अकबर जिसकी सहिष्णुता के गुणगान गाये जाते हैं, वह भी हिन्दुओं की राजकुमारियों से विवाह करता रहा। उसने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर आदि राज्यों की हिन्दू राजकुमारियों से विवाह किया। लेकिन अपनी शहजादी किसी हिन्दू राजा को नहीं दी। अकबर का दीन इलाही धर्म. जिसे मानने वाले उसके विशालराज्य में केवल दस बीस लोग ही थे, हिन्दुओं खासकर राजपूतों को मूर्ख बनाने का स्वाँग था। अकबर जन्म से लेकर मृत्यु तक मोमिन (मुसलमान) रहा। उसकी इस चालाकी को मुसलमान समझते थे। लेकिन हिन्दू धर्म के रक्षक कुछ तथाकथित राजा, उसके शिकारी कुत्ते की भूमिका निभाते रहे, अपनी बहन-बेटियों को अकबर की अय्यासी के लिये पेश करते रहे। अगर इसी को उदारता और सहिष्णुता कहते हैं, तो नीचा दिखाना, अपमानित करना और गुलाम बनाना किसे कहते हैं? मेवाड़ के राणा प्रताप ने जब अकबर के लिये यह सब करना स्वीकार नहीं किया, तो मेवाड़ पर अकबर का नंगा नाच हुआ। हाँ, यह अवश्य है कि अन्य की अपेक्षा वह कुछ कम कट्टर था।
किसी हिन्दू लड़की को मुसलमान बनाकर शादी करना मुसलमानों में बड़ा ही शुभ और धर्म का काम माना जाता है। इसके लिये मुसलमान नौजवान सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। मुसलमान लड़के सुन्दर हिन्दू लड़कियों को प्रभावित करने के लिये बड़ी नम्रता व प्रेम दिखाते हैं, इससे सीधी साधी हिन्दू लड़कियाँ प्रभावित होकर उनके चंगुल में फँस कर मुसलमान बना ली जाती हैं। मुसलमान लड़कों द्वारा यह कार्य विशद्ध कटटर धार्मिक भावना से, हिन्दू समाज व लड़की के हिन्दू माँ-बाप को नीचा दिखाने के लिये किया जाता है। मौका पड़ने पर मुसलमान सदैव कुरआन के आदेश पर ही चलते हैं। जब पाकिस्तान बना तब वहाँ के मुसलमानों ने अपने हिन्दू दोस्तों, पड़ोसियों और मालिकों को खतम कर उनका सब कुछ हड़प लिया (कुछ अपवादों को छोड़कर)। आज भी भारत में प्रतिवर्ष दो लाख हिन्दू लड़कियाँ व औरतें बहला फुसलाकर या धमकाकर मुसलमान बना जी जाती हैं। शेष भारत की अपेक्षा केरल, कश्मीर और लद्दाख में हिन्दू लड़कियों को बड़ी तेजी से मुसलमान बनाया जा रहा है। जम्मू कश्मीर सरकार तो, हिन्दू और बौद्ध लड़कियों को मुसलमान बनाकर उनसे शादी करने वाले कश्मीरी मुस्लिम नौजवानों के लिये धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण पेश करने का बहाना बनाकर, उन्हें इनाम दे रही है। मुल्लावादी मुसलमान आज भी बदले नहीं हैं, जरा भी नहीं, फर्क इतना है कि उनकी सरकार नहीं है, जरा वह बनने दीजिये, फिर देखिये इतिहास का वही नज़ारा। वह युद्ध का नारा लगाते हैं कि “ईमान बाकी है, मुसलमान बाकी है, अभी तो करबला का मैदान बाकी है।” मुल्लावादी मुसलमान मौका पाते ही हिन्दुओं की जान माल व औरतों को छोड़ेंगे नहीं। जो हिन्दू सोचते हैं कि ऐसा नहीं होगा, वह अपने को धोखा दे रहे हैं। क्या इनके ऐसा सोच लेने भर से यह खतरा टल जायेगा? क्या हम हिन्दुओं के धर्मनिरपेक्ष हो जाने से या हिन्दू की बात न करने से भारत का मुसलमान कट्टरता छोड़कर, कुरआन मजीद के आदेशों को मानना छोड़कर धर्मनिरपेक्ष हो जायेगा? ऐसा सोचना दिन को रात समझना है।