बहुत से लोगों को इस्लाम की ठीक जानकारी न होने के कारण वो यही कहते हैं कि जिस प्रकार सनातन धर्म में नास्तिक होता है ठीक वैसे ही इस्लाम में भी काफिर होता है ।

यानी कि काफिर जो है वो अरबी भाषा में नास्तिक का प्रायवाची शब्द ही है ।

जबकी हम इस्लामी पुस्तकों की जाँच पड़ताल में ये पाते हैं कि काफिर गैर मुसलमान को ही कहा जाता है न कि नास्तिक को ।

• जो अल्लाह को न माने, अल्लाह के फरिश्तों को न माने, जिब्रील और मिकाईल को न माने अल्लाह ऐसे ही अविश्वासी ( काफिर ) लोगों का दुशमन है ( सूरह बकर आयत 98 )•

जिसके हाथ से अन्य मुसलमान दुख न पावें वही मुसलमान है ( मिश्कात किताबुल ईमान सफा 3 हदीस 5 ) { यानी कि मुसलमानों को छोड़कर बाकी के लोग दुख पा सकते हैं } •

कल्मा पढ़ने वाला चोरी और जारी करे तो भी जन्नत में ही दाखिल होगा ( मिश्कात जिल्द 1 सफा 12, 13 हदीस 24 )•

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जन्नती जन्नत जायेंगे चाहे उन्होने कितने ही बुरे काम किए हों लेकिन दोखजी दोखज ही जायेंगे चाहे उनके काम कितने ही अच्छे क्यों न हों ( मिश्कात जिल्द 1 सफा 34 हदीस 90 )• माँ के पेट से ही सारे जन्नती और दोखजी होते हैं ( मिश्कात जिल्द 1 सफा 21 हदीस 78 )•

मुसलमान के बच्चे जन्नत में जायेंगे । मुनाफिकों के बच्चे और वह खुद दोखज जायेंगे ( मिश्कात जिल्द 1 हदीस 110 ) यहाँ इन हवालों से पता लगता है कि कोई भी व्यक्ति जो मुसलमान नहीं है उसके कर्म कितने ही सही क्यों न हो, वो पुण्यकर्ता, न्यायशील, दयालु आदि ही क्यों न हो वो काफिर है और दोखज जायेगा लेकिन वहीं मुहम्मद को आखीरी रसूल मानने वाला, उसके फरिश्तों को मानने वाला, कल्मा नमाज़ पढ़ने वाला कितना ही घटिया, लिच्चड़, कमीना ही क्यों न हो वह मुसलमान या मोमीन कहलायेगा और जन्नत में ही दाखिल होगा ।

अधर्मी और नास्तिक उसे कहते हैं जो कि मनुस्मृति 6/92 के अनुसार दस लक्षणों से युक्त नहीं है । लेकिन काफिर वो है जो इस्लाम को न माने ।

मुकेश पाण्डेय

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