वास्तव में धार्मिक एकता व धार्मिक कट्टरता का मुकाबला केवल धार्मिक एकता व कट्टरता से ही हो सकता है। धार्मिक उन्माद (अतिउत्साह) को केवल धार्मिक उन्माद से ही दबाया जा सकता है। लेकिन इस देश में हिन्दू, श्रीमद्भगवद्गीता की इस नीति से हटकर अव्यवहारिक अहिंसा व अतिसहनशीलता (अतिसहिष्णुता) का पाठ पढ़ते रहे। सैकड़ों साल की मारकाट व नरक जैसे अपमानों को झेलने के बाद भी आज उन्हें यही पाठ पढ़ाया जा रहा है। जबकि इस देश में कट्टरवादी मुसलमान फिर से ताकतवर होकर धार्मिक एकता और कट्टरता से आगे बढ़ रहे हैं। मुल्लावादी मुसलमान और आई०एस०आई० मिलकर नौजवान मुसलमानों में धार्मिक उन्माद बड़ी तेजी से बढ़ा रहे हैं। दूसरी तरफ हिन्दू नौजवान, एकता के स्थान पर आपस में जाति की लड़ाई लड़ रहे हैं। कट्टरता की जगह कायरता को अपना रहे हैं तथा धार्मिक उन्माद की जगह धर्म के प्रति लापरवाह हैं और पालयनवादी हो रहे हैं। इन्हीं कमजोरियों से हिन्दू, इस्लामी खतरे की ओर अपने आप बढ़ते जा रहे हैं।