हिन्दुओं को अपमानित करने के लिये उनके धन के साथ उनकी औरतों को भी माले गनीमत के रूप में छीन लिया गया। सन् ७१२ में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध में राजा दाहिर को मार कर उसकी अत्यन्त सुन्दर पत्नी लादी देवी को मुसलमान बनाकर रख लिया और राजा की दो राजकुमारियों सूर्या देवी और परमल देवी के साथ चुनी हुई अत्यन्त सुन्दर लड़कियाँ खलीफा के पास बगदाद भेज दी। पूरे सिंध में मोहम्मद बिन कासिम के सैनिकों ने ढूंढ-ढूँढ कर सुन्दर हिन्दू औरतें मुसलमान बनाकर रख लीं। महमूद गजनवी तो अपने १७ हमलों में भारत से लगभग चार लाख हिन्दू औरतें, जो एक से बढ़कर एक सुन्दर थीं, पकड़कर गजनी उठा ले गया। सन् १०१४ में थानेश्वर की लूट में महमूद दो लाख से अधिक अत्यन्त सुन्दर हिन्दू औरतें पकड़कर गजनी ले गया। मथुरा से लगभग ७० हजार सुन्दरतम हिन्दू औरतें पकड़ ली गयीं।
महमूद गजनवी जब इन हिन्दू औरतों को गजनी (अफगानिस्तान) ले जा रहा था, तो वे अपने पिता, भाई और पतियों को बुला-बुला कर बिलख-बिलख कर रो रही थीं और अपने को बचाने की गुहार लगा रही थीं। हे ईश्वर ! कैसा हृदय विदारक किन्तु क्रोध से पूरे शरीर में आग लगाने वाला दृश्य था। लेकिन करोड़ों हिन्दुओं के बीच से मुट्ठी भर मुसलमान सैनिकों द्वारा भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गयीं, रोती बिलखती इन लाखों हिन्दू नारियों को बचाने न उनके पिता आये, न पति आये, न भाई आये, और न ही इस विशाल भारत के करोड़ों हिन्दू। उनकी । रक्षा के लिये न तो कोई अवतार हआ और न ही कोई देवी-देवता आये। महमूद गजनवी ने इन हिन्दू लड़कियों और औरतों को ले जाकर गजनी के बाजार में सामान की तरह बेच डाला। पूर्वी दिल्ली से भूतपूर्व लोकसभा सदस्य श्री बैकुण्ठलाल शर्मा (जो अब सिक्ख हैं) ने हमें बताया कि “मैंने बचपन में गजनी जाकर उस जगह को देखा, जहाँ इन हिन्दू औरतों की नीलामी हुई थी। उस स्थान पर मुसलमानों ने एक स्तम्भ बना रखा है, जिसमें लिखा है ‘दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार’। अर्थात् इस जगह हिन्दुस्तानी औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुई। उजबेकिस्तान के मुसलमान इन्हीं की सन्तान हैं।” कुछ हजार मुसलमान सैनिक पूरे भारत में ढूंढ-ढूँढ कर हिन्दू औरतों को छाँटते बेराते रहे।
संसार की किसी भी कौम के साथ ऐसा अपमान नहीं हुआ, जैसा हिन्दू कौम के साथ हुआ। फिर भी हिन्दू नहीं सुधरे और आज फिर से वैसे ही अपमानों को झेलने के नजदीक पहुँच रहे हैं। लेकिन आँखें बन्द किये बैठे हैं।
मोहम्मद गोरी जब इस देश को लूटकर वापस जाने के बजाय सदा-सदा के लिये हिन्दुओं की छाती पर चढ़ कर बैठ गया, तो उसके बाद आने वाले सभी बादशाहों के शाहीहरम (रनिवास) सुन्दरतम हिन्दू औरतों से भर दिये गये। दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी, तो यह सुनते ही कि किसी राज्य में अतिसुन्दर हिन्दू औरत है, वह उसे पाने के लिये उस राज्य में हमला कर देता था। एक बार अलाउद्दीन खिलजी को पता चला कि गुजरात के राजा कर्णसिंह की बेटी देवलदेवी अत्यन्त सुन्दर है। बस फिर क्या था, देवलदेवी को पकड़ने के लिये गुजरात पर अलाउद्दीन का हमला हुआ। लेकिन कर्णसिंह अपनी पुत्री देवलदेवी के साथ दक्षिण भारत में देवगिरि राज्य में भाग गया। अलाउद्दीन की सेना ने देवलदेवी को न पाने की चिढ़ में पूरे गुजरात में हिन्दुओं को जी भर कर लूटा। जो हिन्दू सामने पड़ा उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने देवल देवी को किसी भी कीमत पर पाने के लिये देवगिरि में चढ़ाई कर दी। देवगिरि का राजा रामचन्द्र युद्ध हार गया और पकड़ा गया। वहाँ छिपा हुआ गुजरात का राजा कर्णसिंह मारा गया और देवलदेवी बचाई न जा सकी। वह अल्प खाँ के हाथों पड़ी और दिल्ली के बादशाह सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के पास भेज दी गयी। अलाउददीन खिलजी ने बाद में उसका निकाह (विवाह) अपने बड़े पुत्र शहजादा खिज खाँ से कर दिया।
इसी बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को पता चला कि मेवाड़ के राँणा रत्नसिंह की पत्नी पद्मिनी देवी अत्यन्त सुन्दर है। दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी इतिहास प्रसिद्ध सुन्दरतम पदमिनी को पाने के लिये सन् १३०३ में खुद ही दिल्ली से चल पड़ा। मेवाड़ के चित्तौड़ किले का घेरा डाल दिया गया। घेरा काफी दिनों तक पड़ा रहा, तब अलाउददीन ने फौरन चाल चली। उसने किले के अन्दर सन्देश भिजवाया कि राणा रत्नसिंट अपनी पत्नी पद्मिनी जी का मुंह शीशे में ही दिखा दे, तो मैं वापस दिल्ली चला जाऊँगा। राँणा अपने कुछ सलाहकारों के कहने पर मार-काट से बचने के लिये पद्मिनी को दिखाने के लिये राजी हो गया, जो उचित नहीं था। सुल्तान, पद्मिनी को देख कर जब किले से वापस बाहर आने लगा, तो राँणां रत्नसिंह, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को बाहर तक भेजने आया। जैसे ही राँणा रत्नसिंह किले के बाहर आया, अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैनिकों से उसे पकड़वा लिया और किले के अन्दर कहलवा भेजा कि पदमिनी को दे जाओ और रॉणा को ले जाओ। हिन्दू राजाओं ने जितनी कायरता का प्रदर्शन किया, हिन्दू नारियों ने उतनी ही वीरता का। पद्मिनी जितनी सुन्दर थी उतनी ही वीर और चतुर। उसने सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की शर्त मान ली और कहलाया कि मैं अपनी ८०० दासियों के साथ आठ सौ पालकियों में आ रही हूँ। पद्मिनी अपने साथ ८०० नौजवान सैनिकों को जिनके अभी मूछे नहीं निकली थीं
औरतों के भेष में तलवारें छिपाकर लाई। औरतों के भेष में यह आठ सौ सैनिक ८०० पालकियों में बैठे थे। प्रत्येक पालकी को चार सैनिक जिनके हथियार पालकी के अन्दर छिपाकर रखे थे उठाकर चल रहे थे। इस प्रकार पदमिनी के साथ छिपकर लगभग चार हजार सैनिक बाहर आये। अलाउद्दीन पद्मिनी को पाने के सपने देखने में मगन था कि अचानक हमला करके पदमिनी देवी राणा रत्नसिंह को छुड़ा कर किले के अन्दर ले गयी। फिर क्या था, दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का क्रोध मेवाड़ पर प्रलय की तरह टूट पड़ा। चित्तौड़ के किले पर भीषण हमला हुआ। रॉणा रत्नसिंह लड़ते हुये मारा गया। मेवाड़ लूट लिया गया। हिन्दू बस्तियों में आग लगा दी गयी। उधर किले के अन्दर महान् पद्मिनी ने मुसलमानों के हाथों पड़ने के स्थान पर अपने अत्यन्त सुन्दर शरीर को आग में जला कर भष्म कर दिया। पद्मिनी के पीछे किले की सभी राजपूतनियाँ भी जिन्दा ही आग में जल कर भस्म हो गयीं, जो जौहर के नाम से प्रसिद्ध है। अलाउद्दीन खिलजी भयानक नरंसहार करके जब किले के अन्दर पद्मिनी को पकड़ने के लिये घुसा, तो वहाँ उसे पदमिनी नहीं, बल्कि चारो ओर जलती हुई चिताएँ देखने को मिली। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने किले के अन्दर के चालीस मन्दिरों को तोड़वाकर मस्जिदें बनवा दी।
यह जो घटनाएँ हमने लिखी हैं, यह तो कुछ नमूने मात्र हैं। मुसलमानों के राज में ऐसी हजारों घटनाएँ हर साल होती रहीं। भारत के सभी मुसलमान बादशाह लूट के माल में हिन्दू औरतों को भी हथियाते रहे। उनकी शह पर साधारण मुसलमान नागरिक से लेकर बादशाह के दरबारी मुसलमान और साधारण मुसलमान सैनिक से लेकर मुसलमान सेनापति तक हिन्दुओं की पत्नियाँ और बेटियाँ छीनते रहे। हिन्दू राजाओं की कायरता से एक हजार साल तक हिन्दुओं के साथ यह सब होता रहा। आज राजाओं का स्थान लेने वाले नेताओं की कायरता से भारत के हिन्दू फिर से उसी खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन इस खतरे से घिर रहे हिन्दू, इस खतरे की अन्देखी कर जाति की लड़ाई में व्यस्त हैं। हिन्दुओं के साथ उनके ही देश में एक हजार साल तक हुये इन अपमानों को, इस मारकाट को इस देश के नेता बताते हैं कि इस देश में सैकड़ों साल से हिन्दू-मुसलमान प्रेम से रहते चले आये हैं। यह नेता हिन्दुओं के साथ हुए इस अपमान और अत्याचार पर गर्व करते हैं तथा इसे ही गंगा जमुनी संस्कृति, अनेकता में एकता और धार्मिक सहिष्णुता. बताते हैं। यह नेता दुनिया का सबसे बड़ा झूठ बोलते हैं और आश्चर्य है कि हिन्दू इस झूठ को मान भी लेते हैं। नेताओं द्वारा हिन्दुओं की जिस धार्मिक सहिष्णुता के गुणगान गाये जाते हैं, वह हिन्दुओं की विशेषता नहीं, बल्कि मूर्खतापूर्ण कायरता है। जिस पर हमें शर्म आनी चाहिये।
हिन्दू अगर टी०वी० में या सिनेमा में कोई हिन्दू-मुस्लिम एकता पर झूठी कहानी देख लें या किसी नेता के मुँह से अब्दुल हमीद जैसे एक-दो उदाहरण सुन लें, तो वह मुल्लावादी मुसलमानों द्वारा हुई अब तक की मारकाट को मानने से इन्कार कर देते हैं। इस प्रकार अपनी दुर्दशा की जिम्मेदार खुद हिन्दू जनता है, जो सच्चाई से आँखे बन्द किये बैठी रहती है। जबकि मुसलमानो को सिनेमा या टी०वी० की कहानी या कोई नेता के भाषण नहीं बहका सकते। वह वही मानेंगे और करेंगे, जो उनका धर्म कहता है। उसके खिलाफ अगर कोई उन्हें समझाता है, तो वह उसके दुश्मन हो जायेंगे और नेता इसको अच्छी तरह समझते हैं। हिन्दुओं के बीच कोई नेता उनके धर्म को या उनके देवी-देवताओं को गालियाँ भी दे दे, तो भी हिन्दू उसके भाषण पर मस्त होकर तालियाँ बजा देंगे। मुसलमान अपने नेताओं की बात तभी मानेंगे जब वह कुरआन के अनुसार होंगी व मुसलमानो के धर्म व समाज को मजबूत करने वाली होंगी, नहीं तो वह उनकी बात नहीं। मानेंगे। वह चाहे मौलाना बुखारी हों या और कोई बड़े नेता। क्योंकि मुसलमानो का कोई नेता नहीं है, उनकी नेता कुरआन मजीद है। उसमें जैसे आदेश हैं, उसी के अनुसार उन्हें चलना है। मुसलमानो ने अगर किसी हिन्दू नेता को अपना समर्थन दिया है, तो वह भी कुरआन के अनुसार ही है। क्योंकि कुरआन मजीद में, पारः ३, सूरः ३ की २८वीं आयत में है कि-मोमिनों को चाहिये कि मोमिनों के सिवा काफिरों को दोस्त न बनाएं और जो ऐसा करेगा, उस से खुदा का कुछ (अद) नहीं। हाँ, अगर इस तरीके से तुम उन (की बुराई) से बचाव की शक्ल निकालो (तो हरज नहीं)….(अनुवादक-मौ० फ० मो० खाँ सा० जा०, पेज-८१) स्पष्ट है कि जाति के नाम हिन्दुओं को बाँटकर कमजोर करने के लिये ही मुसलमानों ने मुसलमानपरस्त जातिवादी नेताओं को समर्थन दे रखा है।