पिछले सप्ताह दक्षिण अफ्रीका के बाहर अनेक देशों में ओमीक्रोन के मामलों में तेजी देखी गई, जिसके कारण निकट भविष्य में वैश्विक स्तर पर कोरोना की कदाचित एक बड़ी लहर की चिंता जताई जाने लगी है। इससे भी अहम बात यह है कि इस वेरिएंट में उच्च संक्रमण दर को देखते हुए आम लोगों में यह धारणा पनपने लगी है कि कहीं इस नए वर्ष की भी मनहूस शुरुआत न हो! नतीजतन, यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि क्या यह महामारी कभी खत्म होगी?


बेशक डेल्टा विश्व भर में सबसे चर्चित वेरिएंट है, लेकिन ओमीक्रोन तेजी से पांव फैला रहा है और बहुत जल्द डेल्टा की तुलना में अधिक संक्रमण की वजह बन सकता है। रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन (वायरस का वह हिस्सा, जो इसे कोशिकाओं में प्रवेश करने और संक्रमित करने के लिए शरीर के रिसेप्टर्स को भेदने में मदद करता है) में और फ्यूरिन क्लीवेज साइट के नजदीक होने वाले अत्यधिक म्यूटेशन के कारण कयास लगाए जा रहे हैं कि ओमीक्रोन बहुत तेजी से फैल सकता है। सवाल है कि ओमीक्रोन इतनी तेजी से फैलता है, तो केवल हल्के लक्षण क्यों पैदा करता है? इस सवाल पर दो अध्ययनों ने पर्याप्त रोशनी डाली है।


मानव फेफड़े के ऊतकों का उपयोग करते हुए हांगकांग के शोधकर्ताओं की एक टीम ने प्रयोग करके बताया है कि ओमीक्रोन वेरिएंट इंसानी ब्रॉन्कस (श्वसन नली) में मूल सार्स कोव-2 वायरस और डेल्टा संस्करण की तुलना में लगभग 70 गुना अधिक तेजी से वृद्धि करता है। इसी कारण से यह कई गुना अधिक संक्रमित करता है। मगर दूसरी ओर, फेफड़े के ऊतकों में मूल वुहान स्ट्रेन की तुलना में करीब 10 गुना कम वृद्धि करता है, जिससे इसमें रोग की गंभीरता कम हो सकती है।


दूसरा अध्ययन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (ब्रिटेन) में किया गया है, जहां शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रयोगशाला में तैयार फेफड़ों की कोशिकाओं में ओमीक्रोन के प्रवेश करने की क्षमता तो काफी ज्यादा थी, लेकिन फेफड़े की कोशिकाओं को नष्ट करने की कुव्वत बहुत ज्यादा नहीं थी। चिकित्सा विज्ञान कहता है कि अगर फेफडे़ की कोशिकाएं वायरस से ज्यादा संक्रमित हो जाती हैं, तो बीमारी गंभीर होती है, लिहाजा फेफड़े की कोशिकाओं को तुलनात्मक रूप से कम संक्रमित करने के कारण ओमीक्रोन हमें हल्का बीमार बना सकता है।


भले ही ओमीक्रोन अब तक 89 से अधिक देशों में लोगों को अभी हल्का संक्रमित कर रहा है, लेकिन टीकाकरण से बनाई गई या पूर्व में कोरोना संक्रमण से बनी प्रतिरोधक क्षमता को भेदने की इसकी क्षमता हमारी चिंता बढ़ा रही है। बढ़ते ओमीक्रोन मामलों पर गौर करें, तो अलग-अलग आबादी पर इसका अलग-अलग असर हो रहा है। मसलन, ब्रिटेन में पिछले एक सप्ताह से रोजाना 80-90 हजार मामले सामने आ रहे हैं, जबकि वहां 70 फीसदी लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है और 40 फीसदी लोग तो बूस्टर डोज भी लगा चुके हैं। इंपीरियल कॉलेज का एक अध्ययन बताता है कि ओमीक्रोन में पुन: संक्रमण का जोखिम डेल्टा की तुलना में 5.4 गुना अधिक है। इसका अर्थ है कि नया वायरस पूर्व में हुए संक्रमण या टीकाकरण से बने प्रतिरक्षा तंत्र को चकमा दे सकता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है।


इसी तरह के आंकड़े दक्षिण अफ्रीका से भी आए हैं। वहां भी टीका ले चुके लोगों में संक्रमण दिख रहा है। वहां पिछले हफ्ते कोविड के मामलों में 255 फीसदी की वृद्धि देखी गई और टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (जांच किए जा रहे लोगों में नए मरीजों की दर) 30 प्रतिशत से अधिक है। हालांकि, ज्यादातर को मामूली संक्रमण था और सिर्फ 1.7 फीसदी मरीजों को अस्तपालों में दाखिल करने की जरूरत पड़ी, जबकि डेल्टा में इसी अवधि के दौरान यह दर 19 फीसदी थी। जाहिर है, पूर्ण टीकाकरण वाले लोगों में ओमीक्रोन से गंभीर बीमार होने का खतरा कम है। हालांकि, टीका-निर्माताओं के दावों के बावजूद अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जो साबित करे कि कोई खास टीका ओमीक्रोन के खिलाफ प्रभावी है।


इन सबमें भारत कहीं बेहतर स्थिति में है। यहां 94 करोड़ वयस्क आबादी में से 64 फीसदी का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है और 28 फीसदी लोग कोविशील्ड या कोवैक्सिन की एक खुराक ले चुके हैं। फिर भी, करीब 10.8 करोड़ वयस्क ऐसे हैं, जिनका 22 दिसंबर तक टीकाकरण नहीं हुआ था, और यह कोई छोटी संख्या नहीं है। हमें अधिक से अधिक वयस्क आबादी के पूर्ण टीकाकरण को प्राथमिकता देनी चाहिए, बूस्टर डोज के लिए हम फिलहाल इंतजार कर सकते हैं।


ओमीक्रोन के बढ़ते खतरे को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत में इसके मरीजों की संख्या कम है। हमारी बुद्धिमानी इसी में हो सकती है कि हम भविष्य के लिए बूस्टर डोज बचाकर रखें, क्योंकि संभवत: आने वाले दिनों में ऐसे वेरिएंट भी आ सकते हैं, जो संक्रामक और घातक, दोनों हों। बिल्कुल डेल्टा की तरह। अलबत्ता, हल्का संक्रमित कर रहे ओमीक्रोन जैसे अत्यधिक प्रसार वाले वेरिएंट का हमें स्वागत ही करना चाहिए। जब यह नहीं पता हो कि कोविड-19 का पूर्ण उन्मूलन कब होगा, तब ओमीक्रोन जैसे वेरिएंट पैंडेमिक (वैश्विक महामारी) को एंडेमिक (स्थानीय बीमारी) बनाने में मददगार हो सकते हैं।


फिर भी, संक्रमण के प्रसार को थामना और व्यापक खतरे को खत्म करना महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि यह वेरिएंट भले ही कम रोगजनक है, लेकिन इसकी उच्च संक्रमण क्षमता के कारण सामुदायिक प्रतिरक्षा तंत्र पर दबाव बढ़ सकता है। चूंकि हमारी आबादी काफी ज्यादा है, इसलिए अगर बहुत छोटा हिस्सा भी गंभीर रूप से बीमार पड़ा, तो अस्पतालों पर अवांछित बोझ पड़ सकता है।


भारत योग और ध्यान में विश्वास रखने वाला देश है। 21 दिसंबर को पीएनएएस  में प्रकाशित अमेरिकी शोधकर्ताओं का अध्ययन बताता है कि योग और ध्यान करने से कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। इसका अर्थ है कि योग-ध्यान के साथ-साथ भीड़-भाड़ से बचने जैसे कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन और पूर्ण टीकाकरण नए वेरिएंट को विफल करने की हमारी सबसे अच्छी रणनीति हो सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

एन के मेहरा, इमेरिटस साइंटिस्ट, इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च

मुकेश पाण्डेय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here