महात्मा गांधी की आज जयंती पर देश उन्हें याद करेगा। उनके बताए रास्तों पर चलने का संकल्प भी लेगा। पर देश उन अनाम गांधी के साथियों का स्मरण नहीं करेगा, जो राष्ट्रपिता के अंतिम दौर में अंग-संग रहा करते थे। वे उनकी सेवा किया करते थे।

महात्मा गांधी 1918 में दूसरी बार दिल्ली में आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही रुके। वे पहली बार 1915 में आए थे। यहां पर उनसे कॉलेज के छात्र ब्रज कृष्ण चांदीवाला ने मुलाकात की। वह पहली ही मुलाकात के बाद बापू के जीवनपर्यंत के लिए शिष्य बन गए। ब्रज कृष्ण चांदीवाला दिल्ली के धनी व्यापारी परिवार से संबंध रखते थे। वह कॉलेज में रहते हुए ही स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गए। उन्होंने खादी के वस्त्र पहनने चालू कर दिए। ब्रज कृष्ण चांदीवाला बापू के लिए बकरी के दूध की व्यवस्था करते थे। गांधी जी का भी उनके प्रति बहुत स्नेह का भाव रहता था। गांधी जी की मृत्यु के बाद ब्रज कृष्ण चांदीवाला ने ही उन्हें स्नान करवाया था। बापू ब्रज जी को अपना पुत्र ही मानते थे। उन्होंने अपनी मां जानकी देवी के नाम पर जानकी देवी कॉलेज भी स्थापित किया। उनकी मां भी स्वाधीनता सेनानी थीं। भारत सरकार ने ब्रज कृष्ण चांदीवाला को जीवन भर समाज सेवा के लिए 1963 में पदमश्री सम्मान दिया था। उनके परिवार ने ही निर्माण किया था उत्तर दिल्ली के बनारसी दास एस्टेट का।

जो रखती थीं बापू की सेहत पर नजर
गांधी जी के अंतिम वर्षों के दौरान उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखती थीं डा. सुशीला नैयर। राजधानी के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में पढ़ीं डा.सुशीला नैयर बापू के निजी सचिव प्यारे लाल नैयर की छोटी बहन थीं। डा.सुशीला नैयर सच में गांधी जी को पिता तुल्य मानती थीं। जब बापू की 30 जनवरी, 1948 को हत्या हुई तो वह बिड़ला हाउस में नहीं थीं। वह तब पाकिस्तान गई हुई थीं। बापू की निर्विवाद रूप से महानतम जीवनी ‘दि लाइफ आफ महात्मा ’ में लुई फीशर लिखते हैं, “ बापू को गोली लगने के कुछ देर में ही घटनास्थल पर डा. डी.पी भार्गव और डा.जीवाजी मेहता पहुंच गए थे। डा.मेहता ने बापू को मृत घोषित किया था।”
डॉ सुशीला नैयर 1952 में दिल्ली की पहली स्वास्थ्य मंत्री भी रहीं। हालांकि ये अब तक साफ नहीं हुआ कि उन्हें तब मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया था। तब मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश बनाए गए थे,जो राजनीतिक रूप से डा.सुशीला नैयर के सामने कहीं नहीं टिकते थे। उन्होंने ही फरीदाबाद में ट्यूबरक्लोसिस सेनेटोरियम की स्थापना करवाई। उन्होंने डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्र में जाने को प्रेरित किया। डॉ सुशीला नैयर का सन 2000 में निधन हो गया था।

बापू की मनु और आभा
बापू के साथ छाया की तरह मनु और आभा भी रहती थीं। बापू के साथ हम सबने इनकी बहुत सी फोटो देखी हैं। आभा मूल रूप से बंगाली थीं। उनका विवाह गांधी जी के पोते कनु से हुआ था। आभा जी गांधी की प्रार्थना सभाओं में भजन गाती थीं। वह और मनु नोआखाली में भी गांधी जी के साथ गई थीं। नाथूराम गोडसे ने जब बापू को गोली मारी, तब वहां आभा मौजूद थीं। उन्होंने गोडसे के रास्ते में अवरोध भी खड़े किए थे। मनु को गांधी अपनी पौत्री कहते थे। वह बहुत छोटी उम्र में गांधी जी के पास चली आई थीं। वे गांधी जी की रिश्तेदार थीं। आभा और मनु ने कस्तूरबा गांधी की भी बहुत मन से सेवा की थी।
उस राज कुमारी ने त्यागा था सुख
राजकुमारी अमृत कौर भी बापू के साथ उनके अंतिम दिनों में साथ-साथ रहा करती थीं। वह कपूरथला के राज परिवार से थीं, पर उन्होंने राज परिवार के सुख को त्याग कर गांधी जी के साथ चलने का फैसला किया था। वह स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय थीं। बापू जब अंतिम बार 9 सितंबर,1947 को दिल्ली आए तो वह उन्हें सरदार पटेल के साथ शाहदरा रेलवे स्टेशन पर लेने पहुंची । उस दौरान दिल्ली में दंगे भड़के हुए थे। बापू जिधर भी दंगों को रुकवाने के लिए जाते तो वह भी उनके साथ होती। राज कुमारी अमृत कौर देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनीं। उन्हीं ने दिल्ली को एम्स जैसा शानदार अस्पताल दिलवाया था। अभी हाल ही में दिवंगत हुई डा. पदमावती जब सन 1951 में दिल्ली आईं तो उन्हें राजकुमारी अमृत कौर ने अपने पास बुलाया । उन्होंने डा. पदमावती को तुरंत लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने की पेशकश की, जिसे डा. पदमावती ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। एक बार डा.पदमावती ने बताया था कि वह राज कुमारी अमृत कौर के कारण ही दिल्ली में रहीं। राज कुमारी अमृत कौर का 6 फरवरी, 1964 को निधन हो गया। दिल्ली के पृथ्वीराज रोड स्थित रॉयल सिमिटरी में उनकी कब्र बेहद खराब हालत में है। तो क्या देश बापू के अनन्य सहयोगियों को भी उनका हक देगा ?