कुरआन मजीद में अल्लाह के इन्हीं आदेशों को मानकर मोहम्मद बिन कासिम ने सन् ७१२ में सिंध के राजा दाहिर को हराने के बाद उसकी हत्या कर दी और पूरे सिंध में १७ साल के ऊपर के सभी हिन्दू काट डाले अथवा मुसलमान बना लिये। इन्हीं आदेशों से प्रेरित होकर महमूद गजनवी ने इस देश पर १७ बार हमला किया और लाखों हिन्दुओं को काटा। सोमनाथ मंदिर को लूटते और तोड़ते समय महमूद गजनवी ने ५००००० हिन्दुओं की हत्या की। सन् १०२६ में जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया तब का हाल इतिहासकार इब्नअसीर लिखता है कि “जब महमूद के सैनिक मन्दिर का फाटक तोड़ कर अन्दर घुसे तो वहाँ पर सैकड़ों पुजारी मूर्ति के सामने रो रहे थे और अपनी तथा मन्दिर की रक्षा के लिये प्रार्थना कर रहे थे। वे सभी मूर्ति के सामने ही काट डाले गये। सोने और हीरा जवाहरातों से ढंके हुए शिवलिंग को तोड़ दिया गया। जब मन्दिर के टूटने की खबर सोमनाथ शहर में पहुँची, तो शहर के हिन्दू, समूहों में पति-पत्नी गाँठ जोड़कर रोते हुए आते तथा मन्दिर में महमूद के सैनिकों के हाथों काटे जाते रहे। इस भयानक मार काट से सारा शहर सोमनाथ वीरान हो गया।”

सन् ११९२ में मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी ने तराइन के मैदान में पृथ्वीराज चौहान को हरा कर, बाद में पृथ्वीराज की हत्या कर दी। मुसलमान सैनिकों ने दिल्ली में हिन्दुओं को खूब लूटा, मारा-काटा। बाद में कन्नौज का राजा जयचन्द्र जिसने मोहम्मद गोरी का साथ दिया था, वह भी गोरी से पराजित होकर मारा गया। मोहम्मद गोरी की अगुआई में मुसलमानों ने कन्नौज से लेकर बनारस तक को लूटा और साथ-साथ हिन्दुओं का कत्लेआम किया। राजा जयचन्द्र की एक पत्नी सुहागदेवी ने मोहम्मद गोरी का साथ दिया था, बदले में गोरी ने सुहागदेवी से वायदा किया था कि युद्ध जीतने के बाद वह उसके पुत्र को कन्नौज का राजा बना देगा। जब मोहम्मद गोरी, जयचन्द्र का राज्य कन्नौज जीतकर हिन्दुओं को मारते काटते वनारस पहुंचा तो

सुहागदेवी ने मोहम्मद गोरी का स्वागत करते हुए अपना परिचय दिया। गोरी ने सुहागदेवी को कैद कर लिया और उसके पुत्र को राजा बनाने के स्थान पर मुसलमान बना लिया। मोहम्मद गोरी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, बलबन, अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक, सिकन्दर लोदी तथा बाबर से लेकर औरंगजेब, अहमदशाह अब्दाली आदि बादशाहों ने हिन्दुओं का भयानक कत्लेआम किया। सन् १३९८ में तैमूर लंग ने कैदी बनाये गये, लगभग एक लाख हिन्दुओं को कुछ घंटो में ही मौत के घाट उतार दिया तथा दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक अपने घोड़े दौड़ाये, रास्ते में पड़ने वाली हिन्दू बस्तियाँ लूट ली गयीं और जला दी गयीं। सन् १७३९ में नादिरशाह ने दिल्ली में पाँच घंटे में लगभग डेढ़ लाख हिन्दू गाजर मूली की तरह कटवा कर फेंकवा दिया।

सन् १५५६ में पानीपत के मैदान में अकबर से जब हेमू (हेमचन्द्र) हार गया, तो बैराम खाँ, हेमू को पकड़ कर अकबर के सामने लाया और अकबर से कहा कि जहाँपनाह अपनी तलवार से इस काफिर हिन्दू का सिर धड़ से अलग कर आप गाजी की उपाधि धारण करें। अकबर ने अपनी तलवार से हेमू का सिर काट कर गाजी की उपाधि धारण की। औरंगजेब ने गोकुल जाट के सिर और धड़ के टुकड़े-टुकड़े करके चील, कौवों और कुत्तों को खाने के लिए आगरे की कोतवाली के चबूतरे पर फेंकवा दिया। गोकुल जाट के पूरे परिवार को तथा उसके हजारों साथियों को जबरजस्ती मुसलमान बना लिया गया। औरंगजेब ने शिवाजी के पुत्र शम्भा जी की आँखें निकलवा ली और शम्भा जी के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके कत्तों को खिलवा दिया। औरंगजेब ने हिन्दुओं को बड़ी भयानक क्रूरता से कुचल दिया। हिन्दुओं की रक्षा करने वाले गुरु तेग बहादुर सिंह की हत्या करवा दी। गुरु गोविन्द सिंह के दो पुत्रों की हत्या करवा दी और दो को जिन्दा ही चुनवा दिया। बाद में गुरु गोविन्द सिंह की हत्या भी एक मुसलमान पठान ने कर दी। गुरु गोविन्द सिंह के शिष्य बंदा बैरागी को बादशाह फरूखशियर ने गिरफ्तार करवा कर मुसलमान बन जाने को कहा। जब बंदा बैरागी ने मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किया, तो बंदा बैरागी और उनके सैकड़ों साथियों का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। मतीदास को आरे से चिरवाया गया कुछ को खौलते तेल में डालकर मारा गया तथा रूई के बंडल में लपेटकर जला दिया गया : सिख गुरूओं पर भयंकर जुल्म किये गये। वास्तव में यह सभी बादशाह केवल कुरआन मजीद के आदेशों का ही पालन कर रहे थे।

कुछ नकली धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्धिजीवी और नेता बराबर कहते हैं कि “मुसलमान बादशाहों के अत्याचारों के लिये उस समय के मुसलमानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।” ऐसी सोंच वाले बुद्धिजीवी और नेता सच्चाई के प्रति संवेदनशीलता खो बैठे हैं। आखिर यह नकली धर्मनिरपेक्षतावादी ऐसा झूठ क्यों बोलते हैं ? क्या उनके ऐसा कहने से मुसलमान उनसे प्रेरणा पाकर काफिर हिन्दुओं के प्रति दयालु हो जायेगा और कुरआन के आदेशों को मानना छोड़कर स्वयं भी काफिर बन जायेगा? ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता। हाँ नकली धर्मनिरपेक्षतावादियों की ये गोल-मोल बातें सुनकर, हिन्दू अवश्य भ्रम में पड़ जायेंगे।

यह लोग जान ले कि किसी भी समाज की मानसिकता उसके धर्म के अनुसार होती है। जैसे अहिंसा का धर्म मानने वाला जैन समाज अहिंसक होता है। कोई एक जैन अथवा कोई एक जैन सम्राट तो हिंसक हो सकता है। लेकिन जैन समाज हिंसक नहीं हो सकता। हिन्दुओं में कायरता उनके धर्म के वर्तमान स्वरूप के कारण ही है।

अल्लाह ने मुसलमानों को काफिरों का कत्ल करने के स्पष्ट आदेश दियें हैं। कुरआन में है कि काफिर और कुफ्र के सफाये के लिये किये गये जिहाद में शामिल होने के लिये अगर किसी मुसलमान से कहा जाय और वह इस जिहाद में शामिल न हो, तो वह मुसलमान कयामत के बाद जन्नत में प्रवेश न पा सकेगा। अल्लाह उसे बहुत कष्ट देने वाले दण्ड देगा। देखिये, कुरआन के पार:१० सूरः९ की 34वीं और ३९वीं आयत में है कि मोमिनो! (मुसलमानों !) तुम्हें क्या हआ है कि जब तुमसे कहा जाता है कि खुदा की राह में (जिहाद के लिये) निकलो, तो तुम (काहिली की वजह से) जमीन पर गिर जाते हो (यानी घरों से निकलना नहीं चाहते ? क्या तम आखिरत (की नेमतों) को छोड़कर दुनियाँ की जिन्दगी पर खश हो बैठे हो? दुनियाँ की जिन्दगी के फायदे तो आखिरत के मुकाबले बहुत ही कम हैं। (३८) अगर तुम न निकलोगे तो खुदा तुमको बड़ी तकलीफ का अजाब (दण्ड) देगा और तुम्हारी जगह और लोग पैदा कर देगा (जो खुदा के पूरे फरमाबरदार अर्थात् आज्ञाकारी होंगे) और तुम उसको कुछ नुक्सान न पहुँचा सकोगे और खुदा हर चीज पर कुदरत रेखता है। (३९) (अनुवादक-मौ० फ० मो० खाँ सा० जा०, पेज ३०५)

जब काफिरों का सफाया करना ही इस्लाम का मुख्य उद्देश्य हो, तो मुसलिम समाज काफिर हिन्दुओं के प्रति कैसे नरम रह सकता है ? कैसे उनके प्रति अहिंसक हो सकता है ? यह तर्क कैसे दिया जा सकता है कि अधिकांश मुसलमान कुरआन के इन आदेशों पर आस्था नहीं रखते ? यह तर्क भी कैसे दिया जा सकता है कि इन बातों को सामने लाना ठीक नहीं, क्योंकि यह बातें तो उन लोगों के सामने उनके धर्म में मुख्य धार्मिक कर्तव्यों के रूप में मौजूद हैं। जिन्हें वह हमारे याद दिलाने से नहीं, बल्कि कुरआन व मुल्लाओं के माध्यम से सदैव से जानते आये हैं। एक कोई व्यक्ति विशेष या कोई मुस्लिम बादशाह हिन्दुओं के प्रति नरमी दिखा सकता है। लेकिन मुस्लिम समाज काफिर हिन्दुओं के प्रति नरम व अहिंसक नहीं हो सकता। इसी मानसिकता के कारण मुल्लावादी मुसलमान अकबर की अपेक्षा औरंगजेब को बहुत नेक इन्सान मानता है। वह मानता है कि औरंगजेब ने अल्लाह की जमीन पर अल्लाह की हुकूमत कायम कर रखी थी।

. मैं यह स्पष्टीकरण इसलिये दे रहा हूँ कि लोग जाने कि खतरा किनसे हो सकता है, कब हो सकता है, क्यों हो सकता है और कितना बड़ा हो सकता है ?

क्योंकि अगर लोग यह न जानेंगे, तो वह खतरे से बच नहीं सकते। भूतकाल में हिन्दुओं ने यही नहीं जाना, इसीलिये वह उस धार्मिक हिंसा, जिसके श्रोत का उन्हें पता न था, के मुकाबले अहिंसक और उदासीन बने रहे। परिणामस्वरूप वह उस धार्मिक हिंसा के शिकार होते रहे, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। कुछ लोग कहते हैं कि इन खतरों को अभी न बताया जाय। उनसे मेरा प्रश्न है कि कब बताया जाय? जब खतरा सर पर आ जाय, जिससे कि बचाव के प्रयास का मौका भी न मिल पाये।

मुकेश पाण्डेय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here