पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हिंदू नरसंहार हो रहा है. ठीक वैसे जैसे बंटवारे के समय हुआ था. तब सुहरावर्दी था, इस बार ममता बनर्जी है. नतीजों के बाद से बिल्कुल डायरेक्ट एक्शन डे जैसा माहौल है. बंगाल का भद्रलोक तब भी इसी मुगालते में मारा गया कि मुस्लिम जिहादी तो हमारे भाई हैं.
इस बार भी इसी मुगालते में मारा जा रहा है कि देश, धर्म से पहले है बांग्ला. पूरा देश बलात्कार, हत्याओं से विचलित है. लेकिन लिबरल, सेक्यूलर और आंदोलनजीवी तख्तीबाज गैंग बहुत खामोशी से इसका आनंद ले रहा है. ये हर हिंदू हत्या का इस प्रकार आनंद लेते हैं. इनकी बेचैनी, इनकी पीड़ा, इनके आंदोलन, इनके ट्विट, इनके पोस्ट, इनकी तख्तियां मौका देखकर उबलती हैं. ये कौन लोग हैं, जिन्हें मानव जीवन का मूल्य उसके धर्म के आधार पर तय करने की राक्षसी जिद है.
इन्हें जानने से पहले इन्हें पहचानें. अंदर तक पहचानें. इस देश के कथित लिबरल, सेक्युलर, आंदोलनजीवी गैंग की कुछ पहचान…
दिल में भारत, हिंदू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भगवान श्री राम, सेना के लिए जहर होना अनिवार्य
मुद्दों को पसंद और सुविधा के हिसाब से चुनने की बेहया किस्म की जिद
मानव जीवन, मानवाधिकार का मूल्य धर्म और मजहब में अंतर पैदा करके पहचानने की लंपट प्रवृत्ति
दिन की शुरुआत संघ परिवार को गाली देने से करना और रात को मार्क्स व माओ को किसी शराब के गिलास में घोलकर किसी के भी बिस्तर में घुस जाना
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक आजादी को खतरे के मनगढंत प्रसंग रचने और शोर मचाने का प्रपंच
हिंदू फोबिक होना बेहद अनिवार्य है. हर हिंदू पर्व पर इनकी तख्तियां कभी लकड़ी, तो कभी पानी बचाने पर निकलनी चाहिए.
ये लिस्ट बहुत लंबी है. कठुआ रेप केस पर ये सब एक सुर में टर्राने लगते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल के ननूर में दो हिंदू महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार की खबर पर ये आसानी से चुप रह सकते हैं. बस वजह ये कि कठुआ में इनकी पसंद और इनके एजेंडे को रास आने वाली सारी बातें थीं. मसलन मंदिर में बलात्कार का झूठ गढ़ना, फिर पीड़िता का मुसलमान होना और आखिर में इस नाम पर देश-विदेश से चंदे की उगाही.
पश्चिम बंगाल में महिलाएं हिंदू हैं और इनकी डिक्शनरी में रेप सिर्फ मुस्लिम महिला का होना गुनाह है. ये वही गैंग है, जो चुनाव के नतीजों के दिन ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की जीत का जश्न मना रहा था. उन्हें जाइंट किलर बता रहा था. नतीजों को कुछ ऐसे पेश कर रहा था कि लोकतंत्र के उद्भव के बाद अगर कोई चुनाव हुए हैं, तो बस वे यही हैं. कहां है जावेद अख्तर. अब उसे डर नहीं लग रहा. कहां है नसीरुद्दीन शाह. कहां गई वो बॉलीवुड की तख्ती खोर सोनम कपूर, करीना सैफ अली खान…
अवार्ड वापसी गैंग के उदय प्रकाश, अशोक वाजपेयी, कृष्णा सोबती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, जीएन देवी, नयनतारा सहगल, केकी दारुवाला, अनिल जोशी, वारयाम सिंह संधु, सुरजीत पतर, जसविन्दर, गुरुवचन भुल्लर, आत्मजीत, बल्देव सिंह, दर्शन बुट्टर, अजमेर सिंह औलाख, मोहन भंडारी, नन्द भारद्वाज, अम्बिका दत्त, कुम वीरभद्रप्पा, रहमत टारिकेरे, देवनुरु महादेवा, गुलाम नबी ख्याल, मरगूब बनिहाली, मुनव्वर राणा, खलील मामून, सारा जोसेफ, होमेन बोरगोहेन, निरुपमा बोरगोहेन, कात्यायिनी विदमाहे, चमन लाल,जीएन रंगनाथराव, इब्राहिम अफगान, अमन सेठी, परगट सिंह सताउज, एम भूपाल रेड्डी, मन्दक्रान्ता सेन में ये साहित्यकार का वेश धरे बहरुपिये हैं. इन्होंने कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहिष्णुता के नाम पर पुरुस्कार लौटाए थे.
लेकिन अब ये खामोश हैं. क्योंकि पश्चिम बंगाल में सब कुछ सहिष्णु है.
एक हिंदू विरोधी जहर में बुझी अरुंधति राय है. ये अवार्ड लौटाने में माहिर हैं. अब खामोश हैं. कुंदन शाह को बड़ी परेशानी असहिष्णुता को लेकर थी. अब नहीं है. सईद मिर्जा, दिबाकर बनर्जी, अनुराग कश्यप, आनंद पटवर्धन, दीपांकर बनर्जी, परेश कामदार, निशिता जैन, कीर्ति नखावा समेत दर्जनों बॉलीवुड के डी गैंग के सदस्य हैं. ये पुरस्कार लौटाते हैं, पर हिंदूओं के खिलाफ हिंसा पर शायद इन्हें आनंद आता है. इसी तरह सेक्युलर राजनीतिक गैंग है. राहुल गांधी, लालू यादव, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल समेत तमाम राजनीतिक हस्तियां ममता बनर्जी को जीत की बधाई तो दे रहे हैं, लेकिन शायद हिंदू नरसंहार पर इनकी चुप्पी एक तरह की मौन सहमति है. अब न तो आपको राणा अयूब का कोई ट्विट नजर आएगा, न ही नंदिता दास का विलाप. आपको कहीं भी शबाना आजमी नजर नहीं आएंगी. मानवाधिकार का सबसे बड़ा रखवाला गौतम नवलखा नहीं बोलेगा, रोना विलसन नहीं रोएगी. ये लिस्ट बहुत लंबी है और इनके अधिकतर नाम आपको पता हैं. आप रोज इन मनोरोगियों के हिंदू विरोधी बयान, ट्विट और हरकते देखते हैं.
पश्चिम बंगाल की हिंसा ने जहां कई मसले साफ कर दिए हैं, वहीं कई और सवाल पैदा कर दिए हैं. पश्चिम बंगाल में सिस्टम काम कर रहा है. यह सिस्टम है जिहादी हत्याएं करेंगे और पश्चिम बंगाल पुलिस उन्हें क्लीन चिट देगी. बाजार लूटे जा रहे हैं, हत्याएं हो रही हैं, हिंदू महिलाओं की अस्मत लूटी जा रही है. क्या आपको नहीं लगता कि आपने ये सब पहले देखा सुना है. हिंदू अपने ही देश में शऱणार्थी बन रहा है. बड़ी तादाद में बंगाल से हिंदू असम का रुख कर रहे हैं. हालात वही कश्मीर वाले बनते जा रहे हैं. कश्मीर घाटी को हिंदू विहीन करने में जिन वामपंथी बुद्धिजीवियों, चाटुकार पत्रकारों, लिबरल गैंग, कथित समाजसेवियों, एनजीओ गैंग, तख्ती गैंग का हाथ था, वही आज अपनी नई कर्मभूमि पश्चिम बंगाल में सक्रिय हैं. ये ममता बनर्जी की सुहरावर्दी जैसी हिंसा को बौद्धिक जामा पहनाएंगे. उसके पक्ष में तर्क तैयार करेंगे. आने वाले दिनों में एक बहुत बडा कथित सेक्युलर तबका ममता की छत्रछाया में होगा. और इसके साथ होगा, इन सभी का मनपसंद प्रयास. प्रयास ये कि कैसे पश्चिम बंगाल को हिंदू विहीन किया जाए.