आम मुसलमान के दिल में अपनी इस्लाम पसंदी और रिवायतों के लिए राज करने वाले मुस्लिम सुल्तान अपनी असल ज़िंदगी में कैसे थे, यह हिंदुस्तान के इतिहास में मिलता ही नहीं। इसे इस्लामी ख़ौफ़ कहें या हिंदुओं की अतिथि देवो भव परम्परा की एक और कड़ी, हिंदुस्तान पर ‘हुकूमत’ करने वाले अनपढ़ मुस्लिम सुल्तान ताज महल, लाल क़िला, क़ुतुब मीनार वग़ैरह बनाने वाले सिविल एंजिनियर बताए गए पर इनके अपने महलों के अंदर झाँकने की हिम्मत आज तक किसी इतिहासकार को नहीं हुई।
इतिहास के पन्नों से इनके रंगीन शौक़ मिटा दिए गए। जी हाँ, वो रंगीन शौक़ जिनके लिए आज किसी भी मुस्लिम मुल्क में गर्दन उड़ा दी जाती है। हिंदुस्तान का हर मुस्लिम सुल्तान समलैंगिक (लौंडेबाज) था।
शराब, अफ़ीम और हवस में दिन रात डूब कर खोखले हो चुके ये सुल्तान अपनी नामर्दानगी से तंग आकर तरह तरह के खेलों से अपने शिथिल पुट्ठों में जान डालने की कोशिश करते थे। कभी औरतों के साथ, कभी मर्दों के साथ, कभी बच्चों के साथ, और कभी जानवरों के साथ, ऐसा कोई नहीं जिसे इन्होंने छोड़ा था।

कभी कभी ख़ुद को औरतों के लिबास में क़ैद कर के आइने में ख़ुद को निहारते थे तो कभी औरत बन कर अपने मर्द महबूब को रिझाते थे। यौन कुंठाओं और हवस के खेलों के इसी दौर को इतिहास में मुस्लिम राज का सुनहरा दौर कहा गया। बात केवल बीवी या कुछ मर्द महबूब/दोस्तों तक सीमित नहीं रही।
नामर्द सुल्तानों के रूठे हुए पौरुष को जगाने के लिए बीवियाँ और कुछ दोस्त अब काफ़ी नहीं थे। हज़ारों बंदियों, लौंडों और बिना बालों वाले बच्चों से भरे हरम इन सुल्तानों की शान बढ़ाते थे। मुक़द्दस किताब में बताई गयीं गोरी, बड़ी आँखों और छातियों वाली हूरें, बिना बालों वाले, नीली आँखों वाले, सुंदर मुखड़े वाले कमसिन नरम लड़के – गिल्मां जैसे जन्नत से उतर कर हरम में आ गए थे। ग़ौर फ़रमाइए। सोमनाथ के मंदिर को नेस्तनाबूद करके इस्लाम के बुतशिकन (मूर्तिभँजक) ग़ाज़ी का ख़िताब पाकर आज तक भी मुसलमान दिलों पर राज करने वाला सुल्तान महमूद ग़जनवी परले दर्जे का ऐय्याश लौंडेबाज था।
पन्द्रहवीं सदी के मशहूर फ़ारसी इतिहासकार और इस्लामी विद्वान मुहम्मद खोंदमीर की किताब दस्तूरुल वुज़रा के मुताबिक़ एक बार सुल्तान को ख़बर मिली कि उसके एक वज़ीर अबुल अब्बास ने अपने घर में वीनस के जैसा ख़ूबसूरत बिना दाढ़ी वाला लौंडा छिपा रखा है। इतना सुनना था कि छटपटाते सुल्तान ने लौंडे की चाह में वज़ीर को फ़ौरन तलब किया। वज़ीर ने इस बात से इनकार किया तो सुल्तान ने ग़ुस्से में उसे नौकरी से बर्खास्त किया। सुल्तान उस लौंडे के लिए ऐसा पागल था कि बर्खास्त किए हुए वज़ीर के घर जा पहुँचा। जब वहाँ भी लौंडा नहीं मिला तो उसने हवस में धोखा खाए एक जानवर की तरह घर को तहस नहस कर डाला।
एक दूसरा जिहादी सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी हुआ। इसने गुजरात पर हमला करके राजा कर्ण देव की पत्नी महारानी कमला देवी को उठा लिया। साथ ही इस ग़ाज़ी ने एक लौंडे काफ़ूर हज़ार दीनारी को ग़ुलाम बनाया। यह लड़का कभी हिंदू था जिसको १००० दीनारों में ख़रीद लिया गया था।
इस तरह एक और हिंदू रानी को, जो कि एक दुधमुँहे बच्चे की माँ भी थी, ज़बरन इस्लाम क़ुबूल करवाया गया। बच्चा पिता के पास रह गया। माँ को सुल्तान ख़िलजी ले गया। मुसलमान बनाकर उससे निकाह रचाया गया। धन्य है भारत देश! जिसमें ऐसे हैवान के दुधमुँहे बच्चों की माँओं से बलात्कार के ख़ौफ़नाक मंज़र भी कुछ फ़िल्म निर्माताओं को प्यार के क़िस्से दिखाई देते हैं। ख़ैर, सुल्तान की रातों का लौंडा साथी काफ़ूर हज़ार दीनारी जो मलिक काफ़ूर के नाम से मशहूर हुआ, सुल्तान का सहायक बनाया गया।
लौंडा जवानी की दहलीज़ पर था पर सुल्तान को एक और ही चिंता खा रही थी। जवान होकर अगर उसने बिस्तर में बग़ावत की तो? शिकार अगर शिकारी बन गया तो? बस इसी चिंता में इस लौंडे के अंडकोश काट दिए गए और उसे सदा सदा के लिए सुल्तान का मुलायम साथी बना दिया गया। मुस्लिम सुल्तान अपने लौंडों के साथ यह काम करते ही थे क्योंकि इस एक क़दम के कई फ़ायदे थे। – सुल्तान के लिए हरम के चुने हुए लौंडे केवल सुल्तान के इस्तेमाल में आएँ, लौंडों के आपस के इस्तेमाल में नहीं। – अब लौंडे शाही हरम की रखवाली के लिए भी रखे जा सकते थे और अब वहाँ की औरतों के किसी और के साथ भटक जाने का कोई डर नहीं था। –
लौंडे सदा चिकने और मुलायम रहते थे ताकि सुल्तान की ख़्वाहिश पूरी होती रहें और शिकारी कभी ख़ुद शिकार ना बन जाए। – इस तरह के लौंडों को फ़ौज, हरम (शाही वेश्यालय) और रियासत की अहम ज़िम्मेदारी दी जा सकती थीं क्योंकि ऐसे लोगों को औरत या लौंडों का लालच देकर ख़रीदा नहीं जा सकता था। सुल्तान मुबारक ख़िलजी एक और सुल्तान था जो लैला मजनू प्यार में नहीं मजनू-मजनू प्यार में दिलचस्पी रखता था। बिना दाढ़ी मूछों वाले लौंडे इसकी कमज़ोरी थे।
खुसरो खान नाम का एक गिल्माँ (नीली आँखों वाला कमसिन लड़का) इसकी आँखों का तारा था। वह एक इस्लामी बीवी की तरह इसकी ज़रूरतें पूरी करता था। दिन, रात, सोते, जागते, वह इसके इर्द गिर्द ही रहता। सुल्तान ने इसको अपनी फ़ौज की बागडोर देकर दक्षिण की तरफ़ भी भेजा। पर हाय री ज़ालिम तक़दीर! तूने इस प्रेम कहानी का ख़ात्मा किस बेदर्दी से किया! हर रात की तरह उस रात भी खुसरो सुल्तान की बाँहों में था, साँसें तेज़ थीं, सुल्तान का दिल उत्तेजना में ज़ोर से धड़कता था, और जैसे ही प्यार चरम सुख को पहुँचने को था, खच्च से आवाज़ हुई। सुल्तान शिकार हो चुका था। जिन बाहों ने आज तक बीवी का प्यार दिया, उन्ही बाँहों ने सुल्तान के मर्मस्थल पर वार कर दिया था।
सुल्तान आख़िरी प्यार के आग़ोश में दुनिया से विदा हो चुका था। खुसरो अगला सुल्तान बन गया था। इस्लामिक इतिहासकारों के मुताबिक़ सुल्तान सिकंदर लोधी लौंडेबाज़ी में फँसा एक और सुल्तान था। इसके हरम नीली आँखों वाले कमसिन जन्नती लौंडों से भरे होते थे। दिन में इसकी तलवार मूर्तिपूजक काफ़िरों के ख़ून से लाल रहती थी जो इस्लामी राज क़ायम नहीं होने तक म्यान में जाने की इंकारी थी। पर रात होते होते इसकी तलवार की लाली मद्धम हो जाती। हर रात कत्लेआम से लौट कर इसको कमसिन लौंडों के चेहरे की लाली में ज़्यादा दिलचस्पी होती थी। एक एक करके लौंडों और ग़ुलाम लौंडियों को पास बुलाकर यह अपने हरम में ही इस्लामी जन्नत का सा समां बाँध लेता था।
रात रात भर फिर ग़ाज़ी सुल्तान, लौंडे और लौंडियाँ आपस में मिलकर निबट लेते। सुल्तान सुबह उठ कर फिर से बुतपरस्त काफ़िरों के ख़िलाफ़ इस्लामी मोर्चा खोल देता। सुल्तानों के अपने मर्द महबूबों से ये नज़दीकियाँ बहुत लोगों को नागवार गुज़रती थीं। जैसे एक औरत अपने शौहर के साथ किसी और औरत को नहीं देख सकती, उसी तरह एक ग़ुलाम लौंडा दूसरे के साथ अपने सुल्तान को नहीं देख सकता था। यही हालत सुल्तान के गद्दी पर नज़र रखने वालों की थी।
यही वजह थी कि जब एक इस्लामी सुल्तान को अगला ग़ाज़ी सुल्तान क़त्ल करके गद्दी छीनता था तब उसके सब पसंदीदा लौंडों को भी क़त्ल किया जाता था कि कब ना जाने कौन सा लौंडा अपने शौहर का बदला ले ले। यह रिवाज पूरे इस्लामी सल्तनत में शुरू से आख़िर तक चला। गोरी से बाबर, बाबर से अकबर, अकबर से औरंगज़ेब और औरंगज़ेब से बहादुरशाह, इस्लामिक हरमों में कमसिन लौंडों के क़त्ल में कभी रियायत नहीं बरती गयी।

फ़रिश्ता में एक वाक़या है कि ग़ाज़ी फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के मर्द महबूबों को किस तरह मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने ३ दिन के भीतर रियासत छोड़ने का हुक्म दिया था जिसके नहीं मानने पर उनके क़त्ल का फ़रमान था। केवल कुछ ही आला दर्जे के कमसिन लौंडों पर यह हुक्म लागू नहीं था। बरानी के मुताबिक़, अल्लाह के करम से सुल्तान गियासुद्दीन तुग़लक़ लौंडेबाज नहीं था। उसे कमसिन लौंडों के साथ कभी नहीं देखा गया। पर जैसे ही बात सुल्तान के बेटे मुहम्मद बिन तुग़लक़ की होती है, सिवाय शर्म के और कुछ नहीं बचता।
अल्लाहताला का करम भी इस लौंडेबाज के अप्राकृतिक और घिनौने कामों पर पर्दा नहीं डाल सका। इब्न बतूता के मुताबिक़ इसी बात को लेकर बाप बेटे में घमासान मचा हुआ था। समलैंगिगता/लौंडेबाज़ी इन मुस्लिम शहज़ादों और सुल्तानों में इस क़दर फैली थी कि हर एक के हरम में कमसिन लड़कों के लिए अलग से विभाग बनाए गए थे।
ये सभी सुल्तान अपने राज्य के हर अहम पदों पर हिजड़ों (मर्द जिनके अंडकोश काट कर ज़बरदस्ती नामर्द बनाया जाता था) को लगाते थे। क्या दरबान और क्या वज़ीर, सब तरफ़ इन्हीं का बोलबाला था। पर सच बात तो ये है कि ये सब हवसी मुस्लिम सुल्तानों के मासूम शिकार थे जिनकी कोई ग़लती नहीं थी।
जिनको जब तक चाहा जाता, बिस्तर में इस्तेमाल किया जाता और जब चाहा जाता, क़त्ल कर दिया जाता या किसी और को बेच दिया जाता। जिनको उनकी मर्ज़ी के बिना अपने जिस्मानी खेल के लिए सुल्तान ज़बरदस्ती अपाहिज बनाते थे। और खेल देखिए कि इंसानियत के ऐसे धब्बों इन वहशी मुस्लिम सुल्तानों को ही हिन्दुस्तान के ‘उदारवादी’ इतिहासकार महान बताते हैं। इन यौन कुंठाओं के मरीज़, अफ़ीम और गाँजा के नशेखोरों और हज़ारों बच्चों और लड़कों की ज़िंदगी ख़राब करने वालों के कला प्रेम और भवन निर्माण के ज्ञान के मनघड़ंत क़िस्से सुनाकर नयी पीढ़ी को गुमराह करते हैं। अब वक़्त आ गया है कि इन झूठे मक्कार लोगों के ख़याली पुलिंदों का पर्दाफ़ाश हो।
तो आज से कोई भी अगर आपके आगे मुस्लिम राज के गौरवशाली क़िस्से सुनाए तो इन वहशी जानवरों के समलैंगिकता, लौंडेबाजी, काफ़िर औरतों पर हमला, अपहरण, ज़बरदस्ती इस्लाम क़ुबूल करवाने, बलात्कार करने, मासूम बच्चों और मर्दों के अंडकोश काटने, मासूम बच्चों के बचपन से खेलने वाले क़िस्से सुनाकर उनके मुँह बंद कीजिए।