भारतीय जन संचार संस्थान के छात्र रहे मृत्युंजय कुमार पत्रकारिता के उन हजारों छात्रों में से एक हैं, जो रोहित सरदाना की पत्रकारिता से प्रभावित रहे हैं। आज रोहित की मृत्यु की खबर सोशल मीडिया पर आते ही, मानों हर तरफ शोक की लहर दौड़ गई। दुख के माहौल में भी वामपंथी, कथित निष्पक्ष और तथाकथित मानवाधिकार की दुकान वालों का समूह उनके लिए अनर्गल प्रलाप में लग गया।

स्मृत‍ि शेष: Rohit Sardana के Dangal के सफर की झलक‍ियां - Dangal highlights  as tribute to AajTak anchor Rohit Sardana - News AajTak

मृत्युंजय ने लिखा— ”हे राम! ये आदमखोर समय अनार्य (अविनाश पांडेय) कौन है ? जो दिवंगत रोहित सरदाना की दो प्यारी बेटियों के मरने की दुआ कर रहा है।” समर अनार्य उर्फ अविनाश पांडेय के फेसबुक प्रोफाइल से स्पष्ट होता है कि यह हांगकांग में रहकर एशियन ह्यूमन राइट कमिशन नाम के किसी एनजीओ में काम करता है। समर बस्ती, उत्तर प्रदेश का रहने वाला है।

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फेसबुक पर रोहित सरदाना की बेटियों के लिए मानवाधिकारवादी समर लिखता है— ”मर जाएं हरामखोर। हत्यारे बाप की औलादें हैं। रहेंगे तो मुश्किल ही करेंगे।” समर का यह संवाद ज्योति थानवी नाम की किसी महिला के साथ चल रहा था। दुर्भाग्य की बात यह है कि ज्योति ने दिवंगत पिता की दो बेटियों के लिए यह सब सुनने के बाद भी मानवाधिकारवादी समर को नसीहत नहीं दी। यह तक नहीं कहा कि ऐसी बकवास मुझसे मत करो।

 बताया जा रहा है कि ज्योति थानवी खुद बेटी की मां हैं। वे खुद भी किसी की बेटी रही होंगी। फिर वे रोहित सरदाना की बेटियों के लिए यह सब कैसे सुन पाईं ? ज्योति थानवी और समर हो सकता है कि रोहित से नफरत करते हों, लेकिन इस नफरत के बीच में उनकी बेटियों को लाना कहां तक उचित है ? समर अनार्या प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल, रवीश कुमार और ओम थानवी के करीबी माने जाते हैं।

जनजातीय समाज के लिए काम करने वाली एक गांधीवादी संस्था से जुड़े सिद्धार्थ शंकर गौतम के अनुसार— समर अनार्य उर्फ अविनाश पांडेय बस्ती उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। इसलिए उत्तर प्रदेश पुलिस को इस निंदनीय व्यवहार का सज्ञान लेना चाहिए।”  चूंकि वह चीन की फंडिंग वाले एक मानवाधिकार संगठन में काम करता है। हांगकांग रहता है। सिद्धार्थ संदेह व्यक्त करते हैं कि हो सकता है कि यह व्यक्ति देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो। इसकी कानूनी जांच होनी चाहिए।

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रोहित की पत्रकारिता को देखकर पत्रकारिता संस्थानों में दाखिला लेने वालों की एक लंबी श्रृंखला है। आज जब रोहित के ना रहने की खबर आई, हर तरफ शोक की लहर है। राजदीप सरदेसाई जैसे रोहित से असहमत रहने वाले पत्रकार भी उन पर पड़ी कोविड और हृदयघात की दोहरी मार पर शोक व्यक्त कर रहे हैं।

दूसरी तरफ कथित मानवाधिकारवादियों, प्रगतिशीलों और कट्टरपंथियों की एक बड़ी जमात रोहित सरदाना और उनके परिवार के लिए अपशब्द लिख रही है। मानवीय संवेदनाओं का उपहास उड़ाता यह व्यवहार मानवाधिकार और प्रगतिशीलता के नाम पर चल रही दुकानों की समाज में रही—सही प्रतिष्ठा को भी तार—तार कर रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘ऑड’ दिन पर सारी गरीमा को ताख पर रखने वाला यह निष्पक्ष प्रगतिशील समुदाय ही है, जो ‘ईवन’ दिन पर मानवीय मूल्यों की दुहाई देता फिरता है। इन सारी बातों को याद रखने की आज बहुत जरूरत है ताकि सनद रहे।

इस वक्त इस्लाम का सबसे पवित्र महीना चल रहा है। मौलवियों और मुफ्तियों के इस्लाम पर किए गए भाषणों में इस महीने की महत्ता ऐसी बताई गई है, मानों जानवर भी इस महीने में इंसान हो जाता है। रोहित सरदाना की मृत्यु के बाद देश भर के मुसलमान जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह शिक्षा उन्हें आखिर किस मजहबी किताब से मिली ? यदि मजहबी किताब रमजान के महीने में ऐसी भाषा के लिए कोई सजा तय नहीं करती, तो इसे क्या समझा जाए ?

इस्लाम के वरिष्ठजनों को उनके बीच बैठे ऐसे लोगों की पहचान करनी होगी, जिनकी वजह से रमजान के इस पवित्र महीने में भारतीय समाज के बीच इस्लाम की छवि खराब हो रही है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, रमजान ही तो वह महीना था, जब पैंगबर मोहम्मद ने इस्लाम की किताब ‘कुरान शरीफ’ का ज्ञान प्राप्त किया था। इसी महीने में कुछ मुसलमान जिनका दावा है कि वे कुरआन शरीफ की एक—एक आयत पर विश्वास करते हैं। वे दिवंगत रोहित सरदाना के लिए क्या—क्या लिख रहे है ?

शेख अशफाक लिखता है— ”दोस्तों रोहित सरदाना नामक बिकाऊ गोदी मीडिया का बादशाह कोरोना की चपेट में आकर मर गया।”

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शर्जिल उस्मानी का ट्विटर अकाउंट वेरिफायड है। वह रोहित को मानसिक रोगी लिख रहा है। एल्गार परिषद की बैठक में यही उस्मानी अपने भाषण में बोल आया था कि हिन्दुस्तान में हिन्दू समाज सड़ चुका है। लेकिन यह व्यक्ति इस्लाम के नाम पर देश भर में फैलाई जा रही कटृटरता और अराजकता पर कभी बात नहीं करता। जबकि अलीगढ़ मुस्लिम विवि के इस पूर्व छात्र को इस्लाम के नाम पर फैलाई जा रही गंदगी पर चिन्ता करनी चाहिए। रोहित को पत्रकार के तौर पर याद किया जाए या ना किया जाए, लेकिन शर्जिल को इंसान के तौर पर याद किया जाएगा या नहीं ? इसकी चिन्ता इस्लामवादियों को जरूर करनी चाहिए।

सोशल मीडिया पर कई वामपंथी और प्रगतिशील यूजर तो वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी की मृत्यु के लिए प्रार्थना करते हुए नजर आए।

इम्तियाज हुसैन का ट्विटर प्रोफाइल देखकर पता चलता है कि वे अलवर (राजस्थान) कांग्रेस के नेता हैं। उनका दो शब्दों का ट्वीट, उनकी पूरी मानसिकता जाहिर करता है। रोहित सरदाना के लिए इम्तियाज लिखते हैं— ”देर है, अंधेर नहीं।”

रोहित सरदाना आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जाते—जाते भी वे कई चेहरों पर चढ़ा वामपंथ, मानवाधिकार और निष्पक्षता का मुलम्मा उतार कर गए। इन चंद लोगों की वजह से करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले रोहित सरदाना के लिए हम सबका प्रेम कभी कम नहीं होगा।

मुकेश पाण्डेय

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