जब से फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास द्वारा ईद से पहले इजराइल पर किये गए रॉकेटों के हमले के प्रतिकार में, इजराइल ने हमास व फिलिस्तीन को धुआं धुआं कर दिया है, तब से भारत के राष्ट्रवादी और सनातनी, बड़ी तरंग में लहराकर, सोहर गाने में लगे हुए है। वे न सिर्फ यहूदी प्रजाति की मारक क्षमता से सम्मोहित हो कर नए रागों का सर्जन कर रहे है बल्कि #IStandWithIsrael का उद्घोष कर, इजराइल राष्ट्र के समर्थन में खड़े होने की अपनी उपस्थिति को पंजिकृत भी कर रहे है।

मुझे यह सब देख कर, जितना हर्ष हो रहा है उतना ही इन बहुधायों द्वारा की जारही गुलाटी पर संताप भी हो रहा है। भारत मे जो लोग इजराइल और यहूदियों के पक्ष में खड़े हुए, उसको लेकर मेरा चित्त कहीं से भी दिग्भ्रमित नही है क्योंकि यह सर्वदा उचित है। लेकिन, उसी के साथ इजराइल व उसकी यहूदी जनता का दृष्टांत दे, भारत के राजनैतिक नेतृत्व, मोदी जी की उलाहना व उनको तिरस्कृत करना, मेरी प्रज्ञा की परिधि से बाहर है। मैं ऐसे सभी आलोचनात्मक भारतीयों व सनातनियों को अल्पकालिक लकवाग्रस्त मानसिकता से संक्रमित मानता हूँ।

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मेरा यह स्पष्ट रूप से मानना है कि प्रतिकार करने में इजराइल का राजनैतिक नेतृत्व, इसलिये सफल नही है क्योंकि वह असंदिग्ध रूप से श्रेष्ठ है बल्कि वह सफल इसलिये है क्योंकि उसकी यहूदी जनता व उसके साथ ही शेष विश्व मे बसे यहूदी, इजराइल एक राष्ट्र व उनके स्वयं के अस्तित्व को लेकर न सिर्फ समग्र है बल्कि पूरी तरफ सुकृत भी है। अब इस सत्य को जानने, समझने व देखने के बाद लोगो का भारत के नेतृत्व से, इजराइल की तरह प्रतिकार करने की अपेक्षा करना व स्वयं में ऊधर्व अवस्था को प्राप्त करने की अभिलाषा पालना, हास्यप्रद है।

यह निर्बाध रूप से सत्य है कि आप, यहूदी नही है और न आप वो हो सकते है। वह प्रजाति विश्व मे 2000 वर्षों तक भटकी, अपमानित व त्रासित हुई है और उसने, आप की तरह, अपने मे ही टूटन पैदा नही होने दी है। वे मरे, करोङो मरे, प्रताड़ित हुये लेकिन उन्होंने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए, भिक्षुता का वरण नही किया और न ही उन्होंने अपने अंदर व अपनी आगामी पीढ़ियों में, याचकता का बोध पल्लवित होने दिया है। यहूदियों ने, विश्व के विभिन्न तंत्रों में प्रतिस्थापित हो कर सिर्फ अपने ही वर्तमान के लिए दुर्ग नही बनाया बल्कि अपने भविष्य की निर्बाध्यता के लिए, दुसरो को अपने पराक्रम व ऊर्जा से स्वयं के लिए अनकूल भी बनाया है।

इजराइल और फिलिस्तीन का संघर्ष, भाग 2 (conflict between Israel and Palestine,  part 2)

हम भारतीय और सनातनी, न इजराइल एक राष्ट्र की तरह, अपने राष्ट्र के लिए संकल्पित है और न ही यहूदियों की तरह स्वयं से सत्यनिष्ठ है। हमारी वास्तविकता क्या है वह एक रुक्ष सत्य है। हम अतीत की दायित्वहीनता व अधिकार के अहंकार से पोषित वर्तमान है। हम सिर्फ अपार्थ आलोचना, परिस्थितियों से पलायन व अस्तित्व की रक्षा के लिए, निज कर्म की जगह, चकोर की भांति दूसरे का मुंह तक सकते है। हम वर्तमान के डोडो प्रजाति है जिसे शताब्दियों में शांति, अहिंसा व सहिंक्षुण्ड़ता के मंत्रों ने स्वाभिमान हीन व मानसिक रूप से पंगु बना दिया है। इसने, हमारे आखेट किये जाने पर प्रतिकार करने के भाव को निलंबित कर दिया है। हमारा आत्मविश्वास इतना दीन होगया है कि बिना शासकीय प्रश्रय व उसके संरक्षण के, प्रतिघात की संरचना भी नही कर सकते है। यह यथार्थ है कि हमारी प्रजाति अपनी भीरुता को आवृत करने के लिए, दूसरे पर दोष मढ़ने का आवरण पहले से ही तैयार किये रहती है।

हमारी मानसिक दिव्यांगता तो यह है कि इजराइल व यहूदियों के प्रतिकार करने पर वो लोग अपनी जंघाओं पर ताल ठोक रहे है जिन्होंने कभी एक पत्थर व गोली नही चलाई है! उन्होंने न काश्मीर की घाटी में चलाई जब वो वहां से खदेड़े गये थे और न ही शेष भारत से कोई वहां मोर्चा लेने गया था। वहां से जो भागे, वे अंतिम समय तक उन्ही के साथ समंजन करते रहे, जिन्होंने उनको मारा, बलात्कार किया और उनका धर्म बदलवाया था। यही सब केरल में होता रहा है और अब इसने बंगाल में दवानल का रूप ले लिया है। हमे वहां से कातर स्वर व क्रंदन सुनाई देता है लेकिन वहां बहुमत ने चुनाव, प्रतिघात के विपरीत, अपने ही आक्रांताओं के आलिंगन में झूलने को किया है। लेकिन शायद पूरा दोष उनका भी नही है क्योंकि शेष भारत से भी कोई भी ऐसा जीवट वहां नही पहुंचा जो सिर्फ विचारधारा के प्रसार तक सीमित न रह कर, प्रतिघात करने की मानसिकता को भी अंकुरित किया है। हम सब, सब कुछ समझ रहे थे लेकिन फिर भी हमने बंगाल में उसी को जयमाला डाली है जो कल हमे कश्मीर की घाटी से हुए पलायन की पुनर्वित्ति से पुनः परिचय कराएगा।

israel

हमे अपने मानसिक ह्रास को स्वीकार करते हुए यह समझना चाहिए कि हमारी प्रजाति यहूदी चरित्र से कोसों दूर है। हम वह नही है, और इसलिए भारत का राजनैतिक नेतृत्व भी, हमारे चारित्रिक व मानसिक पंगुता के आधार पर, इजराइल की भांति निर्णयात्मक निर्णय लेने में असहज है। हमारी स्पष्ट सहभागिता का अभाव, नेतृत्व को प्रतिघात्मक तत्व से संकुचित ही रखता है। इसलिए ऐसे लोगो द्वारा, इजराइल-फिलिस्तीन के संदर्भ में, अपनी पंगुता की खिसियाहट में, भारत के राजनैतिक नेतृत्व की आलोचना करना न सिर्फ दयनीय है बल्कि मन्दता है।

जिस प्रजाति ने अपने राष्ट्र को काटे जाने को मूक, अपनो की उजड़ी अस्मिता व उठती अर्थियों पर स्वीकार किया हो, जिसने अपने अस्तित्व पर आये संकट के निपटान के लिए संघर्ष की उपेक्षा, पलायन की अपेक्षा का चयन किया हो और जिसने वर्तमान के स्वार्थ में, आगामी पीढ़ी को द्रोपदी की तरह दांव पर लगाने के व्यसन को आत्मसात किया हो, उस प्रजाति का यहूदियों द्वारा किये जारहे प्रतिकार से उठी तरंगों पर, द्वारचार गान करना, विस्मयकारी है!

पुष्कर अवस्थी
संपादक विचार

पुष्कर अवस्थी

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