मानस के बालकाण्ड में दुष्टों की वंदना का भी रोचक वर्णन है। दुष्टों के प्रति बुरा भाव रखने के बजाय उनका भी पूजन वंदन कर लेने से शुभ कार्य निर्विघ्न पूरे होगें, शायद तुलसी बाबा का यह भाव रहा हो या फिर यह प्रसंग केवल व्यंग भी हो सकता है। लेकिन ग्रन्थ के शुरुआत में रचनाकार का निश्छल और गंभीर रहना ही अधिक संभव लगता है और उन्होंने खल वंदना भी सच्चे मन से ही किया होगा।

-बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ।।
-पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरे।।

अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों को प्रणाम करता हूँ, जो बिना ही प्रयोजन, अपना हित करने वाले के भी प्रतिकूल आचरण करते हैं। दूसरों के हित की हानि ही जिनकी दृष्टि में लाभ है, जिनको दूसरों के उजड़ने में ख़ुशी और बसने में दुःख होता है।

-तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥
-उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके।।

जो तेज (दूसरों को जलाने वाले ताप) में अग्नि और क्रोध में यमराज के समान हैं, पाप और अवगुण रूपी धन में कुबेर के समान धनी हैं, जिनकी बढ़त सभी के हित का नाश करने के लिए केतु (पुच्छल तारे) के समान है और जिनके कुम्भकर्ण की तरह सोते रहने में ही भलाई है।

-पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरही।।
-बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा।।

जैसे ओले खेती का नाश करके आप भी गल जाते हैं, वैसे ही वे दूसरों का काम बिगाड़ने के लिए अपना शरीर तक छोड़ देते हैं। मैं दुष्टों को (हजार मुख वाले) शेषजी के समान समझकर प्रणाम करता हूँ, जो पराए दोषों का हजार मुखों से बड़े रोष के साथ वर्णन करते हैं ।

-बचन बज्र जेहि सदा पिआरा। सहस नयन पर दोष निहारा।।

जिनको कठोर वचन रूपी वज्र सदा प्यारा लगता है और जो हजार आँखों से दूसरों के दोषों को देखते हैं।

-उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति।
-जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति।।

दुष्टों की यह रीति है कि वे उदासीन, शत्रु अथवा मित्र, किसी का भी हित सुनकर जलते हैं। यह जानकर दोनों हाथ जोड़कर यह जन प्रेमपूर्वक उनसे विनय करता है।

-मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा।।

मैंने अपनी ओर से विनती की है, परन्तु वे अपनी ओर से कभी नहीं चूकेंगे।

-बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा।।

कौओं को बड़े प्रेम से पालिए, परन्तु वे क्या कभी अपने पसंद के भोजन के त्यागी हो सकते हैं?

इसलिए प्रेम से बोलिये श्रीराम लला विराजमान की जय….

अवनीश पी. एन. शर्मा

अवनीश पी. एन. शर्मा

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