पालतू बनने के डर से

जब कुछ आदमी

औरतों की जाँघों से निकल गए

वे कवि बन गए

पर वे कवि

जिनकी कविताओं के पाँव

मासिक धर्म

और गर्भपात जैसे शब्दों ने भारी किए

वे जो मानने लगे कि

औरत के चंगुल से निकलकर

बुद्ध बना जाता है

The Art of Sacred Sex. — Tatjana Lucia

पर जिनके रूपकों में

औरत की देह हावी रही

वे जो

वेश्याओं से

हमदर्दी रखने के खेल के बाद

औरत के सिर्फ़ गर्म ख़याल

अपने रूपकों में लाए

और फिर नायक बनकर

जाँघों से बाहर निकल आए

इतना कुछ कह गए

वे औरतों के बारे में

फिर भी कैसे कहूँ मैं ये

कि ये उनके विचारों का शीघ्रपतन था?

मुकेश पाण्डेय

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