लोकसभा 2019 के चुनाव में पश्चिम बंगाल भाजपा का यह नारा था जिसका अर्थ है : 2019 लोकसभा चुनाव में राज्य की आधी विधानसभा सीटों पर विजय हासिल करना और उसके दम पर 2021 बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल सरकार को सत्ता से बाहर (साफ) करना।
भाजपा अपने इस लक्ष्य में सफल रही और उसने बंगाल विधानसभा की कुल 294 सीटों में से 140 से अधिक विधानसभाओं में शुरुआती बढ़त पा कर 122 विधानसभा सीटों जीत हासिल करते हुए 2019 लोकसभा में बंगाल की कुल 42 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज किया। उन्नीस के आम चुनावों में पश्चिम बंगाल में भाजपा के पक्ष में 40.5 प्रतिशत मत पड़े थे और फिलहाल विधानसभा में उसके छह विधायक हैं।
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने 23 सीटों का लक्ष्य रखा था और 18 सीटें मिलीं। 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उसका लक्ष्य 250 सीटों का है। 2014 में 34 लोकसभा सीटें जीतने वाली तृणमूल कांग्रेस 2019 में 22 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस चार सीटों से घट कर दो पर आ गई और माकपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
2019 के आम लोकसभा चुनावों से एक साल पहले राज्य में हुए पंचायत चुनावों में तृणमूल ने जीत जरूर दर्ज की लेकिन मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उसमे सामने 5465 सीटें जीत कर भाजपा ही रही। पश्चिम बंगाल में तमाम वर्षों में यह पहला मौका था जब भाजपा ने राज्य के हर जिले में ग्राम पंचायत स्तर पर जीत हासिल की। माकपा दूसरे स्थान से खिसक कर तीसरे स्थान पर तो कांग्रेस चौथे नंबर पर रही। इसके पहले 2017 शहरी निकाय चुनावों में भाजपा सीटें तो कम जीती लेकिन आमतौर पर वह कांग्रेस-वाम मोर्चे को पीछे छोड़ते हुए दूसरे स्थान पर आती दिखी तृणमूल के सामने।
पश्चिम बंगाल में 1977 से 2011 तक शासन करने वाले वामदल राज्य की राजनीति में अपना जनाधार खोते जा रहे हैं। 2011 में जहां उन्हें 40 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, इसके बाद उसकी हिस्सेदारी घटती चली गई। इस चुनाव में ताे उसका सूपड़ा ही साफ हो गया। वाम मोर्चा के सत्ता में रहते टीएमसी को 2009 के लोकसभा चुनाव में 19 सीटें मिली थीं। उसके दो साल बाद विधानसभा चुनाव में वह सत्ता में आ गई। वाम दलों की सिकुड़न का जो फायदा उठा कर तृणमूल मजबूत हुई उसी आधार पर भाजपा को भी वैसी ही उम्मीद है। 2019 आम चुनावों में कुल मिले विधानसभा वार वोटों और प्रतिशत के हिसाब से तृणमूल से आगे निकलने के लिए भाजपा को सिर्फ 17,28,828 वोटों का गैप पाटना है।
पश्चिम बंगाल में करीब 30 फीसदी मुसलमान और 24 फीसदी दलित हैं। दोनों ही समुदायों में वामदलों का जनाधार काफी घटा है। अल्पसंख्यकों के पक्ष में बहुत ज्यादा झुकने का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को नुकसान उठाना पड़ा है। अपने दल के उपद्रवी तत्वों पर अंकुश लगाने में भी उनकी पकड़ कमजोर रही। इन सभी ने भाजपा को प्रदेश में अपने पांव मजबूत करने में मदद की। जहां पूरे देश में शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव संपन्न हुए। वहीं, बंगाल में सातों चरणों में हिंसक घटनाएं देखने में आईं. लोगों की नाराजगी वोटों के रूप में दिखाई दी। किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले यहां सबसे ज्यादा मतदान हुआ।
पश्चिम बंगाल में 10 सालों से सत्ता में बनी तृणमूल और उसकी नेता ममता बनर्जी के सामने वामदलों से सत्ता हासिल करने के उन्हीं के फार्मूलों का बदले सन्दर्भों में अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की रणनीति के साथ भाजपा पश्चिम बंगाल के मतदाता को एक सरकार का विकल्प देते हुए मिशन बंगाल में है।