पंजाब में फिरोजपुर जिले में सड़क मार्ग से हुसैनीवाली में एक जनसभा को संबोधित करने जारहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सुरक्षा में जो अतिक्रमण हुआ है, उसे लापरवाही समझना या मानना, मेरी बुद्धि और विवेक के लिए ये एक क्रूर उपहास से ज्यादा नहीं है।
मैं नही समझता की केंद्र सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम की पूरी बाते सामने आने दी है। जहां एक तरफ पंजाब की कांग्रेसी सरकार वा उसके मुख्यमंत्री चन्नी ने, पहले इसे कुदरती बता कर इसकी गंभीरता को विरल करने का प्रयास किया और फिर जब 5 घंटे बाद सार्वजनिक हुए तो परंपरागत प्रेस कांफ्रेंस कर, अपने हाथ झाड़ लिए। चन्नी ने वहां, प्रधानमंत्री के साथ हुसैनवाली के कार्यक्रम में अपने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम से ठीक एक रात पहले, न जाने के निर्णय को सहायक के कोविड से संक्रमित होने पर डाल, स्वयं को इस सुरक्षा में हुए अतिक्रमण से दूरी बनाने का प्रयास किया है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार भी बिना कुछ विवृत हुए, परंपरागत तरीके से पंजाब सरकार से सवाल जवाब कर रही है और मांग रही है।
इस पूरी घटनाक्रम की गंभीरता वा उसके मर्म को समझने के लिए बठिंडा हवाई अड्डे पर लौटने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां के अधिकारियों से,- अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद कहिएगा कि मैं बठिंडा हवाई अड्डे तक जिंदा लौट पाया, कहना बड़ा महत्वपूर्ण है। यही बात पंजाब के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने भी बताई, जिनको प्रधामंत्री की अगवानी वा विदाई का उत्तरदायित्व दिया गया था।
मैं अब जब विभिन्न सूत्रों से मिली सूचनाओं के आधार पर पूरे घटनाक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा किए गए कटाक्ष की परिधि में देखता हूं तो मुझे यही समझ आराहा है की कल पंजाब में नरेंद्र मोदी जी की हत्या करने का षड्यंत्र रचा गया था जो अंतिम समय में असफल हो गया। मैं समझता हूं की मोदी जी को हत्या करने के प्रयास का मूलस्थल, हुसैनावाली में होने वाली रैली के हेलीपैड के आसपास था। यह पंजाब में कुछ नया नही होता क्योंकि पहले भी खालिस्तानियों ने संत लोंगेवाल और मुख्यमंत्री बेंत सिंह की हत्या की गई है। मोदी जी की हत्या का प्रयास शायद बॉम्ब या रॉकेट लॉन्चर से किया जाना था। मेरा अनुमान है की केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों को शायद कोई इनपुट मिल गया था इसलिए अंतिम समय में वायुमार्ग की जगह, सड़क द्वारा जनसभा स्थल तक पहुंचने का निर्णय लिया गया। यह संभव है की मोदी जी से हुसैनवाली न जाने के लिए भी कहा गया हो लेकिन पूर्व की तरह, उन्होंने ने पंजाब से संदिग्ध परिस्थिति में वापिस लौटने को अच्छा विकल्प न समझ कर, सड़क मार्ग द्वारा ही जाने का निर्णय लिया। प्रधानमंत्री की यात्रा मार्ग वा साधन में हुए इस बदलाव से धरातल पर हत्या के प्रयास को संचालित करने वाले षड्यंत्रकारियों के हाथ से, समय वा स्थान दोनो के ही सूत्र फिसल गए और उनके पूर्वनिर्धारित योजना विपर्यय हो गई।
इन षड्यंत्रकारियों ने जब हाथ से मौका जाता देखा तो इस अल्पाविधि में एक दुस्साहसिक योजना बनाई। उनके द्वारा, पुलिस के तंत्र की विमुखता या सहयोग से, पहले से ही उस मार्ग पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को, सड़क पर भीड़ के रूप में लाकर, प्रधानमंत्री के काफिले को रोक कर, प्रधानमंत्री की कार पर बम या रॉकेट लॉन्चर चलाने का अवसर प्राप्त करने की कोशिश की गई। यह योजना इतने कम समय वा हड़बड़ी में बनी थी की सड़क पर, प्रदर्शन के लिए लाए गई भीड़ का संचालन ठीक से नहीं हुआ और प्रधानमंत्री की गाड़ी वा साथ में चल रही सुरक्षा वा प्रोटोकाल की गाड़ियां, पुल पर ही रुक गई। यदि ये गाड़ियां पुल को पार कर लेती और भीड़ ने उन्हें खुले में रोका होता तो चारो दिशाओं से प्रधानमंत्री की गाड़ी को निशाना बनाना ज्यादा सुलभ होता। पुल में फंस जाने के बाद और आसन्न खतरे के बलवंती होती संभावना को देख, वहीं से वापस मुड़ कर, यात्रा स्थगित करने का निर्णय लिया गया।
मुझे बिल्कुल भी इस बात पर संदेह नहीं है की पंजाब की इस यात्रा पर प्रधानमंत्री की हत्या किए जाने के प्रयास की इस योजना में सोनिया गांधी परिवार, पंजाब की कांग्रेसी सरकार, आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व वा खालिस्तानी तत्वों की मिलीभगत है। पंजाब का कांग्रेसी मुख्यमंत्री जिसे हुसैनवाली में, राष्ट्रीय शहीद स्मारक का दौरा करने आए प्रधानमंत्री के साथ रहना था, ने अपने इस कार्यक्रम को परसो ही निरस्त कर दिया और अंतर्ध्यान हो गया। उस वक्त इसका कोई कारण नहीं दिया गया था लेकिन बाद में, जब मोदी जी वापिस दिल्ली चले गए तब वह सार्वजनिक हुए और बताया की उनके 2 सहायक कैरोना से संक्रमित हो गए थे इसलिए वे प्रधानमंत्री के साथ नही गए थे। मुख्यमंत्री के साथ पंजाब के मुख्य सचिव वा डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस भी प्रधानमंत्री के साथ नही गए, जिन्हे प्रोटोकाल अनुसार होना चाहिए था। कल की घटना में पंजाब की पुलिस की संलिप्तता स्पष्ट दिख रही है। यह संलिप्तता, केवल स्थानीय पुलिस भर की नही है, यह शीर्ष तक जाता दिख रहा है। पंजाब में इस समय जो डीजी पुलिस है वे ऑफिसिएटिंग डीजी है और वे 1986 बैच के सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय है। इन्हे यह पद नवजोत सिद्धू के खुले समर्थन के कारण प्राप्त हुआ है।
किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री, मुख्यसचिव वा डीजी पुलिस, एक साथ तीनो ही प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर आए संकट के समय अनुपस्थित रहना, असामान्य है। जिस समय प्रधानमंत्री की गाड़ी वा उसके साथ चल रहा काफिला, सड़क पर फंसा हुआ था तब मुख्यमंत्री और डीजी पुलिस का संपर्क किए जाने पर फोन नही उठाना और भी असामान्य है। यह असामान्य व्यवहार भी संकेत दे रहा है की इन तीनो को ही किसी अनहोनी की प्रतीक्षा थी।
सिर्फ यही नहीं, जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सुरक्षा से खिलवाड़ हो रहा था उस वक्त इस षड्यंत्र के के मुख्य कर्ता, आंखो से ओझल है। सब ने अपने को सार्वजनिक जीवन से ओझल कर रक्खा है। राहुल गांधी विदेश में है और उसका पूर्व इतिहास यही बताता है की जब जब यह असुर विदेश जाता है तब तब भारत पर कोई न कोई संकट आता है। सोनिया गांधी अस्वस्थ हो, घर में ही बंद है, प्रियंका वाड्रा ने अपने को कोरोना से संक्रमित बता, आइसोलेशन में है और यही कुछ दिल्ली के आपियां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बता रखा है। यह सभी प्रमुख मोदीहत्या के अभिलाषी, सार्वजनिक जीवन से दूरी बना, पंजाब के खालिस्तानियों पर अपना अनुराग बिखेर रहे है। वो लोग जो किसानों के भेष में खालिस्तानियों को बढ़ा, मोदी जी पर वार करने का दुस्साहस कर रहे है, उन्हें शायद इसका आभास नहीं है की यदि कुछ अनहोनी हुई तो भारत की जनता, खालिस्तानियों से पहले उनको राजनैतिक हथियार बनाने वाले राजनीतिज्ञों वा उनके समर्थकों के गले में टायर डालेगी।
मैं नही समझता की कल जो कुछ हुआ वह एकाकी में हो जाने वाली घटना थी। अभी चुनाव में तीन माह बाकी है और मुझे संदेह है की 2022 में होने वाले यह पंजाब, उत्तरप्रदेश राज्य के चुनाव, कई ऐसी भयानकता को अभी अपने गर्भ में छिपाए है।