स्वर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar)अमर हैं. भारत के हर आम ओ खास के दिलों के भीतर रहने वाली लता दी का बिहार, बिहार की बोली व भाषा एवं बिहारियों से खास नाता रहा है. लदा दी का एक रिश्ता हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) जगत में अपनी विशेष छाप छोड़ने वाले संगीतकार चित्रगुप्त श्रीवास्तव (Chitragupta) से भी जुड़ता है. गोपालगंज जिले में जन्म लेने वाले चित्रगुप्त और लता दी के बीच न सिर्फ संगीत का प्रोफेशनल रिलेशन था बल्कि भावनात्मक लगाव भी था. इसी से जुड़ा एक किस्सा स्वयं चित्रगुप्त ने सुनाया था. एक मशहूर वाकया आज भी विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में दर्ज हैं.
दरअसल, समान्य परिवार से आने वाले चित्रगुप्त का जीवन भी बहुत ही साधारण जीवन जीते थे. जब मुंबई फिल्मी दुनिया में जहां दूसरे संगीतकार अपने काम के लिए मोटी कमाई लेते थे. चित्रगुप्त की फी सिर्फ 20 हजार रुपए थी. इसी दौर में लता दी चित्रगुप्त का एक किस्सा है. दरअसल, एक बार एक रिकॉर्डिंग के लिए दोनों को स्टूडियो पहुंचना था. लेकिन, चित्रगुप्त उस दिन लंगड़ाते हुए चल रहे थे. पीछे से लता मंगेशकर आ रही थीं. उन्होंने चित्रगुप्त को ऐसे परेशानी में देख लिया. तो लता दीदी ने उनसे पूछा, क्या हुआ? आप ठीक तो हैं, पैर में दर्द है क्या?
इस पर चित्रगुप्त ने कहा, दरअसल, मैं टूटी चप्पल पहनकर आया हूं. इस पर तपाक से लता दीदी ने कहा, ‘चलिए आपके लिए हम नई चप्पल खरीद ले आते हैं. तो चित्रगुप्त बोल पड़े, अरे नहीं, ये चप्पल मेरे लिए लकी है, जब मैं इन्हें पहन कर अपने गाने की रिकार्डिंग पर जाता हूं तो सब अच्छा होता है.. ये सुनते ही लता दीदी हंस पड़ीं और बोलीं, अरे चित्रगुप्त जी को हमारे गाने पर नहीं बल्कि अपनी चप्पल पर ज्यादा यकीन है. इतना सुनना था कि वहां मौजूद सभी लोगों की हंसी छूट आई और यहीं लता दी और चित्रगुप्त श्रीवास्तव के बीच का भावनात्मक नाते के बारे में सबको पता चला.
बता दें कि चित्रगुप्त के निर्देश में लता ने कई अमर गी गाए हैं. इनमें प्रमुख रूप से ‘लागी छूटे ना अब तो सनम’ (लता-रफी, फिल्म- काली टोपी लाल रुमाल), ‘दगाबाज हो बांके पिया’ (लता-उषा, फिल्म-बर्मा रोड), ‘एक बात है कहने की आँखों से कहने दो’ (लता-रफी, फिल्म-सैमसन), ‘आ जा रे मेरे प्यार के राही’ (लता-महेंद्र, फिल्म-ऊँचे लोग), ‘दिल का दिया जला के गया’ (लता, फिल्म- आकाशदीप) जैसे गीत शामिल हैं.