मेघनाद शुरू से ही जानता था की श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार है और उनके छोटे भाई लक्ष्मण शेषनाग के अवतार हे | फिरभी मेघनाद ने युद्ध करके अपने पिता रावण की आज्ञा का पालन करना उसका परम कर्तव्य समजा.
अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए युद्ध करने गया युद्ध के दौरान उसने सारे प्रयत्न किए लेकिन वह विफल रहा. और युद्ध में लक्ष्मण के घातक बाणों से मेघनाद मारा गया. लक्ष्मण ने मेघनाद का सिर उसके शरीर से अलग कर दिया.
उसका सिर श्रीराम के पास रखा गया. उसे वानर और रीछ देखने लगे. तब श्रीराम ने कहा, ‘इसके सिर को संभाल कर रखो. दरअसल, श्रीराम मेघनाद की मृत्यु की सूचना मेघनाद की पत्नी सुलोचना को देना चाहते थे. उन्होंने मेघनाद की एक भुजा को, बाण के द्वारा मेघनाद के महल में पहुंचा दिया.
वह भुजा जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना ने देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है. उसने भुजा से कहा अगर तुम वास्तव में मेघनाद की भुजा हो तो मेरी दुविधा को लिखकर दूर करो.
सुलोचना का इतना कहते ही भुजा हरकत करने लगी, तब एक सेविका ने उस भुजा को खड़िया लाकर हाथ में रख दी. उस कटे हुए हाथ ने आंगन में लक्ष्मण जी के प्रशंसा के शब्द लिख दिए. अब सुलोचना को विश्वास हो गया कि युद्ध में उसका पति मारा गया है. सुलोचना इस समाचार को सुनकर रोने लगीं. फिर वह रावण के पास गयी
रावण को सुलोचना ने मेघनाद का कटा हुआ हाथ दिखाया और अपने पति का सिर मांगा. सुलोचना रावण से बोली कि अब में एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहती में पति के साथ ही सती होना चाहती हूं.
तब रावण ने कहा, ‘पुत्री चार घड़ी प्रतिक्षा करो में मेघनाद का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर आता हूं. लेकिन सुलोचना को रावण की बात पर विश्वास नहीं हुआ. तब सुलोचना मंदोदरी के पास गई. तब मंदोदरी ने कहा तुम राम के पास जाओ, वह बहुत दयालु हैं.’
सुलोचना जब राम के पास पहुंची तो उसका परिचय विभीषण ने करवाया. सुलोचना ने राम से कहा, ‘हे राम में आपकी शरण में आई हूं. मेरे पति का सिर मुझे लौटा दें ताकि में सती हो सकूं. राम सुलोचना की दशा देखकर दुखी हो गए. उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को अभी जीवित कर देता हूं.’ इस बीच उसने अपनी आप-बीती भी सुनाई.
सुलोचना ने कहा कि, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे पति जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें. मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि आपके दर्शन हो गए. मेरा जन्म सार्थक हो गया. अब जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं.’
राम के कहने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए लेकिन उनके मन में यह आशंका थी कि कि मेघनाद के कटे हाथ ने लक्ष्मण का गुणगान कैसे किया. सुग्रीव से रहा नहीं गया और उन्होंने कहा में सुलोचना की बात को तभी सच मानूंगा जब यह नरमुंड हंसेगा.
सुलोचना के सतीत्व की यह बहुत बड़ी परीक्षा थी. उसने कटे हुए सिर से कहा, ‘हे स्वामी! ज्लदी हंसिए, वरना आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब सत्य नहीं मानेंगे. इतना सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा. इस तरह सुलोचना अपने पति की कटा हुए सिर लेकर चली गईं.