आज विश्व ऐसे विप्लव काल से गुजर रहा है जहां मानवता को एक अदृश्य हंता, चीन जनित कोरोना वायरस ने मानसिक व शारीरिक रूप से झझकोर दिया है। वर्तमान में भारत इसकी तीव्रता व निर्ममता से बुरी तरह घायल हो रहा है। आज मेरी स्थिति ऐसी हो चुकी है कोई भी किसी अपने का फोन आता है तो ह्रदय की गति क्षण भर के लिए रुक जाती है। लोगो से बात होती है तो संवाद, संत्रास की छाया में, जान पहचान के लोगो के घर से शमशान तक कि एकल यात्रा पर समाप्त होती है। अब तो दिन भर, सोशल मीडिया और व्हाट्सअप पर लोगो के बैकुंठ प्रवास के संदेश व ॐ शांति शांति शांति देख नकरात्मकता से मन भर जाता है।
क्या आज कल हो रहा मृत्यु का तांडव ही हमारी पीढ़ी का जीवन है? क्या इस विभीषका की कालिमा में कोई आशा की किरण नही है? क्या कोई जयगाथा हमारे लिए नही रह गयी है? क्या मरे मन से जीवित रहा जासकता है?
नही, मैं ऐसा नही समझता हूँ। हमको इस कोरोना की विभीषका से लग रहे आघातों को आत्मसात कर, इसके जबड़ों से निकल आये लोगो की जयगाथा से प्रेरणा, आशा व उनकी की गई गलतियों से सीख लेनी है। मैं ऐसी ही गाथा यहां लिख रहा हूँ जो मेरे 30 वर्षों के सुख दुख के साथी एन पी सिंह की है। मैं उनके संघर्ष का प्रत्यक्ष साक्षी हूँ और जब वे अपने बुखार को वायरल समझ अपने फैमिली डॉक्टर से सलाह ले रहे थे तब, उनको इस भृम से निकाल, उनसे इसे कारोना मान, उपचार करने का आग्रह भी किया था। अब उनकी ही लेखनी से उनकी आप बीती प्रस्तुत है :
मुझे 6 अप्रैल को फीवर आया और साथ मे लगा जैसे नाक में जैसे बहुत सी चीटियां चल रही हैं। नींद नहीं आ रही थी। मैं क्योंकि किसी से मिलता नहीं था, अतः फैमिली डॉक्टर ने वायरल फीवर मान लिया था। स्थिति ठीक न होने पर, 9 अप्रैल को करोना टेस्ट कराया, 11 अप्रैल को 1:00 बजे दिन में करोना पॉजिटिव की रिपोर्ट आगयी।
मुझे 6ठें दिन फीवर और करोना पॉजिटिव होने के बाद 11 अप्रैल रात को लगभग 11:50 पीएम अथवा 12 अप्रैल के 12:15 एएम पर KGMU में 2M/6 नंबर के बेड पर बहुत मुश्किल से भर्ती कराया गया। मेरी हालत बहुत अच्छी नहीं थी। मेरे वार्ड में कुल 12 बेड थे, जिसमें ऑक्सीजन और मॉनिटरिंग मशीन, 2 वेंटिलेटर, कुछ ऑक्सीजन और लाइफ सपोर्ट की मशीनें भी लगी थी। मैं केवल अकेला था जबकि अन्य मरीजों के साथ 1 दो लोग उनके परिवार के उनकी सेवा के लिए भी थे। कम से कम 4, 5 नर्स वार्ड बॉय, डॉक्टर उपलब्ध थे। उनमें गजब की एनर्जी थी। चारों तरफ भागदौड़ रहे थे। 2 मरीजों की स्थिति बहुत खराब थी।
लगभग 50 साल का पिता वेंटिलेटर पर बेहोश था। दो 20-25 साल के बच्चे स्तब्ध, शान्त मौत का इंतजार कर रहे थे। मेरे साइड वाले बेड 2M/5 पर एक औरत जिसे कैंसर भी था, नाजुक बनी हुई थी। उसका पति 50 वर्ष और उसका जवान बेटा साथ में थे। उपरोक्त दोनों मरीज 2 दिनों में दुनिया से चले गए। पहला मरीज लगभग रात 2:00 बजे। रात में लगभग 6 डॉक्टरों की टीम उसको बचाने का हर प्रयास कर रहे थे लेकिन असफल रहे। तीसरी रात मेरी बहुत खराब थी। होश में नहीं था। अब मेरे सपोर्ट में मेरी पत्नी भी मेरे सेवा में लग गई थी। ऑक्सीजन लगभग मेंनटेन हो गई थी। मेरी पत्नी बहुत ही धार्मिक, पॉजिटिव, आस्थावान, आत्मविश्वास और कॉन्फिडेंस से भरी हुई, न विचलित हुई और ना मुझे विचलित होने दी।
जीवन में अपने शरीर और मन दोनों की इतनी दुर्दशा की मैंने कल्पना भी नहीं किया था। बहुत से लोग, जो लोग करोना से बच जाते हैं उसमें उनके परिवार, मित्रों और रिश्तेदारों का सहयोग नितांत आवश्यक है। बहुत से मरीजों को उनकी बेटियां बेटे मित्र और रिश्तेदारों ने मरने से बचा लिया था। करोना बहुत खतरनाक, बहुत ही कष्ट कारक पीड़ादायक है। मौत सबको आनी है, मौत से डरना भी नहीं चाहिए लेकिन इतना कष्ट के साथ मौत नहीं चाहिए। भाइयों सभी लोग सावधानीपूर्वक रहकर अपना और अपने परिवार की रक्षा कर लीजिए। परिवार बड़ा करिए, कम से कम चार पांच बच्चे, सम्मिलित परिवार के महत्व को समझिए। आज मैं आपके सामने अपने पारिवारिक मित्रों, अपने सम्मिलित परिवार के कारण बचा हूं। जिनकी चर्चा मैं यहां नहीं करना चाहता हूं । लेकिन मैं और मेरा परिवार उनका जीवन पर्यंत ऋणी रहेगा।
अस्पताल में रात दिन मशीनों मरीजों तीमारदारों डॉक्टर और नर्स के विचित्र विचित्र आवाजें आपको बिल्कुल सोने नहीं देती। बहुत ज्यादा मानसिक कष्ट और वेदना होती है। 24 अप्रैल, 13वें दिन करोना नेगेटिव होने के बाद घर वापस आ गया। बहुत कमजोरी है। KGMU में प्रतिदिन बहुत से टेस्ट, हर दूसरे तीसरे दिन कोविड टेस्ट, प्रतिदिन 6 से 8 इंजेक्शन Remdesivir सहित और ओरल दवाइयां, 24 घंटा पूर्ण समर्पित मेडिकल स्टाफ, सब कुछ सरकार की तरफ से मुफ्त, वाह रे मोदी योगी की सरकार, इतने अच्छे शासन प्रशासन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। क्या अमीर, क्या गरीब, न जात है, ना पात है, सब की सेवा एक समान है।
पुष्कर अवस्थी
संपादक विचार
राष्ट्र इंडिया