डच लेखिका और राजनीतिज्ञ अयान हिरसी अली वाशिंगटन डीसी स्थित अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट की फेलो हैं. उनकी ‘इनफिडेल’ नामक संस्मरणों की किताब काफी चर्चा में रही है. इसलाम की आलोचनाओं के कारण कट्टरपंथियों के निशाने पर रहीं हिरसी हाल ही में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल हुईं. सुरक्षा कारणों से उनके आने की पहले से कोई सूचना नहीं दी गई थी. गौरव जैन से उनकी बातचीत के प्रमुख अंश:
क्या आपको लगता है कि इसलाम की सार्वजनिक तौर पर आलोचना से पहले इसलाम से अलग होना जरूरी है?
इसलाम से बाहर आने का मेरा सफर यह दिखाता है कि निजी तौर पर किसी मुसलिम मर्द या औरत के लिए अपने विचारों में बदलाव लाना मुमकिन है. मुझे यह सहज और सरल भाषा में साफ करना पड़ता है कि मेरे मां-बाप ने मुझे नैतिक मूल्यों का यह ढांचा दिया था, मैंने इसलिए इसे छोड़ दिया और ये हैं वे नए नैतिक मूल्य जो मैंने अपनाए हैं. अगर आप खुद ही इस बारे में साफ नही हैं और भ्रम में पड़ गए तो आपका मकसद पूरा नहीं हो पाएगा और यह केवल कट्टरपंथियों को ही फायदा पहुंचाएगा, क्योंकि उनका नजरिया और इसलाम को फैलाने का उनका मकसद बहुत साफ है. वे आपको बताते हैं कि यह हलाल है, यह हराम है. आपको काफिरों से लड़ना चाहिए और अगर वे अपनी इच्छा से धर्म नहीं बदलते तो उन्हें मार डालो या उनसे बचो. पतितों के लिए इस तरह की शर्तें हैं. वे इस बारे में बहुत साफ हैं कि आपको इसलाम क्या करने को कहता है. इसलिए आपको एक साफ रुख अपनाते हुए बताना होगा कि वे मूल्य क्यों गलत हैं.
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क्या आप इसलाम के प्रसार को एक समस्या के तौर पर देखती हैं?
आज यह इतिहास की सबसे बड़ी समस्या है. अगर हम आतंक और हिंसा को छोड़ भी दें तब भी. यह एक बंद दिमाग का आदमी पैदा करता है, क्योंकि यह आपको खुद सोचने की इजाजत नहीं देता. आपको एक आदमी का अनुसरण करना होता है जो आपको हराम और हलाल चीजों के बारे में बताता है. इसलाम मौत के बाद की फिक्र करने को कहता है. जबकि जरूरी यह है कि हम जिंदगी के लिए एक दर्शन की रचना करें, उस जिंदगी के लिए जो आज सामने है. मुसलिम जगत इसलिए पीछे है क्योंकि वह आज की बजाय मौत के बाद के जीवन और कयामत के बारे में चिंतित रहता है.
आज बुरका बड़ी समस्या क्यों है?
पश्चिम में जब भी बुरके की चर्चा होती है, दुर्भाग्य से बहस को कपड़े के एक टुकड़े तक सीमित कर दिया जाता है. जैसे कि आपको अपने बाल या आंखें ढकनी चाहिए या नहीं वगैरह. जबकि हमें इसके असली निहितार्थ के बारे में बात करनी चाहिए. बुरके के पीछे का विचार यह है कि नारी शरीर लुभावना है, यह मर्द की काम भावना को उकसाता है. और अगर ऐसा होता है तो मर्द खुद पर काबू नहीं रख सकता. इसलिए सबसे अच्छा तरीका है कि औरत को ही ढक दो. अब जो औरतें जो इसे गर्व से पहनती हैं वे खुद से पूछें -क्या किसी मर्द को उसकी काम भावना से बचाना मेरी जिम्मेदारी है या उसे खुद अपनी इच्छाओं और तकाजों पर काबू रखना सीखना चाहिए? अब जैसा कि हम भारत, चीन, पश्चिम में देख रहे हैं, मर्द अपने तकाजों को नियंत्रित करने में सक्षम हो रहे हैं और इस तरह बुरका निरर्थक बन रहा है. एक दूसरी वजह यह है कि आप देखेंगे कि एक राजनीतिक नजरिए की अभिव्यक्ति के रूप में मुखर, शिक्षित कामकाजी औरतें भी बुरका पहनती हैं. यह राजनीतिक नजरिया यह है कि इसलाम एक राजनीतिक सिद्धांत है, यह सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत है और शरिया कानून लागू होना चाहिए. यह खुद को एक झंडे से ढकने जैसा है, यह एक भव्य आडंबर है.
यूरोप में मुसलमानों के तुष्टीकरण की तुलना अमेरिका से कैसे करेंगी?अमेरिका और यूरोप के मुसलमानों में फर्क यह है कि अमेरिकी मुसलमानों का शैक्षिक स्तर यूरोप के मुकाबले बेहतर है. लेकिन तब भी अमेरिका में उग्रवाद और जिहादीपन अधिक है, जो यहां खुल रहे इसलामी सेंटरों के रूप में दिखता है. इसलाम में दो समूह हैं. एक हिंसा को भी साधन मानता है. उधर, तारिक रमजान जैसे लोग क्रमिकवाद में यकीन रखते हैं-अपने उद्देश्यों को लोकतांत्रिक तरीकों से हासिल करने में. मुझे लगता है कि अल कायदा हिंसा का इस्तेमाल करना जारी रखेगा और यह रास्ता इसलाम के लिए आत्मघाती है.