कुरआन मजीद में पारः १९, सूरः २६ की ९४वीं आयत में है कि- तो वे गुमराह (यानी बुत और बुतपरस्त) औंधे मुंह दोज़ख में डाल दिये जायेंगे। (अनुवादक-मौ० फ० मो० खाँ सा० जा०, पेज-५८९)
अर्थात् वे पथभ्रष्ट (मूर्तियाँ और मूर्तियों को पूजने वाले) दोनों औंधे मुँह नरक में डाल दिये जायेंगे। क्रआन मजीद के इन्हीं आदेशों को मानकर मुसलमान अपमानित हों। अलबेरूनी ने अपनी किताब ‘तहकीक-ए-हिन्द’ में लिखा है कि “महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर के शिवलिंग का एक टुकड़ा गजनी की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर डलवा दिया। जिससे कि मुसलमान नमाजी उस (शिवलिंग) में अपने पाँव घिस कर कीचड़ और गन्दगी साफ कर सकें।” महमूद गजनवी ने भारत के मन्दिरों को ढूँढ-ढूँढ़ कर लूटा व तोड़ा। मुसलमान बादशाह मन्दिर तोड़ने से पहले मन्दिर के अन्दर गाय कटवाते थे, फिर मूर्तियों के टुकड़े-टुकड़े कर मन्दिर को तोड़ देते थे। उसके बाद वह मन्दिर या तो मस्जिद में बदल दिया जाता अथवा मूर्तियों को तोड़कर शेष मन्दिर में थोड़ा परिवर्तन कराकर कोई असरदार मुसलमान को मरने के बाद उसमें दफन कर, मकबरा बना दिया जाता था। मूर्तियों को अपमानित करने के लिये उनके टुकड़े करके मस्जिदों की सीढ़ियों पर डलवा दिया जाता था, जिससे कि मुसलमानों के पैरों से वे मूर्तियाँ रोज कुचली जायें। औरंगजेब ने विश्वनाथ मन्दिर को तोड़ने के बाद मन्दिर की आधी दीवालों के ऊपर ही मस्जिद बनवा दी। यह इसलिये किया गया कि हिन्दू देखें और अपमानित हों। भारत की तमाम मस्जिदें ऐसे ही बनीं। यह मन्दिर बीच में कभी-कभी उस समय पुनः बन जाते थे। जब वहाँ का राज किसी हिन्दू को मिल जाता। लेकिन जैसे ही वह हिन्दू राजा मुसलमानों से हारता अथवा उनके हाथों मारा जाता, तो पुनः बने यह मन्दिर फिर से तोड़ दिये जाते। फिरोज तुगलक ने जगन्नाथ जी की मूर्ति को दिल्ली लाकर उसे आम जनता के सामने तरह-तरह से बहुत दिनों तक अपमानित कराया। मुसलमान बादशाहों ने मूर्तियों को तोड़वा कर उससे तौलने वाले बाँट बनवा दिये और कसाइयों में यह कह कर बँटवा दिया कि वह मूर्तियों के इन बाँटों से गाय का मांस तौला करें। उन्होंने मन्दिरों को तोड़ कर और मूर्तियों को अपमानित कर अपने धर्म के आदेशों का पालन किया। औरंगजेब ने दिल्ली का बादशाह बनते ही फर्मान (आज्ञा) जारी कर दिया कि पूरे देश के सभी मन्दिरों को तोड़ दिया जाय और उनके स्थान पर मस्जिदें बनवा दी जायें। संस्कृत पढ़ाने वाले स्कूल बन्द करवा दिये जायें तथा संस्कृत पढ़ने व पढ़ाने वालों को सख्ती से कुचल दिया जाये अथवा उनका कत्ल कर दिया जाये।
शेख हमदानी ने अपनी पुस्तक ‘जखीरातुल मुलुक’ में लिखा है कि “मुसलमानों के राज में कोई बुतखाना (मन्दिर) नहीं बनाया जा सकता। जो मन्दिर तोड़ दिये गये, उन्हें पुनः नहीं बनाया जा सकता। पुराने बने मन्दिरों (अगर वह कहीं बच गये है) में मुसलमान यात्री बिना किसी रोक-टोक के ठहर सकते हैं। काफिर हिन्दू अपने परिवार में किसी के बीमार होने या मरने पर जोर से नहीं रो सकेंगे। वे शंख, घंटा आदि नहीं बजायेंगे। यह नियम काफिर हिन्दुओं के लिये बने हैं, जिनका कड़ाई से पालन कराया जाता है।”
जियाउद्दीन बरनी ने अपनी पुस्तक “तारीख ए फिरोजशाही’ में लिखा है कि एक बार दिल्ली के बादशाह सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपने धार्मिक सलाहकार दिल्ली के काजी अलाउलमुस्क से पूछा “काफिर हिन्दुओं से कैसा व्यवहार करना चाहिये ?” (काजी का मतलब होता है मुसलमानो के धार्मिक कानूनों का ज्ञाता व न्यायाधीश) काजी अलाउलमुस्क ने उत्तर दिया “काफिर हिन्दुओं को नजराना व शुकराना भुगतान करने वाला समझना चाहिये। (यानी जब कोई हिन्दू, मुसलमान अधिकारी के सामने आये, तो कुछ धन दे, यह हुआ नजराना अर्थात् मुँह देखाई और जब वापस जाने लगे, तो भी कुछ धन दे, यह हुआ शकराना अर्थात दर्शन देने के लिये धन्यवाद।) अगर कर वसूल करने वाला मुसलमान अधिकारी, हिन्दू से चाँदी का सिक्का माँगे, तो वह हिन्दू बिना कोई प्रश्न पूछे अत्यन्त विनम्रता से सोने का सिक्का दे। यदि मुसलमान यूँकना चाहे, तो पास बैठा हिन्दू अपना मुँह खोलकर अपने मुँह के अन्दर थुकवा ले। काफिर हिन्दुओं को अधिक से अधिक अपमानित करना हमारा धार्मिक कर्तव्य है। हमारे धर्म का आदेश है कि इन काफिर हिन्दुओं को मुसलमान बना दो या हलाक (क़त्ल) कर दो। हिन्दुओं के लिये दो ही रास्ते हैं-इसलाम या मौत (अर्थात या तो मुसलमान बनें अथवा मार डाले जायें) एक रास्ता और बचता है कि गुलाम बनाकर उन पर हुकूमत (राज) करने के लिये यदि उनका कत्ल न किया जाये, तो उनकी जान बचाने के बदले उनसे जिज़या कर लिया जाये। यह मुसलमानो की मर्जी पर है कि वह इन हिन्दुओं को मार डालें अथवा उनको जिन्दा छोड़कर बदले में जिज़या वसूल करें। हिन्दुओं से इतना कर लिया जाना चाहिये कि कर चुकाने के बाद हिन्दू के पास इतना धन ही बच पाये कि वह उससे किसी तरह गुजारा कर सकें।” आगे बरनी लिखता है कि काजी का यह उत्तर सुनते ही बादशाह सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी खशी से चिल्ला पड़ा “ओह काजी ! तु तो बहत बड़ा विद्वान है, तुने जो कुछ कहा है, वह एकदम हमारे शरियत (धार्मिक कानून) के अनुसार है कि इन काफिर हिन्दुओं को दबाकर रखा जाये और उनको कुचल दिया जाये। अतः मैंने पहले ही आदेश दे दिये हैं कि इन हिन्दुओं के पास केवल गुजारे भर के लिये अनाज, दूध और दही बचे और उनके मन्दिरों को नष्ट करने के हक्म भी हमने जारी कर दिये हैं।”
हिन्दू नौजवानों के साथ धोखा
आजकल इतिहास की जो नयी किताबें छापी जा रही हैं, उनमें रोमिला थापर जैसी लेखकों ने मुसलमानों द्वारा धर्म के नाम पर काफिर हिन्दुओं के ऊपर किये गये इन भयानक अत्याचारों को गायब कर दिया है। नकली धर्मनिरपेक्षता वादी नेताओं की शह पर झूठा इतिहास लिखकर एक समुदाय की हिंसक मानसिकता पर जानबूझ कर पर्दा डाला जा रहा है। इन भयानक अत्याचारों को सदियों से चली आ रही गंगा जमुनी संस्कृति, अनेकता में एकता और धार्मिक सहिष्णुता बताकर नौजवान पीढ़ी को धोखा दिया जा रहा है, उन्हें अंधकार में रखा जा रहा है। भविष्य में इसका परिणाम बहुत खतरनाक होगा, क्योंकि नयी पीढ़ी ऐसे मुसलमानों की मानसिकता न जानने के कारण उनसे असावधान रहेगी और खतरे में फंस जायेगी।