीवन रक्षा की बल्कि मानवता को निगलने निकली इस महामारी को यहां पराजित किया है। चित्र में रोगी के एडमिशन पर्चे पर लाल रंग की कोविड सस्पेक्टेड पेशेंट की मुहर देखी जा सकती है।

कोरोना के इस दूसरे भयानक हमले में यह मानना होगा कि स्थितियाँ बेहद परेशान करने वाली हैं लेकिन समय रहते खुद चेतने और सही जगह पहुंचने पर ऐसे सकारात्मक समाचार भी मिलने हैं इन तमाम दुख, संताप के बीच।

संपूर्ण आत्मरक्षा करते हुए दुर्भाग्य से महामारी के नजदीक पहुंच जाने की दशा में समय रहते सही जगह पहुंच कर सब कुछ सही सही बताएं, छोटी-बड़ी जानकारियों पर निगाह रखें, लोगों के फोन तुरंत उठाएं, सन्देश फौरन देखें.. जो बन पड़े उस मदत में लगें और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को आपकी-हमारी मदत करने दें। मैनें भी कोई जुगाड़ नहीं लगाया, कोई जान पहचान नहीं खोजी बल्कि सार्वजनिक उपलब्ध नंबरों में से एक पर सही जानकारी और कल के आदेश का उल्लेख किया और मरीज के साथ घबराए परिवारजन को हिम्मत हौसला देते हुए मिली जानकारी साझा करता रहा।

यह अनुभव साझा करना भी उस नैतिक धर्म का निर्वहन है जिसमें लाख नकारात्मकता में एक सकारात्मक कदम मानवता को मजबूती और हिम्मत देता है।

अवनीश पी. एन. शर्मा

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