हर जगहा एकहीं बजार हो गइल बाटे
सभे के इज्जत उधार हो गइल बाटे

अइसन बुझाता, रोग छूटबे ना करी
डागदर खुदही बेमार हो गइल बाटे

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घेट धइके अब केकर रोईं भईया
चिन्हारो त अनचिन्हार हो गइल बाटे

बास आवत बा, एह में पड़ गइल कीड़ा
जमकल पानी अस विचार हो गइल वाटे

केकरा खातिर ग़ज़ल लिक्खी बुझाए ना
जाहिल जब पढ़निहार हो गइल बाटे

मुकेश पाण्डेय

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