करआन मजीद में पारः ४. सर: 3 की १५२वीं आयत में है कि- और खदा ने अपना वायदा सच्चा कर दिया (यानी) उस वक्त जब कि तुम काफिरों को उसके हुक्म से कत्ल कर रहे थे (अनुवादक-मौ० फ० मो० खाँ सा० जा०, पेज-१०७)
पार: ९, सूरः ८ की १२वीं आयत में मुसलमानों के लिये अल्लाह का आदेश है कि- मैं काफिरों के दिल में दहशत डाल दूंगा, फिर तुम उनकी गरदने मारकर सर उड़ा दो और उनके बदन के एक एक जोड़ को चोट लगाकर उनके शरीर को तोड़ फोड़ कर डालो। (अनुवादक-ह० मौ० अ० क० पा० सा०, पेज नं०-१७९)
पार: १०, सूरः ९ की पूर्वी आयत में है कि- जब इज्जत के महीने गुजर जायें, तो मुश्रिकों को जहाँ पाओ, कत्ल कर दो और पकड़ लो और घेर लो और हर घात की जगह पर उनकी ताक में बैठे रहो, फिर अगर वे तौबा कर लें और नमाज़ पढ़ने ज़कात देने लगें, तो उनकी राह छोड़ दो। बेशक खुदा बख़्सने वाला मेहरबान है। (अनुवादक-मौ० फ० मो० खाँ सा० जा०, पेज-२९५)
अर्थात् जब इज़्ज़त के चार महीने निकल जायें, तो बाकी आठ महीनों में काफिरों को जहाँ कहीं पा जाओ उनका कत्ल कर दो। उनको पकड़ लो और घेर लो और हर, ऐसी जगह घात लगाकर बैठो, जहाँ उनके मिलने की सम्भावना हो। लेकिन यदि वे देवी-देवताओं की साकार या निराकार पूजा, गुरूओं के आदेश मानना छोड़कर अपने पापों का प्रायश्चित कर लें और नमाज़ पढ़ने तथा ज़कात देने लगें अर्थात् मुसलमान बन जायें, तो उन्हें छोड़ दो, निःसंदेह खुदा क्षमा करने वाला और दयालु है।