पहली जनवरी 1993 ई. को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो माननीय न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एच.एन. तिलहारी तथा न्यायमूर्ति गुप्ता ने अपना ऐतिहासिक निर्णय देते हुए भारतीय संविधान की मूल प्रति में श्री राम के रेखाचित्र के हवाले से, जो भारतीय संविधान सभा ने 25 नवम्बर, 1949 ई. की स्वीकृत किया है, यह माना है कि श्रीराम का एक “संवैधानिक अस्तित्व है तथा स्वीकृत रूप से हमारी राष्ट्रीय संस्कृति की सत्यता एवं रचना है, न कि कोई कोरी कल्पना।”

उपरोक्त निर्णय माननीय न्यायधीशों ने सेकुलरवाद की व्याख्या तथा ध्वंसित बाबरी ढांचे में रखी रामलला की मूर्ति के दर्शन पर रोक लगाने सम्बंधी याचिका को अस्वीकार करते हुए दिए।

Leftist propaganda portal The Wire says that 'Jai Shri Ram' is a slogan of  hooliganism

सम्मानीय न्यायाधीशों ने पुन: स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि राम का रेखाचित्र संविधान की मूल प्रति (अंग्रेजी) में है। इसके साथ अन्य चित्र भी दिए गए गए हैं। ये चित्र बताते हैं कि “श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिवाजी तथा गुरु गोविन्द सिंह को भारतीय संविधान में राष्ट्रीय विभूतियों के रूप में स्वीकार किया गया है तथा इनके व्यक्तित्वों को राष्ट्रीय विरासत तथा पूज्य भाव से माना है।”

उपरोक्त न्यायाधीशों ने अपने निर्णय में पूरे एक पृष्ठ पर इन रेखाचित्रों की सूची दी है। वस्तुत: यह सभी चित्र भारतीय संस्कृति, धर्म तथा जन भावना के द्योतक हैं। इन चित्रों को भारतीय इतिहास की एक विस्तृत यात्रा का एक लघु दिग्दर्शन कह सकते हैं। इन रेखाचित्रों को भारतीय इतिहास के ग्यारह कालखण्डों में बांटा है। ये कालखण्ड हैं-मोहन जोदड़ो काल, वैदिक काल, वीरकाल, महाजनपद तथा नंदकाल, मौर्यकाल, गुप्तकाल, मध्यकाल, मुस्लिम काल, ब्रिटिश काल, भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन तथा भारत का प्राकृतिक वैशिष्ट्य। ये कुल रेखाचित्र 22 हैं जो संविधान की मूल प्रति में हैं, जो 25 नवम्बर 1949 ई. को स्वीकृत हुआ। ये चित्र हैं- 1. मोहनजोदड़ो की सील, 2. गुरुकल आश्रम का दृश्य, 3. लंका विजय के पश्चात राम लक्ष्मण तथा सीता पुष्पक विमान से लौटते हुए, 4. अर्जुन को गीता का उपदेश देते श्रीकृष्ण, 5. बुद्ध का जीवन 5. महावीर का जीवन, 7 सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार, 8. गुप्तकालीन कलायें तथा उनका क्रमिक विकास, 9. विक्रमादित्य का दरबार, 10. प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा, 11. उड़ीसा की मूर्ति-स्थापत्य कला, 12. नटराज की प्रतिमा, 13. महाबलिपुरम की मूर्तियां-भगीरथ की तपस्या तथा गंगावतरण, 14. मुगल स्थापत्यकला के साथ सम्राट अकबर, 15. शिवाजी एवं गुरु गोविन्द सिंह का चित्र, 16, ब्रिाटिश प्रतिरोध का उदय-टीपू सुल्तान तथा लक्ष्मी बाई, 17, गांधी जी की दांडी यात्रा, 18. नोआखली में बापू शांति दूत के रूप में, 19. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस तथा भारत के बाहर आजादी के लिए संघर्षरत देशभक्त, 20. हिमालय के दृश्य, 21, रेगिस्तान के दृश्य, 22. भारतीय समुद्र का दृश्य।

इन चित्रों के माध्यम से न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि “ये चित्र हमारे राष्ट्रीय जीवन, हमारी विरासत तथा हमारी संस्कृति को चित्रित करते हैं।” अन्त में यह स्पष्ट रूप से कहा कि “संविधान बताता है कि संविधान सभा में राम को इतिहास में स्थान की दृष्टि से एक तथ्य माना है तथा राष्ट्रीय स्वामिमान तथा सांस्कृतिक महत्व की एक सच्चाई के रूप में स्वीकार किया है।” प्रश्न है कि भारतीय संविधान तथा भारतीय इतिहास की उपेक्षा कर कोई भी अज्ञानी तथा अविवेकी राजनीतिक राम के अस्तित्व को चुनौती दे, यह कहां तक सहनीय है? भारतीय संविधान की मूल चेतना एवं प्रेरणा-स्रोतों को नकारने का तथा इतिहास से छेड़छाड़ करने का आधिकार इन्हें किसने दिया? यह क्या भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर सीधा प्रहार नहीं? क्या यह भारत सरकार द्वारा लखनऊ उच्च न्यायालय में रामजन्मभूमि विवाद के लिए स्थापित व्याख्या पीठ के न्याय के विरुद्ध खुली अवहेलना नहीं? विचारणीय मुद्दा यह भी है कि आखिर भारतीय संविधान से ये मूल चित्र कैसे गायब हो जाएं? भारतीय विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं इन प्रेरणास्रोतों तथा भारतीय इतिहास दृष्टि से क्यों वंचित किए गए? क्या यह सरकार की उदासीनता का परिचायक है अथवा किसी सोचे-समझे षड्यंत्र का? क्या यह जन भावना का अनादर नहीं है? क्या भारत के संविधान विशेषज्ञ इस सम्बंध में अपनी राय देंगे? क्या भारत सरकार भारतीय संविधान के सन्दर्भ में राम के अस्तित्व के बारे में अपनी चुप्पी तोड़ेगी? कब तक नास्तिक तथा धर्म विरोधी वामपंथी समूचे देश तथा विदेशों में बसे हिन्दुओं की जनभावना से खिलवाड़ करते रहेंगे?

क्या भारत का कोई संस्थान भारतीय नागरिकों के सम्मुख भारतीय संविधान की मूल प्रति को पुन: छापकर संविधान की सही अन्र्तभावना सामने लाएगा? इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि भारतीय जनमानस इन धर्म विरोधयों को समुचित दंड देगा तथा भारतीय संविधान की आत्मा को कुचलने न देगा।

मुकेश पाण्डेय

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