हैदर अली, टीपू सुल्तान या दिल्ली का बादशाह बहादुरशाह जफर, जिनको आज के नेता महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताते हैं, वह देश की स्वतंत्रता के लिये नहीं, बल्कि अपने-अपने मुसलमानी राज्य को वापस पाने के लिये ही अंग्रेजों से लड़े। आखिर अंग्रेजों से पहले यही मुसलमान हमको गुलाम बनाये बैठे थे। यदि यह मुसलमान बादशाह अंग्रेजों को हराकर अपना राज्य वापस पा जाते, तो हिन्दू, अंग्रेजों की गुलामी से निकलकर, फिर से मसलमानों के गलाम हो जाते। मुसलमानों ने भारत की आजादी की इस लड़ाई की पूरी कीमत ब्याज सहित पाकिस्तान के रूप में अलग देश लेकर वसूल कर ली। फिर भी आजादी की लड़ाई में अपने योगदान की बात कर वह हिन्दुओं के कन्धों पर अभी भी सवार रहना चाहते हैं। इस देश के नेता ‘बोल मेरे आका’ की तर्ज पर मुल्लावादी कट्टर मुसलमानों की चमचागीरी करने के लिये सदैव तैयार रहते हैं। इन नेताओं और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इतिहास को मनमाने ढंग से तोड़ा-मरोड़ा और सच्चाई को छिपाकर झूठी बातें बताते रहे। जब गुलामी और अत्याचारों की बात आती है, तो यह नेता केवल अंग्रेजों का नाम लेते हैं कि अंग्रेजों ने हमें गुलाम रखा, हम पर अत्याचार किये।

Rawalpindi, Haidar Ali | Sultan of Hyderabad, now Andhra Par… | Flickr
हैदर अली

अरे ! यह अंग्रेज ही थे, जिन्होंने मुसलमानो से राज छीनकर उनकी लूटपाट, मारकाट से हिन्दुओं को बचाया, उनकी बहन, बेटियों की इज्जत लुटने से बचाया। यह नेता जालियाँवाले बाग की घटना को (जिसमें लगभग ४०० लोग मारे गये थे) इतिहास की सबसे क्रूर घटना बताते हैं। मानो उस दिन धरती में प्रलय आ गयी थी। लेकिन मुल्लावादी मुसलमानों ने हिन्दुओं को एक हजार साल तक मारा-काटा व लगभग ५५० साल, गुलाम बनाये रखा। हिन्दुओं को कष्ट देकर रोने तक नहीं दिया, उसे हिन्दू-मुस्लिम एकता का नमूना बताते हैं। एक हजार साल जितने लम्बे समय अर्थात हिन्दुओं की चालीस पुस्तों तक चले मुसलमानो के यह अत्याचार, जो सौ रावण या कंस मिलकर भी नहीं कर सकते थे, उसको यह नेता पूरा का पूरा डकार गये हैं। उसे सदियों से चली आ रही गंगा-जमुनी संस्कृति बताते हैं। अंग्रेजों के समय में कांग्रेस के लोग सविनय अवज्ञा आन्दोलन करते थे, तो अंग्रेज लाठी चलवा देते थे, गिरफ्तारी करवाते थे। बाद में जेल के अन्दर जब नेता भूख हड़ताल कर देते थे, तो अंग्रेज भूख हड़ताल तोड़वाने के लिये बातचीत का रास्ता अपनाते थे। आज जब हम आजाद हैं, क्या सरकार आन्दोलनकारियों पर

लाठियाँ नहीं चलवाती अथवा उन्हें गिरफ्तार नहीं करती ? लेकिन मुल्लावादी मुसलमानों के राज में हिन्दू अगर इस तरह के आन्दोलन करते, तो सारे आन्दोलनकारियों के सिर धड़ से अलग कर दिये जाते। जिस इलाके में यह आन्दोलन होता, उस इलाके में ही नहीं, आसपास की सभी हिन्दू बस्तियों में कत्ले आम होता और वे जला डाली गयी होती तथा नेताओं की खाल खींचकर उसमें भूसा भरवा दिया जाता और मांस के टुकड़े टुकड़े करके चील, कौवों और कुत्तों को खिला दिया जाता। यही फर्क था अंग्रेजों और मसलमानों की गलामी में।

अंग्रेजों ने मानवता के साथ सभ्य कौम की तरह हमे गुलाम रखा, इसलिये इन धर्मनिरपेक्षतावादी नेताओं की नजर में वह विदेशी और अत्याचारी कहलाये। लेकिन जिन मुसलमानों ने हमसे ऐसी क्रूरता का व्यवहार किया, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी, वह देशी हो गये।

मेरे इस तर्क का मतलब यह नहीं है कि मैं अंग्रेजों की गुलामी का समर्थक हूँ। मैं तो यह बताना चाहता हूँ कि अधिक क्रूर कौन था ? म मुल्लावादी मुसलमानों के इस लूटपाट, मारकाट, छीना झपटी वाले भाई-चारे को, जो इन नेताओं की गंगा-जमुनी संस्कृति है, यह फिर से लाना चाहते हैं। मुसलमानों का वोट पाने के लिये यह नेता इस देश को फिर से इन मुल्लावादी मुसलमानों की गुलामी में जकड़ देना चाहते हैं। कुर्सी पाने के लिए इस देश के हिन्दुओं को आग में झोंक देना चाहते हैं। लेकिन यह नकली धर्मनिरपेक्षतावादी हिन्दू नेता याद रखें कि सत्ता पाते ही यह मुल्लावादी मुसलमान, अपने रास्ते का काँटा हटाने के लिये सबसे पहले उन्हें ही अपना शिकार बनायेंगे।

सन् १९४७ में भारत की आजादी के बाद श्री जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में हैदराबाद की रियासत में मुसलमान रजाकारों की सेना ने निज़ाम और उसके वजीर (मंत्री) की शह पर हिन्दुओं के सामूहिक कत्लेआम का सिलसिला शुरू कर दिया, जो सरदार पटेल द्वारा श्री जवाहरलाल नेहरू की इच्छा के विरुद्ध हैदराबाद रियासत को भारत में मिला लेने के बाद ही बन्द हुआ।

मुकेश पाण्डेय

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