हिन्दुओं की इन्हीं कमजोरियों के कारण उनकी बर्बादी के ताजा उदाहरण फिजीदेश और कश्मीर के हिन्दू हैं। फिजी देश में ४४ प्रतिशत भारतीय हिन्दू हैं। शेष फिजी के मूल निवासी ईसाई हैं। लेकिन सेना में भारतीय केवल १ प्रतिशत और ९९ प्रतिशत फिजी मूल के लोग हैं। अर्थात् बन्दूक की ताकत फिजी मूल के ईसाईयों के पास है। फिजी मूल के निवासियों ने सेना की बन्दूकों के जोर पर सन् १९८७ में भारतीय मूल के लोगों के प्रभुत्व वाली सरकार पलट दी और भारतीयों के वोट देने के अधिकार छीन लिये। इसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय दबाव में भारतीय मूल के लोगों को १९९७ में पुनः वोट का अधिकार मिला। तब सन् १९९९ में हुये चुनावों में भारतीय मूल के लोग पुनः सत्ता में आये।

लेकिन भारतीय मूल के प्रधानमंत्री श्री महेन्द्रपाल चौधरी ने खतरे की जड़ सेना में भारतीयों की भरती कर शक्ति सन्तुलन नहीं बनाया। हिन्दुओं की पुरानी आदत के अनुरूप प्रधानमंत्री श्री महेन्द्रपाल चौधरी खतरे की ओर से अपनी आँखें बन्द कर चुपचाप बैठे रहे। उनकी इस असावधानी से जब खतरा नाक के पास तक पहुँच गया, तो उन्होंने इस खतरे से निपटने की जिम्मेदारी उन्हीं फिजी मूल के लोगों को दे दी, जो इस षड़यन्त्र में शामिल थे।

इंडिया टुडे ६ सितम्बर सन् २००० के अंक में श्री महेन्द्रपाल चौधरी के शब्द हैं कि “हमने जोखिम आंकने और उचित कारवाई का काम गृह मंत्रालय को सौंप दिया था। लेकिन अब हमें पता चला है कि पुलिस आयुक्त और सेना के कुछ अधिकारी भी (इस तख्ता पलट में) शामिल थे। वे आश्वासन देते रहे कि ये बस अफवाह है और चिन्ता की कोई बात नहीं है। लिहाजा हम कुछ नहीं कर सके।”

इस तरह फिजी के मूल निवासी ईसाईयों ने पुनः केवल ९ बंदूकधारियों के बल पर फिजी में भारतीय मूल के लोगों की सरकार को उखाड़ फेंका। षड़यन्त्र में शामिल सारी सेना और पुलिस केवल तमाशा देखती रही। पूरे फिजी में भारतीय मूल के हिन्दू लूट लिये गये। वह जान बचाकर जंगलों और गन्ने के खेतों में जा छिपे। फिजी के हिन्दू यह देखकर भौचक्के थे कि उनके पड़ोसी फिजी के मूल निवासी जो कल तक उनके साथ बैठकर चाय पीते थे, वही उनको लूट रहे थे और पीट रहे थे।

ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि हिन्दू अपनी धार्मिक कायरता के कारण सोचते हैं कि हम किसी के साथ हिंसा नहीं करेंगे, तो कोई हमारे साथ भी हिंसा नहीं करेगा। जबकि व्यवहार में, यथार्थ में ऐसा नहीं है। इस तरह की असावधानी और कमजोरी दुष्ट लोगों को हिंसा करने के लिये उकसाती है।

ठीक यही स्थिति कश्मीर की है। जहाँ का मस्लिम प्रशासन आतंकवादियों के साथ है और धोखा देने के लिये कहता है कि सब कुछ ठीक है। इसी तरह आई० एस० आई० के सहयोग से शेष भारत का हिन्दू भी चारो ओर से मुल्लावादियों द्वारा घेरा जा रहा है। लेकिन मुस्लिम वोट के लालची नेता आँखें बन्द कर कह रहें हैं कि सब कुछ ठीक है, चिन्ता की कोई बात नहीं है। इसका परिणाम बहुत ही खतरनाक आने वाला है, जब यह नेता भी कहेंगे कि अफसोस हम कुछ न कर पाये।

मुकेश पाण्डेय

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