सभा में आम हाल के चर्चा जे आ गइल
ग़ज़ल में साँच बतिया अचके कहा गइल
चहुँ ओर शोर बा कि नया भोर आ रहल
अधरतिये बिना तेल के दियरी बुता गइल
बान्हे के बान्हS अबहीं, होते रहल विचार
असों त फेरू बाढ़ में सब कुछ दहा गइल
उपजल अनाज एतना, उनकर छपल बयान
कई दिन, कई रात भूखे सहा गइल
सद्भाव होखे कायम, समिति बन रहल
तबहीं त कतहीं केहू भी दंगा करा गइल