दिल्ली के लाजपत नगर में एक रिश्तेदार के घर बैठा था। ६-७ जवान लड़के साथ ही खाना खा रहे थे। देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है, मैंने पूछा। भ्रष्टाचार, एक ने कहा। साफ़ पानी, दूसरा बोला। कोई बिजली, कोई महँगाई, कोई ग्लोबल वार्मिंग से पीड़ित था। किसी को गोरक्षकों की गुंडागर्दी की चिंता थी तो कोई सड़क पर प्यार के इज़हार की छूट की कमी को लेकर चिंता में था। आतंकवाद या मज़हबी कट्टरपन नहीं? मैंने पूछा। जवाब आया- “ये तो सब राजनीति है जी, सब राजनेता लड़वा देते हैं आवाम को। वरना आम लोग तो अमन शान्ति से रहना चाहते हैं। ये सब वोट बैंक की राजनीति करते हैं। वरना कोई धर्म मज़हब बुरा नहीं होता”। और अचानक मेरी आँखों के आगे पिछले १३०० सालों का इतिहास घुमड़ घुमड़ कर आने लगा।

आठवीं सदी में मुहम्मद बिन क़ासिम का जिहादी जंगी जुनून, काफ़िर राजा दाहिर का कटा सर, इराक़ में हज्जाज इब्न यूसुफ़ के हरम में दाहिर की बेटियों के कुचले हुए जिस्म, लड़ाई के बाद सिंध में सड़कों पर सड़ती काफ़िरों की लाशें, अधमरे सैनिकों की दिल चीर देने वाली चिंघाड़, क़ासिम के जिहादियों के चंगुल में आयीं हज़ारों काफ़िर औरतें, उनकी बोटी बोटी नोचे जाने से उठी चीत्पुकार, १०-१० जिहादियों के नीचे फँसी उस माँ को जिसके दुधमुँहे बच्चे को अल्लाहु अकबर के नारे के साथ भाले की नोक पर घुसा कर हवा में उछाल दिया गया था, उस माँ को जो यह नहीं जान पा रही थी कि कौन सी तकलीफ़ ज़्यादा बड़ी है- एक साथ १० हैवानों के बीच अपने जिस्म को नुचवाना या अपने बच्चे को भाले की नोक पर लटके हुए

देखना या उस जिगर के टुकड़े को आख़िरी आशीर्वाद भी नहीं दे पाना।   ग्यारहवीं सदी के पहले साल से ही महमूद ग़जनवी के जंगी दस्ते, १/२/३/१७ बार सोमनाथ मंदिर का विध्वंस, करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक ज्योतिर्लिंग जो अब टुकड़े टुकड़े होकर जिहादियों के क़दमों में पड़ा था, हज़ारों सर जो धड़ों से जुदा करके खेतों में फेंक दिए गए, पेशावर, मुल्तान, लाहौर, के वो जले हुए शहर, उनमें भुट्टों की तरह भून दिए गए बुतपरस्त काफ़िर। 

   बारहवीं सदी के वो गुरु चेले- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और मुहम्मद गौरी, राजा पृथ्वीराज के राज्य में उसी के टुकड़ों और दया पर पलने वाले चिश्ती के ख़्वाब में आए इस्लामी नबी, उसका हिन्दुस्तान पर हमला करके बुतपरस्त काफ़िरों को सबक़ सिखाने के लिए गौरी को चिट्ठी, पहली लड़ाई में पृथ्वीराज के सामने घुटनों पर आकर सिर झुकाने वाले गोरी का अगली बार फिर से झपटना, और अपनी जान बख़्शने वाले के सर को अपने मुल्क ले जाकर क़िले के दरवाज़े पर टाँग देना, उसके साथ हुआ अल्लाहु अकबर का अट्टाहस, हिन्दुस्तान में मूर्तिपूजकों के ख़ून से घुटनों तक दरया बहाने के गुरु चेलों के मंसूबे और कत्लेआम। तेरहवीं सदी में बख़्तियार ख़िलजी का हमला। नालंदा और विक्रमशिला के महीनों तक धूँ धूँ करके जलते भवन, तकबीर के नारों और फ़तह के जश्न के शोर के बीच मौत के आग़ोश में समा गए हज़ारों आचार्य, शिक्षक, शिष्य, मर्द, औरत, बच्चे।    चौदहवीं सदी में महारानी पद्मिनी को पाने के लिए अलाउद्दीन ख़िलजी का चित्तौड़ का हमला, शादीशुदा माँ समान रानी को अपने बिस्तर में देखने के जिहादी मंसूबे, हज़ारों महारानियों, रानियों,

राजकुमारियों, और साथी स्त्रियों की सामूहिक पूजा, पूरा शृंगार करके आरती अर्चना, भीमकाय क़िले के बीचोंबीच हज़ारों मन लकड़ियों को इकट्ठा करते शाही हाथी, अहाते के चारों तरफ़ उन लकड़ियों को जमता देखती कन्याओं की टोली, प्रचण्ड आग में कूदने के पहले एक दूसरे से आख़िरी गले मिलना, धर्म की विजय की कामना करते हुए महारानी पद्मिनी का अग्निकुण्ड में प्रवेश, एक पल में लकड़ी को कोयला कर देने वाली दहकती आग में माँ समान कोमल महारानी और हज़ारों स्त्रियों का अंतिम प्रयाण, मर कर भी किसी जिहादी के हाथ ना आने का अतुल्य संतोष, मर कर भी सम्मान नहीं मरने देने का सुख, आने वाली पीढ़ी के वीर पुत्र अपनी जलती माताओं का प्रतिशोध ज़रूर लेंगे, इस संदेश के साथ उस ऊँची उठती आग में धुआँ हो जाने वाली राजमाताएँ और पुत्रियाँ।

इसी सदी में काफ़िरों के कटे सरों की मीनारें बनाने वाला तैमूर, दिल्ली शहर का वो कत्लेआम, दहाईयों तक इंसानी वजूद से ख़ाली हो जाने वाले शहर, गिद्ध, चील, भेड़ियों और जानवरों के शोर में ढके हुए शहर, क़रीब २ करोड़ इंसानों के क़ातिल का दिल्ली की गलियों में बेख़ौफ़ घूमना, पूरी दुनिया की इंसानी आबादी के ५% हिस्से को अपनी तलवार से ख़त्म करने वाले उस लंगड़े के चेहरे के भद्दे चेचकी दाग़। सोलहवीं सदी के मुग़ल बाबर के हाथों से काटे गए हज़ारों सरों की मीनारों के जुलूस, मीनारों के ख़ौफ़ से पूरे के पूरे शहरों का इस्लाम क़ुबूल करना, बाजौड़ की औरतों की दर्दनाक दास्ताँ, बाबर के हरम से हर रात निकलने वाली कमसिन बच्चों की चीख़ें, अफ़ीम के नशे में सर काटने की प्रतियोगिता। करोड़ों हिंदुओं के

भगवान राम के मंदिर का ज़मीन में दफ़न किया जाना।  इसी सदी में बाबर के पोते अकबर महान का अपने उस्ताद बैरम खाँ को फ़ारिग़ करके माँ समान उसकी बीवी से निकाह, चित्तौड़ के क़ब्ज़े के दिन ३०,००० बेगुनाह औरतों, बच्चों, बूढ़ों और जवानों का अपने हाथों से कत्लेआम, सैंकड़ों राजस्त्रियों का जौहर की आग में फिर से पलायन, ५,००० काफ़िर औरतों और बच्चों से भरा हुआ हरम, रिश्ते में बेटी, पोती और बहू लगने वाली औरतों/बच्चों की दर्दनाक चीख़ों से भरी हुई हरम की रातें। सत्रहवीं सदी में अकबर महान के बेटे जहांगीर का हिंदू-सिखों के गुरु अर्जन देव जी को इस्लाम क़ुबूल करने का हुक्म, गुरु का इनकार, गुरु की मौत का फ़रमान, जलते लोहे के तवे पर गुरु का बैठना, ऊपर से गरम रेत से बदन को छलनी करना, भालों से गुरु का माँस उतारना, बादशाह

जहांगीर का आख़िरी बार इस्लाम क़ुबूल करने का हुक्म? गुरु का आख़िरी इनकारी जवाब, गुरु को उनकी गाय माता की खाल में सिल कर मारने का फ़रमान, इस पर गुरु का रावी नदी में स्नान के लिए जाना और फिर कभी वापस नहीं आना। इसी सदी में अकबर महान के पड़पोते औरंगज़ेब के हाथों इस्लाम क़ुबूल नहीं करने पर लाखों हिंदुओं का कत्लेआम। हज़ारों मन्दिरों को ज़मींदोज़ करके मूर्तिपूजक हिंदुओं को असली खुदा की ताक़त का एहसास करवाना, हिंदू-सिखों के गुरु तेग़ बहादुर जी को इस्लाम क़ुबूल नहीं करने पर क़त्ल का फ़रमान, दिल्ली की धरती पर गुरु का उड़ता हुआ सर, भाई मति दास का आरे से चीरा गया बदन, भाई सती दास का रुई में लपेट कर जलाया गया जिस्म, भालों पर झूलते ७०० सिखों के कटे सर, दिल्ली में कटे सरों के जुलूस,

छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी की यातनाओं के २० दिन, इस्लाम नहीं क़ुबूल करने के लिए ख़ंजर से निकाली गयीं आँखें, अल्लाहु अकबर नहीं बोलने के लिए खींची गयी ज़बान, उँगलियों के खींचे गए नाख़ून, पत्थरों से कुचली गयीं उँगलियाँ, चिमटों से खींची गयी जिस्म की खाल, ख़ंजरों से काटी गयी बोटी बोटी, तलवार से कलम किया गया सर। अठारहवीं सदी में हिंदू-सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी के ५ और ८ साल के छोटे छोटे बच्चों का अपहरण, उन्हें इस्लाम क़ुबूल करने का हुक्म, बच्चों का इनकार, दीवार में ज़िंदा चिनवाए गए बच्चे, अल्लाहु अकबर का शोर। बच्चों के बलिदान का बदला लेने वाले बंदा वैरागी का दिल्ली आना, शेर के पिंजरे में उसे क़ैद करके दिल्ली शहर में घुमाना, दुधमुँहे बच्चे का माँस ख़ंजर से निकाल के पिता बंदा

के मुँह में ठूँसना, इस्लाम क़ुबूल नहीं करने पर बदन के टुकड़े टुकड़े दिल्ली की सड़कों पर। देवी के अपमान पर पैग़म्बर का अपमान करने के जुर्म में १४ साल के बालक हक़ीक़त राय का लाहौर में माँ की आँखों के सामने तन से जुदा सर। इतना सुनना था कि खाने की मेज़ पर रोटी के निवाले हलक में अटक गए। रूँधे हुए गले से रोटी नीचे नहीं उतरती थी। भाई, ये सब क्या था? अगर ये सब सच है तो हमने स्कूल में ये सब क्यों नहीं पढ़ा? १४ आँखों से आँसू लुढ़क रहे थे। कमरे में ख़ामोशी ही ख़ामोशी थी जो ७ लोगों के सुबकने से टूट रही थी। एक सवाल मन में कौंध रहा था, क्या कारण है कि जिस देश में पिछले १३ सदियों का एक एक साल ख़ून में डूबा हो, एक भी सदी बिना औरतों, बच्चों, माँओं की अगणित चीख़ पुकार सुने बिना नहीं बीती, जिस देश

में आज भी उन १३०० सालों के हमलावरों, माओं को नंगा घुमाने वालों, उनको अरब की ग़ुलाम मंडियों में बेचने वालों, बलात्कार करने वालों, लाखों मंदिरों-मूर्तियों को तोड़ कर उन पर मस्जिद बनाने वालों, करोड़ों लोगों को तलवार के ज़ोर पर हिंदू से मुसलमान बनाने वालों को हीरो, वली और इस्लाम का ग़ाज़ी समझा जाता हो, ग़ज़नी, बाबर और औरंगज़ेब के नाम की मस्जिदें बनाकर उनमें बैठ कर करोड़ों हिंदुओं के ज़ख़्मों पर दिन में ५ बार, सप्ताह में ३५ बार, महीने में १५० बार और साल में १८२५ बार नमक मिर्च रगड़ा जाता हो, जिस देश में बलात्कारी बाबर के नाम की मस्जिद के लिए लाखों लोग सड़कों पर उतर आते हों, औरंगज़ेब के नाम की मस्जिद से दिल्ली में तकारीर की जाती हों, जिस देश को ७० साल पहले इन्हीं क़ातिल लुटेरों के मानने वालों ने दो टुकड़े कर के फेंक दिया, जिस देश के टुकड़े होने

के बाद भी बचे खुचे पर शरीयत के काले क़ानून के साये हैं, जिस देश के २०% लोग देश का क़ानून मानने से इनकारी हों, मज़हब मुल्क से ऊपर है, इस बात का खुल्लम खुल्ला एलान करते घूमते हों, जिस देश में ६०० में से ८६ जिलों में ऐसे लोगों की संख्या २०% के पार हो चुकी हो, जिस देश में हिंदू को कश्मीर से साफ़ किया गया हो, राजधानी दिल्ली से १०० किलोमीटर दूर कैराना में हिंदुओं का पलायन किया जा चुका हो, मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर, बुलन्दशहर, रामपुर, मुरादाबाद आदि में पलायन की तैयारी हो चुकी हो, जिस देश में बचे खुचे हिंदू ८ राज्यों में अल्पसंख्यक बन चुके हों, जिस देश के स्कूलों में रमज़ान के दिनों में हिंदू बच्चों के लिए भी खाने पर पाबंदी लगनी शुरू हो गयी हो, जिस देश की राजधानी में हनुमान आरती को रमज़ान के महीने में रुकवा दिया गया हो क्योंकि

मूर्तिपूजा से मोहल्ले के लाखों अल्पसंख्यक लोगों की धार्मिक भावनाएँ आहत हो जाती हैं, जिस देश में आपके लिए घेरा तंग से तंगतर होता जा रहा हो, उस देश के युवाओं की समस्या क्या हैं? भ्रष्टाचार, ग्लोबल वार्मिंग, गोरक्षक, खुले में प्यार करने की आज़ादी पर रोक?  शर्म से सर नीचे हो गया। पर ऐसा क्यों हुआ? युद्ध के गरजते बादलों और दुश्मन की चुनौती के बीच इस ‘भ्रष्टाचार/ग्लोबल वार्मिंग/ चुम्बन की आज़ादी’ की नपुंसकता का राज क्या है? लाजपत नगर – दिल्ली की एक रेफ़्यूजी कॉलोनी जहाँ पर पाकिस्तान से कट पिट कर हिंदू सिख १९४७ में आकर बसे थे, उस में बैठ कर ७० साल बाद बदले की बजाय ‘सब राजनीति है, वरना लोग तो सब शांति से रहना चाहते हैं’ की नामर्दानगी उनमें किसने डाली?

हिंदुस्तान के विभाजन में पाकिस्तान का ज़ेहन साफ़ था। पाकिस्तान मुस्लिम रियासत होगी। हिन्दुस्तान हमेशा की तरह संशय में था। सदियों लुटने पिटने और चौथाई देश खोने के बावजूद भी ‘मानवता ही हमारा धर्म है, अहिंसा ही हमारा रास्ता है’ के खोखले जुमले इस देश की नींव बने। ‘सब धर्म बराबर हैं’ के अर्थहीन दावे इतिहास को मुँह चिढ़ा रहे थे। हिंसा को अहिंसा से जीतेंगे, झूठ को सच से जीतेंगे, नफ़रत को मोहब्बत से जीतेंगे, इस तरह के मदारी के खेल करते हुए यहाँ के नपुंसक नेता और उनके भक्त सत्ता में आए। अपनी अहिंसा से एक मक्खी की टाँग भी ना तोड़ पाने वाले अहिंसक वीरों ने ठान लिया था कि पाकिस्तान को प्यार से जीतेंगे और हिन्दुस्तान में मुसलमान को हिंदू से मिलाकर ही दम लेंगे। सदियों से ख़ुद को हिन्दुस्तान का फ़ातेह और विजयी समझने वाला मुसलमान कहीं बँटवारे की वजह से बहुसंख्यक हिंदू की ‘नफ़रत’ का शिकार ना हो, इसके लिए शुरू हुआ ‘हिंदू-मुस्लिम एकता’ का भयानक खेल। बहुसंख्यक हिंदुओं के मन में अल्पसंख्यक मुसलमानों के लिए भाईचारा बढ़ाने के लिए रचाया गया एक नया इतिहास। १००० साल के हमलों को हज़ार साल की हुक्मरानी/सल्तनत का नाम दिया गया। हर मुसलमान हमलावर और दो कौड़ी के ग़ाज़ी को हिन्दुस्तान का राजा बताया गया। दिल्ली के बाहर हरियाणा तक भी जिनके फ़रमान काग़ज़ के टुकड़ों से ज़्यादा कुछ नहीं थे, उन्हें पूरे हिन्दुस्तान का बादशाह बताया गया। अफ़ीम के नशे में हाथी और गैंडे का फ़र्क़ भी ना कर पाने वाले बाबर को हिंदुस्तान के मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बताया गया। हर सप्ताह मीना बाज़ार सज़ा कर हिंदू औरतों का भरे

बाज़ार शिकार करने वाले अकबर को नरम दिल बादशाह की पदवी दी गयी। ५००० काफ़िर औरतों से हरम सजाने वाला, काफ़िर राजाओं को उनकी औरतों की डोलियाँ हरम में भेजने को मजबूर करने वाला, चितौड़ में ३०,००० निर्दोष निहत्थे लोगों को एक दिन में क़त्ल करने वाला अकबर महान बनाया गया। जोड़ घटाव जैसे सामान्य गणित करने में भी लाचार शाहजहाँ को ताज महल का शिल्पकार कहा गया। टनों के हिसाब से सरों से गर्दनें और कंधों से जनेऊ उतारने वाले कतलगीर ऐय्याश औरंगज़ेब को टोपी सिलकर गुज़ारा चलाने वाला आलमगीर कहा गया। ‘मुग़लों ने हिन्दुस्तान को ताजमहल, बिरयानी और कुर्ता पायजमा दिया’, जैसे कि इस सब से लाखों क़त्ल, लाखों मंदिर और अनगिनत लुटी हुई आबरू का हिसाब हो गया!

इतिहास की किताबों में यह सब पढ़ कर नतीजा यह निकला कि एक आम हिंदू ने ख़ुद को १००० साल तक हारी हुई ग़ुलाम क़ौम समझ लिया। साथ ही ख़ूँख़ार लुटेरों, हमलावरों और बलात्कारी दहशतगर्दों को अपना गौरवशाली इतिहास। हिंदुओं ने हमलावरों को अपना इतिहास समझ कर दोस्ती कर ली। एक आम हिंदू को फ़ख़्र है उसके राजा अकबर पर जिसने इंसानियात के लिए दीन ए इलाही चलाया। जिसने हिंदू औरतों को रखैल ही नहीं अपनी बीवी भी बनाया और बराबरी का रिश्ता रखा। दिल्ली में बाबर रोड, हुमायूँ रोड, अकबर रोड, जहाँगीरपुरी, शाहजहाँ रोड, औरंगज़ेब रोड, शेरशाह सूरी रोड आदि दिल्ली की गंगा जमुनी सभ्यता की प्रतीक समझी गयीं। कुल मिलाकर हिंदू ने हमलावर मुसलमानी इतिहास से दोस्ती करके उसे आत्मसात कर लिया। क्योंकि हिन्दुस्तान एक

धर्मनिरपेक्ष देश है, इसलिए हिंदू अब हिंदू ना होकर हिंदुस्तानी हो गया। देश धर्म से ऊपर हो गया। अब बारी मुसलमान की थी। भारत के अहिंसा वीरों ने सोचा कि अब जब हिंदुओं ने मुसलमान के इतिहास को अपना इतिहास समझ लिया, उनको अपना राजा समझ लिया, उनको अपना लिया तो मुसलमान भी अब कट्टरता और मज़हबी हठधर्मी छोड़ कर मुख्य धारा में आएँगे और भारत माता के आगे सिर झुकाएँगे। पर इन मदारियों को इल्म नहीं था कि जिसने घर से ही बुतपरस्त हिंदू के ऊपर अपनी क़ौम के १००० साल की हुकूमत के क़िस्से सुने हुए थे और जो हिंदू और मूर्तिपूजा से नफ़रत के कारण गोरी, ग़ज़नी और बाबर के मुरीद थे, जिन्होंने भारत को एक दासी से ज़्यादा कुछ नहीं समझा वो इसे माता कहकर सिर कैसे झुकाएँगे? मुसलमान ने हिंदुस्तान के एक क़ानून को मानने से इनकार

किया। हिंदुस्तान के इतिहास को नकारा। राम से नफ़रत की, बाबर से प्यार किया। महाराणा प्रताप से नफ़रत की, अकबर से प्यार किया। शिवाजी से नफ़रत की। औरंगज़ेब से मुहब्बत की। अपने हिंदू पूर्वजों को नकार कर अरबों, तुर्कों, अफ़ग़ानों और ईरानियों से नाता जोड़ा। अपनी ही माँ बहनों के हत्यारों के आगे सजदा किया। नतीजा यह कि एक आम हिंदू अपना इतिहास भूल कर ग़ैरों की गोद में जाकर बैठ गया। और एक आम मुसलमान दोबारा हिंदुस्तान पर इस्लामी हुकूमत के सपने देखने लगा। एक मरने को तैयार हो गया। एक मारने को। जोड़ी ख़ूब जमी। नतीजा यह कि ७० साल पहले विभाजन के बाद १०% से भी कम आबादी वाला मुसलमान हिंदुस्तान में आज १७% हो गया जबकि ९०% हिंदू घट कर ७९% रह गया। हर बीतते हुए साल में यह अंतर बढ़ता है। पर फ़िक्र किसको है?

धर्मनिरपेक्षता के अपने तक़ाज़े हैं। हिंदू और मुसलमान के बीच शिकार और शिकारी के इस रिश्ते की बुनियाद वो झूठा इतिहास है जिसने एक आम हिंदू को सब ख़तरों से बेख़बर किया। जो क़ौमें अपना इतिहास याद रखती हैं, वो सदा ज़िंदा रहती हैं। जो क़ौमें अपना इतिहास भूल जाती हैं, वो इतिहास में खो जाती हैं। हिंदुस्तान का इस्लामी इतिहास एक ख़ूनी इतिहास है। पर केवल इसलिए कि वह ख़ूनी है, इस पर पर्दा डालना ठीक नहीं। जो लोग ख़ून देखकर आँखें बंद कर लेते हैं, उनकी आँखें सदा के लिए बंद हो जाती हैं। जो ख़ून देखकर उसकी जड़ में जाते हैं, वो तकलीफ़ सह कर भी इलाज कर लेते हैं और ज़िंदा रहते हैं। अब वक़्त आ गया है कि सच्चे इतिहास को जाना जाए। हमलावरों के असली चेहरे को उघाड़ा जाए।

कुछ लोग कहते हैं कि भाई बात तो आप ठीक कहते हैं पर यह सब बता कर शांति भंग हो जाएगी। तो भाई, शांति तो एक लाश में भी होती है। क्या वह क़ुबूल है? न्याय और शांति में जब भी किसी एक को चुनना हो तो न्याय को चुना जाता है। शांति न्याय का परिणाम हो तभी अच्छा लगता है। यदि वह अन्याय का बहाना बन जाए तो कायरता हो जाती है। हिंदू मुसलमान भाई हैं। उन्हें एक होना चाहिए। पर बाबर, अकबर और ग़ज़नी के सम्मान में नहीं। भारत माता के चरणों में। भारत माता के नियम मानने में। भारत माता के पुत्रों बप्पा रावल, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, छत्रसाल, गुरु गोबिन्द सिंह, बंदा वैरागी, वीर लचित, हरि सिंह नलवा, हक़ीक़त राय,

बिस्मिल, अशफ़ाक़, अब्दुल हमीद और ए पी जे अब्दुल कलाम को नमन करने के लिए। इसको छोड़ कर और कोई भाईचारा हमें मंज़ूर नहीं।

मुकेश पाण्डेय

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